पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३७९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लोमट्टोप-लोमशकर्ण युरोपकी लोमडियां बडी भयानक हानी है। वे गागेंमें : लोमफल ( स० की० ) लोमयुक्त फलं। भव्यफल, घुस कर बंगूर आदि फलोंका और पालत पक्षियोंका। कमरग्य । नाश कर देती हैं। भारतको लोमड़ी चैत वैशाखमें लोममणि ( स० पु०) लोमनिर्मित कवच । बच्चे टेनी है। बच्चोंकी संरया पाच छः होती है और लोमयुक (म० पु०) १ जू। रोमनाशक कीट, वह डेढ़ वर्पमें पूरी वाढको पहुंचते हैं। इसकी आयु तेरह । कोडा जो पशमीने गालको काटता है। चौदह वर्णकी कही गई है। लोमयत (स० वि० ) रोम सदृश, रोमयुक्त । लोमहीप (स० पु०) शोणितज कृमिभेद, वह फीडा जो लोमवाइन ( स० लि.) १ लोमवाल । २ नोमयुक्त । लहसे उत्पन्न होता है। (चरफ चि० ७ ० ). लोमवादिन् ( स० लि०) रोमवाही शर आदि । लोमधि ( म० पु०) पुराणानुसार एक राजपुत्रका नाम || लोमविधर (सं क्ली०) लोम्नां विवरं । लोमकृप । (मागपत १२॥१॥२५) लोमविध्वंस (सपु०) कृमि, कोहा । (वैद्यकनि०) टोपन ( रा० सी०) ल्यने छियते इति ल-(नामन् सीमन् । लोमविष (म पु०) लोम्नि विषं यस्य । ध्याघ्र, वाघ आदि। व्योमन् रोमन् नोमन् पाप्नन् व्यामन् । उगा ४१५० ) इति मनिन् प्रत्ययेन साधुः। शरीरले वाल । पर्याय-तन- लोमवेताल (सं० पु०) अपदेवताभेद । ( हरिवंश ) रह, तनुरुह, रोम, तनुरुट्। (शब्दरत्ना.) लोमश ( स० पु० ) लोमानि सन्त्यस्येति लोमन् 'लोमा- गर्भस्थित बालकके छठे महीनेमे लोग उत्पन्न होता दिन्यः शः' इति । . विख्यान ब्रायि । पुराणोंमे उनको यमर माना गया है। एक समय इन ब्रह्मानिने है। इसलिये छः महीने तक गर्भवती स्त्राको वैदिक आदि कमेिं अधिकार नहीं रहता। इन्द्रकी सभामें जा कर देगा, कि अर्जुन इन्द्रक आसन पर बैठा है । यह देग्य उनके मनमें शंका हुई । देवराज लोगन ( स० पु० ) पाणिनीय अधर्चाटि गणोक्त शब्द । इन्दने ब्रह्मर्पिके हृदय का भाव जान कर कहा-महाराज ! लोमपाद ( सं० पु० ) लोमानि पादयोर्यस्य । अगदेशीय आपके मनमें जो प्रश्न उठा है, उसका उत्तर सुनिये। पक राजा। महाभारतमे लिखा है, कि यह राजा यह अर्जुन केवल मनुष्य ही नहीं है, इसमे देवत्व भो दशरथके मित्र थे। एक बार उन्होंने ब्राह्मणोंझा अपमान है। यह हमारे औरस और कुन्तीके गर्भसे उत्पन्न हुआ किया । उमले क्रोध कर ब्राह्मण उसका देश छोड कर | हे। आश्चर्य है, कि आप इस पुरातन ऋपिको नहीं चले गये । ब्राह्मणों के चले जानेसे अङ्गदेशमे बहुत दिनों जानते । हपोकेश और नारायण ये दोनो नरनारायण- ता अनावृष्टि होती रही। उसके निवारणार्थ गजा | के नामसे बिलोकमै प्रसिद्ध है। कार्यके लिये ये पृथ्वी लोमपादन ऋष्यशृङ्गको गज्यमे बुला कर उन्हें अपने पर अवतीर्ण हुए हैं। वदरी आश्रममें इनका निवास- मिन दशरथकी कन्या जिसका नाम शान्ता था, प्रदान की स्थान है। यह कह कर अर्जुनका समाचार युधिष्ठिरसे जिससे अनावृष्टि दूर हो गई। इन्हें रोमपाद मी कहते कहने के लिये इन्द्रने ब्रह्मर्णिको युधिष्ठिरके पास काम्यक हैं। (भारत वनपर्व २१०-११२ २०) बनमे भेजा। लोमपादपुरो-लोमपादकी राजधानी, चम्पा । २मध्वालु । ३ धातुकसोस । ४ मेष, भेड़ा। (नि.) लोमपादपू (सं० पु०) लोमपादस्यपूः । पुरीविशेष । पर्याय ५ अतिशय रोमान्वित, अधिक और बड़े बड़े रोए चम्पा, मालनो, कर्णपू । प्रत्नतत्त्वविद इस नगरीको वाला। सामुद्रिकमें लिखा है, कि लोमश व्यक्ति कदा वर्तमान मागलपुर और उसका समीपवती चम्पा अनु चित् भुवी हुआ करता है अर्थात् प्रायः ही दुःखी होता मान करते है। है। महाभारतके अनुसार जो धान्य चोरी करता है, वह लोमप्रवाहिन् (सं० वि० ) लोमं प्रवाहतीति प्रबह-णिनि ।। लोमश हो कर जन्मग्रहण करता है। , लोग चुत गर आदि। | लोमशकणं ( स० पु० ) शशक, खरगोश ।