पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४१७

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वशपाल-यशपोचना वंशपाल--शिलालिपिर्णित एक राजा । । त्यसम्पारा, कर्मगे, श्वेता, वागरोचना. ना, वंशपीत ( स० पु०) वंशः वंशपत्तमिव पीतः । गुग्गुलु, रोचनिका, शिक्षा, यशरा, येणु रयण । इसका गुण- सुग्गुल। मन, पपाय, मधुर, हिंग, ग्याससामन, तापनाशका, वंशपुष्पा (सं० स्त्री०) वंशस्य पुष्पाणोव युप्पाणि यस्याः।। रक्तशुद्धिकारक और पित्तोक प्रशमनकारी। (रानन० ) सहदेवी लता। भावप्रकाशले मतगे इससी गुणागली वजा जाद- वशपूरक (सं० क्ली०) वंशस्येव पूरशमस्य । इक्षमूल, दंग्या में लिखी गई है। वरना और मनोनन देगे। की आँख या अंकुर । बालक्ष्मो ( म० सी०) अललनी । वणप्रतिष्ठानकर (सं० पु०) बंशरयाति या प्रतिपत्ति-वलोचन (म० पु० ) वाचना दी। विस्तारकारी, वह जो वंशको उन्नति करता हो। व शलोचना (म० मी० ) वजरोचना र लत्यम् । वंसोज (सं० क्ली० ) वंशरय वीजं । वेणुयव, घाँसका बाँसके पर्व को पीच नीलाम श्वेतवर्ण पदार्थविशेषा चावल। चलित भापार्म इसका नाम वमलोचन है। अगरेजीमे व शब्राह्मण (सं० क्लो०) १ वैदिक आचार्यपरम्पराभेद ।। इसे Bai oo Matlila शहने हैं। यह पदार्थ प्रधानतः २सामवेदके ब्राह्मणोंमे एक प्रधान ब्राह्मण जिसमें साम बेहुर वांस या नल वामने ( Bamyasa arundra वेदी ब्राह्मणों के न शकार भूपियोंको नामावली हे। Cocnc ) उत्पन्न होता है। भारत के विभिन्न स्थानों- व शभार (सं० पु० ) गैसका मार या मोटा। में यह योषध तबाशोर' पहलाती है। वंशभृत् (स० पु०) १ वह जो वशका भरण पोपण करता भिन्न भिन्न देशमे यह मिन भिन्न नामले परि- हो। २ का प्रधान प्यक्ति । चित है। दिन्दी-बसलोचन, बंसकपूर , बगला- वणभोज्य (सं०लि०) १ का उपभोग्य । २शानु वांशरपूर, वशलोचन , आसामसुनोरिया , अरव और क्रम प्राप्त । (क्लो०) ३ पैतृक राज्य । (भारत वनपर्व ) पारस्य-तवाशीर; मराठी-चंशलोचन, घनशमोठा, वशमय ( स० वि० ) वश इवार्थे मयट । वनिर्मित, गुर्जर-बाशकपूर, चाश नु मोठा ; तामिल-मुगपु; वांसका बना हुआ। तेलगू-वेदरुप्पु, तवक्षोरि , मलयालम्-मोलेउप , वशमर्यादा ( स० स्त्री० ) वशम्य मर्यादा। १ चश कनाडी-चिदप्पु, तवक्षीरा , शिंगापुर-उण, लुणु, परम्परा प्राप्त गौरव, फुलझमागत मयांदा । २ राजदत्त उणाका-प.पूर , ब्रह्म-वा-छा , पाठेग!-कियो बाटे उपाधि या खिताव। गसा, वसन, संस्कृत-वशरोचना शब्दमें दिया वशमूलक (सं० ली. ) महानारतके अनुसार एक तीर्थ । गया है। इस तीर्थमे स्नान करनेसे अशेष पुण्य संचय होता है। बाजारमे यह द्रव्य साधारणतः दो प्रकारका देवा (भारत वनपर्व ) जाता है-(१)वृदो या नीलाभ तथा (२) सफेद वयव (२० पु०) वेणुयब, बाँसका चावल । यो श्वेतवर्ण। प्राचीन वैद्यकमें इसका भेषज्ञ गुण वंशराज ( स० पु० ) यशाना राजा इति राजाहसखिभ्य- लिखा है- एच । १ सबसे बढ़िया का सबसे बडा बाँस । २ राज केवल भारतवासी ही नही, सुदूर अरब और ग्रीस- भेद । (ललितविस्तर) वासी यवन लोग भी बहुत प्राचीनकालसे इस वशन चशरोचना (स. स्त्री० ) रोचते इति, रुच नन्दादित्वात् , दुग्धके गुणसे जानकार थे। डावकाराइडस, प्लिनि, साल न्युः, टाप, वंशस्य रोचना। स्वनामख्यात व शपर्व | मासियस, स्प्रे गाल फी, फरे, हाम्मोल्ट आदि मनीपिगण मध्यस्थित श्वेतवर्ण औषधविशेष, वसलोचन । पर्याय- इस महामूल्य द्रव्यका उल्लेख कर गये है। ग्लिनिके त्वपक्षीरा, वशलोचना, तुगाक्षोरो, शुभा, वाशी, वंशजा, Saccharon et Arabia fert sud slandditus India क्षारिका, तुगा त्वक क्षोरी, शुम्रा, वंशक्षीरी, वैणवी, | Est antem mel in an undlinilbus collectun आदि