पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३८७

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लोहागाँव-लोहारदगा ३६२ समुद्रपृष्ठसे इसकी ऊँचाई ५५६२ फुट है । यह गोरा-। ब्राह्मण कहते और यज्ञोपवीत धारण करते हैं। उनको वारिक चारों ओर ऊंचे पर्वतशृङ्गसे घिरे हैं। पहले इस सतर्जातियोंके नाम भी ओझा आदि रहते हैं, पर नगरसे ३ मील दक्षिण चम्पावत् नगरमें गोरावारिक थी। अधिकतर माचारहीन होते हैं और शूद्र माने जाते हैं। वहां की आवह्या अच्छी न होनेले यहां पर उठा कर लाई प्रत्येक अन्तर्जातिका ग्वान पान और विवाह-सम्बन्ध गई। १८८३ ई० में वह सेनावास छोड़ दिया गया है। पृथक् पृथक होता है और उनके नाम भी मिल होते हैं। अभी यहा चायको खेती होती है। अलमोरासे यह नगर लोहारदगा-रांची जिले का पाचीन नाम। यह अक्षा० ५४ मोल दक्षिण पूर्व में अवस्थित है। २२२४ से २४ ३६उ० तथा देशा० ८३°२२ से ८५ लोहागाँव-युक्तप्रदेशके वुन्देलखण्ड विभागके अजयगढ़ ५५ पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरिमाण १२०४५ वर्ग राज्यान्तर्गत एक बड़ा गांव । यह अक्षा० २४ २६उ० मील है। इसके उत्तर में शोननदी. हजारीबाग, गया और तया देशा० ८०२२ पू०के मध्य इलाहावादसे १६८ मील | नाहाबाद जिलेको पृथा करती है , उत्तर पश्चिम और दक्षिण पश्चिम सांगर जानेके रास्ते पर अवस्थित है। पश्चिममे मिर्जापुर जिला तथा सरगजा, यशपर और समुद्रकी तहसे इसकी ऊँचाई १२६० फुट है। पहले यहा गागपुर सामन्तराज्य ; दक्षिण और पूर्व में सिंहभूम और अंगरेजराजका एक सेनानिवास था। पीछे वह परि मानभूमका जिला है। पूर्वी सोमामें सुवर्णरेखा नदी त्यक्त हो जानेसे स्थानीय समृद्धिका बहुत कुछ ह्रास हो। बहती है। गया है। ___ इस स्थानका कोई प्राचीन इतिहास नहीं मिला। लोहाङ्गारक ( स० पु०)एक नगरका नाम । अधिक सम्भव है, कि पहले यह स्थान पहाड और घने लोहाचल (मं० पु०) पर्वानभेद, महिसुरके अन्तर्गत सन्दूर जङ्गलसे ढका था। लोग इसे झारग्वण्ड कहा करते थे। गज्यमें अवस्थित एक तीर्थ । लोहाचल या कुमार आज भी वह श्वापदसतल विजन अरण्यप्रदेशका परि माहात्म्यमे इस स्थानका विवरण लिखा है। चय देता है। उस वनमें वडालके यादिम अधिवासो लोहाज (60पु0) लाल बकरा। मुण्डा और पीछे ओराउनगण यहुत दिनोंस बास करते लोहाज वक्त, ( स० पु०) स्फन्दानुवर मातृभेद । आ रहे हैं। बहुत दिनोंसे एक साथ रहने पर भी दोनों- (भारत ह १०) में विवाहादि नहीं चलता। वे अपने अपने जातीय धर्म लोहाण्ड (सं० त्रि०) लाल अण्डकोपयाला जीव ।। और कुलप्रथाको रक्षा करते हैं। किन्तु एक समय दोनों- लोहाना (हिं क्रि०) १ लोहेके बरतनमें रखी रहने के को शासननीति एक-सी थी। कारण किसी वस्तुमें लोहेके गुण या रंग आदिका उतर सच पूछिये तो बहुत प्राचीन कालसे अनार्यगण भाना, फिसी पदार्थमें लोहेका रग या स्वाद आ जाना। स्वाधीन भाव और सानन्दचित्तसे स्वेच्छाविहारी हो वनमें रहते आ रहे थे। उन लोगोंका यह नैसर्गिक (पु०) २एक जातिका नाम । शान्तिसुख नाश कर कोई भी राजा उन्हें शासनशृङ्खला- लोहापिसार (सं० पु० ) लोहाना शस्त्रादोना अभिसारो में आवद्ध करना नहीं चाहते थे। वे वनवासी आनन्द यत्र । लोहाभिहार। हृदयसे वनविहङ्गमकी तरह इधर उधर विचरण किया लोहाभिहार (स० पु०) लोहानामभिहोरो यत्र । शस्त्रधारी करते थे तथा कुटी बना कर एक एक गांवमें दलबद्ध राजाओंकी नीराजना विधि। हो रहते थे। गांवका एक एक दलपति समस्त प्राम- लोहामिप (स' क्ली० ) लाल रोपवाला बकरेका मांस । वासीका नेतृत्व ग्रहण करता था। यहां तक, कि ये लोग लोहायस (सं० क्ली० ) तानसंयुक्त मिश्र धातु । अपने आने ग्राम्यमण्डलके आदेश वा परामर्शानुसार लोहार (हि. पु०) पक जानि । यह लोहेका काम करती | दूरस्थ किसी शत्रु के साथ युद्ध करनेसे बाज नही आते है। इस जातिके अनेक भेद हैं। उनमेंसे कुछ अपनेको थे। तीन धनुप ले कर ये लोग युद्ध किया करते थे।