पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३६१

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लेहन-लैङ्गिक दिखाई देती है। काश्मीरराज गुलाबसिहने यहाके राजा- ले हनुर (हि पु०) कुम्हारोंका एक यन्त्र । उसले वे मिटो- हो गज्यच्युत करके यह स्थान काश्मीर-राज्यमें मिला को मिलान है। लिया। लदाख देखो। लेहाजा ( स० कि० वि०) इसलिये, इस कारण । - नगरसे दक्षिण पश्चिममे एक दुर्ग है। प्राचीन गज- लेहाड़ा (दि वि०) लिहाडा देखो। ' प्रासाद तीन पनका है । उसका गित्पकार्य उतना अच्छा ले हाडापन (हि० पु० ) निहाडापन देखा। नहीं होने पर री काठका बना बरामदा देखने लायक है। लेहाडी (हिं स्त्री०) अप्रतिष्टा, अपमान । चीन, तानार गार पक्षावप्रदेशमा वाणिज्यकेन्द्र होनेके ले हाफ (३० पु०) ग्निहाफ देखो। कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। यहां गाल बनाने के पशमलेहिन (म० त्रि०)१ ले हयुक्त, लीपा हुआ।२ ले हन का जोरों द्वारवार चलता है। यहां एक बेधालय । कारी, चाटनेवाला। म्थापित है। लहिन (सं० पु०) लिह वालकादिनन् । टट्टणक्षार, लेहन (संकी० ) लिहल्युट् । जिहा द्वारा रसास्वादन, सोहागा। चाटना। पर्याय-जिहास्वाद । लेही (मस्त्री०) कर्णपाली-दोग। लेहना (हिं पु० ) १ खेनमें छटे हुए, अनाजकी वह डांठ लेख (सं० ली. ) लिह ण्यत् । १ अमृत । २ बाट प्रकार ओ काटनेवाले मजदूर्गेलो काटनेकी मजरों में दी जाती के मोमेसे एक। ३ वह पदार्थ जो चाटने के लिये दो। है। २ टल वा वयाल याटिकी वह मादा जो उठाते- यह भोजनके छः प्रकारोंमेसे एक है। ४ अवलेह । (वि०) वाले के दोनों हाधों के बीचो बा सके। कटी हुई। ५ लेहनीय, चाटनेके योग्य, जो चाटा जाय । फसलका वह वाल महित उंटल जो नाई, धोबी आदिको लैंडो (40 स्त्री० ) एक प्रकारको घोडागाड़ा। इसमें दिया जाता है। ४ लद्दना देखो। ऊपर टप होता है। यह स्प वीचमसे इस प्रकार बुलना लेदरा-विहार और उड़ीसाके दरमहा जिले का एक बडाई, कि पिछला अश पीछेको और और बलगा यारोको नाब ! यह मधुवनसे बहेरा जाने के रास्ते पर अवस्थित योर सिकुड़ कर दव और नीचे बैठ जाता है। इसमें है। पण्डीट नील कोटीके अधीन यहां जव नीलका आमने सामने दोनों ओर बैठनेरी चामियां होती हैं। कारखाना बा, उस समय इसकी बहुत उन्नति हुई थी। लैंप ( म०पू०) दीपक, चिराग इसके एक बगलमें तीन बड़ी बड़ी दिग्गी है। उनमेंसे ले (हिं अध्य० ) पर्यन्त, तक । डीड नामक दिग्गी दो मील लन्ची है। उसके किनारे लैख (सं० पु० ) लेखका गोलापत्य । प्रायः ६५ वीघा जमीन तक इष्टकस्तूप फैला हुआ है। लैखाने य (सं० स्त्री० ) लखान वा लेखानका गोत्रा. यमो वह जलने ढक गया है। प्रवाद है, कि तिरहुनके पत्य। राजा शिवसिह यहा रहते थे। वह स्तूप उन्हींके लैगवायन (सं० पु० ) लिगुका गोत्रापत्य । प्रासादा ध्यसावशेषमान है। लैगथ्य ( सं पु० ) लिगुका गोत्रापत्य । ले हनुश्रा (हिं० पु०) एक प्रकारको घास। इसकी लैङ्ग (सं० लो०) लिङ्गमविष्कृत्य कृतो प्रत्य इति लिन- पत्तियां चार बगुल ल'दी, तीन गुना चौड़ी, ऊपरकी येदमिति वा लिङ्ग अण् । १ लिट्नपुराण । पुराण देखा। ओर नुकीली और धारोदार होती है। यह वरसानमें (त्रि०)२ लिङ्गसम्बन्धीय। उत्पन्न होती है और बहुत कोमल तथा लसीली होती लैङ्गिक (सं० वि०) १ लिङ्गसम्बन्धीय । २ लिङ्ग या है। इसना माग भी बनाते हैं। पशु इसे बड़े चाचसे प्रतिमूत्ति बनानेवाला । (पु० ३ वैशेपिकदर्शनले यनु- मान है। इसको पत्तो नेल आदिमें तलनेसे रोटीको सार अनुमान प्रमाण । सूत्र में इसका स्पष्ट लक्षण न कह तरह फूल जाती है। इसका दूसरा नाम कनकौवा कर इस उदाहरण द्वारा इस प्रकार लक्षित किया गया है, कि यह इसका कार्य है, यह इसका कारण है, यह इसका