पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३६७

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३७२ लोकस्कन्द-लोकामिमापिन लोग्लन्ट ( २० पु० ) तमालवृक्ष । फागुन चैन महीने में मजरिया लगती है और बड़े लोक्स्थर ( स० क्ली०) दैनिक घटना। वेरके बराबर फल लगते है। यह फट पकने पर पीले लोकस्थिति (मस्त्री०) २ प्रचलित पद्धति । ५ जाग होने है और मानेमें प्रायः मोठे, गुटार और न्यादिष होते तिक नियम। है। सहारनपुर में लोकाट बहुत अच्छा और मीठा उत्पन्न लोकस्पृत् ( स० वि०) लोमिनि दखी। होता है। यह फल चीन और जापान देशका है और लोकरमृत् ( सं त्रि०) जगन्को मलाई चाहनेवाला। वहींसे मारतकमे आया है। लोकहाँदी (हिं स्त्री०) एक प्रकारको हल्दी। लोकानिग (म पु०) १ असामान्य, मामूली। २ अन्दन, लोनहार (हि० वि०) लोकको हरण करनेवाला, ममार- मजवा । साधारण नियमने वादर। को नष्ट करनेवाला । लोकातिशय (स० पु०) र लोकातिग देवा । २ दैनिक प्रथा- लोकहास्त्र ( स० वि०) १ जगतका हाम्यास्पद । २ जन-1 से बाहर । साधारणका उपहास्य । लोकात्मन् ( स० पु० ) १ जगन् की आत्मा। २ विष्णु । लोकहित (म०नि०) लोकस्य हितः । १ जनताका मल्ल लोकादि (संपु०) जगष्टिको मादिका, ब्रह्मा । बाहनेवाला । (क्ली०) २ जनताकी भलाई । लोकाधिप ( स० पु० ) लोकम्य अधिपः । १ लोकपाल । लोकहिता ( म० बी० । १ तुत्थाजन । २ कुलथी। देवतामात्र । ३ नरपति । ४ बुद्ध । लोकाशाम ( स० पु०) १ याकाम, शन्यस्थान । २ जैन लोकाधिपति (सं० पु० ) १ लोकपाल । २ देवता । मतानुमगर विश्व जिसमें सब प्रकारले जीव और तत्व लोकानन्द-किरातार्जुनीय टीकाके प्रणेता। लोकाना (हिं० कि० ) फेफना, उछालना । लोकाक्षि (स० पु०) आचार्यमेट । मनुमहिनाकी ३१६० १९५० लोकानुग्रह ( स० पु.) १ जगत्का मङ्गल, ससारको टीकामे बुरुटकमट्टने इनका उल्लेख किया है। भलाई । २ प्रजावर्ग की उन्नति । ३ जनसाधारणके प्रति लोकाक्षि-दाक्षिणात्यक काञ्चिपुर-निवासी चित्रकेतुके | अनुकम्पा। पुद्र । मानापार्जनके बाद वे गजधानीका परित्याग कर | लोकानुराग (सपु०) जनसाधारण के प्रति स्नेह वा श्रीगेल पर रहते थे । "महाजनः येन गतः म पन्या" यह दया। नातिवाक्य उनके जोवनका मूलमन्त्र था। वे ज्यातिप, | लोकान्तर (स० क्लो०) अन्यत् लोक। परलोक, बह स्मृति और नन्त ग्रन्थ लिम्व गये है । नागाशि देखो। लोक जहा मरने पर. जीव जाता है। लोकाश्नि-लीगाक्षिका एक नाम । नांगाक्षि देगे। तोपचार ( स० पु०) लोकस्य आचारः। जनसमूहको | लोकान्तरण ( स० वि० ) लोकान्तर याति गच्छति वा आचार, लोकव्यवहार । जनसाधारण जिस आचार- लोकान्तर गम ड। १ मृत, मरा हुआ। २ लोकान्तर- पति के अनुसार चलने है, उसे लोकाचार कहने हैं।। गामी, परलोक जानेवाला। शनर म्यानीमे ल काचार शास्त्रवत् मान्य है। लोकान्तरिक (स० वि०) दोनों लोकके बीच बसनेवाला । लोकाचार्य-अष्टाक्षरमन्त्र-घ्याल्या, तत्वजय और वचन लोकान्तरित (स० त्रि०) १ जो इस लोक्से दूसरे लोकमें भूपणटीका प्रणेता । लोकाचार्गसिद्धान्त नामक चला गया है।। २ मृत, मरा हुआ। वेदान्त प्राय इन्दोंका बनाया हुया मालूम होता है। लोकापवाद ( स० पु०) लेाके अपवादः । जनापवाद, लोकाट ( हिं० पु. ) एक प्रकारका पौधा। इसके पत्ते लेनिन्दा। लंबे और नुकीले होते है, तेंदूके पत्तोसे बहुत कुछ मिलते लोकाभिमाविन ( स० त्रि०) सर्वव्यापी । नुलते हैं, पर तेंदूमे कुछ बड़े होते है। इसका पेड वीस लोकामिभापित (सं०नि०) १ जगहाञ्छित । (पु०) पचीस हायसे अधिक ऊंचा नहीं होता। इसके पेडमें । २ बुद्धभेद।