पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३५१

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लेखपत्रिकाले ख्य लेखपत्रिका (रा. स्त्रो०) लिखित आवश्यकीय कागज- लेखिन (सं० डी०) १ अनन, बिह करना। २लेपन, | लिपना । खियां टी । ३ चाचा! लेखप्रणालो ( सं० स्त्री०') लिखने की शैली, लिखनेका लेग्य (सं०नि०) लिव-पयत्। १ लेचिनप्प, लैपाय, लिसने लायक । २ व्यवहाराष्ट्र निराशावाद । मिनासरा लेखपतिलेपलिपि (रा० सी० ) लेपनाया, लिखनेको सौर व्यवहारतत्त्व आदिम इसका विशेष विवरण लिका शैली । है। लेरय दो प्रकारका है, शासन और जानपद । इनमेसे लेरापंस (म० पु० ) लेखेपु देधेपु अपभः श्रेष्ठः, लेख अपम : जानपद के फिर दो भेद है, वहस्तल और अन्याहस्तछन । श्वेति वा। देवताओं में श्रेष्ठ, इन्द्र। । बहातात असाक्षिा और परहरतात समानिकह। लेखशेली (स० स्त्रो०) लेखप्रणालो।। छमाम बाट भ्रान्ति हो सतो है, दस कारण लेखसन्देशहारिन् ( स० त्रि०) पत्नवाहक, खतगीर। विधाताने अक्षरकी सृष्टि की है। इन अक्षर मारा पत्र लेखहार (गं० पु०) लेख हरति अण् । पलवाहक, चिट्टी पर लिप रसनेले उसको लेख्य कहते हैं। ले जानेवाला। (व्यवहारतत्वया वृहस्पति ) लेसहारक (सं० पु० ) लेखहार पर स्वार्थे कन् । पत. यास्यसहिनाम इस लेग्यका विषय यो लिसा वाहक, खतगीर । है-खादक और महाजन आपसमे सलाह करके सूद लेखहारिन् (रां० वि० ) लेखं हरति ह णिनि । पनवाहन,, और समय यादि विषयकी को ध्ययम्या करे, भविपमें चिट्ठी ले जानेवाला। | जिससे भूल जानेले कारण इस प्रतिकुल होने न पाये, लेखा ( स० स्त्री० ) लिरयते इति लिख वालात् अप इसके लिये उन्हें उन शत्तोंके साथ लेप्यपत तयार टा। लिपि, लिखावट । २ रेशा, लकीर। करना चाहिये। उसमें पहले धनीका नाम लिखना स्टेखा (हिं० पु०) १ गगना, हिमाव किनाव । २ ठीक ठोक होगा। यह लेख्य वर्ष, माम, पन्न, दिन, नाम, जाति, अन्दाज, कृत। २ अनुमान, विचार । ४ रपये पसे गोत्र, स-नहाचारिक (अर्थात् माध्यन्दिन आदि शाना. या और किसी वस्तुकी गिनती आदिना ठीक ठीक ध्ययनप्रयुक्त संतविशेष, जैसे अमुक माध्यन्दिन इत्यादि) लिखा हुआ ब्योरा, आय व्यय आदिका विवरण। । और अपने पितृनामादि द्वारा चिहिल होना आवश्यक लेखाधिकारिन् (म० पु०) राजके एक कर्मचारी जो है। अनन्तर उसमें व्यवस्थित विषय लिखना होगा। सेक्रेटरी कहलाते हैं। विष्णुस दितामें लिया है, जि लेग्य तीन प्रकारका लेपान (सं० पु०) पाणिनिके अनुसार पक नदीका नाम है राजसाक्षिक, ससाक्षिक और अक्षिक ! इस लेख्य- लेशन ( स० नो०) शिवादिगणमें उक्त एक प्राचीन को दस्तावेज़ कहा जा सकता है। राजा विचारालयम रमणीका नाम। (पा ४१११२३) राजाके नियुक्त फायस्थ द्वारा लिगित नया विचारपनि लेग्वादही ( हि स्त्री०) यह वही जिसमें रोकड़के लेन के दस्त आदि चिहयुक्त लेख्यको राजमाक्षिक कहते हैं। देनका ध्योरा रहता है। यह राजसानिक दस्तावेज आज कल की रजिष्ट्री दम्ता- लेखाई (सं० पु०) लेखे अहः । श्रीतालवृक्ष, हिताल- चेन-सी है। जिम किस्रो स्थानमे जिस किमी व्यक्ति- का पेड़। (ति०) २ लेखनयोग्य, लिखनेके लायक ।। के लिखित साक्षियोंके दस्तलिखित लेरका नाम लेपावलम्ब (सं० पु० क्ली० ) अद्धित-वृत्त । ससाक्षिक है। परहस्तलिखित लेस्पको असाक्षिक रहते लेविका (म० लो०) १ लिसनेवाली। २ गल्प या पुस्तक है। यह लेख यदि वलपूर्वा या छलपूर्वक लिस्वाया बनानेवाली। जाय, तो वह अप्रमाण होगा । दृपिन वर्गदुष्ट शर्थात् लेग्गिन ( ० त्रि०) लिस्यते यत् लिख-णिच् त।। जो व्यक्ति दुष्कार्य करनेके कारण दोपी समझा जाता है, लिखाया हुआ, लिपवाया हुआ। जो कूट साक्षी है, अथवा दृपित और कर्मदुष्ट है, ऐसे