पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३२१

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लिगायत छठी रातमें वे चांदीकी पार्वतीमूर्ति सतिकागृहमें। घर घोडे पर चढ र याजे-गाजे के साथ कन्याके घर पाठको चौकी पर रहते हैं । पीछे धानी उसके लाग्ने | जाता है। तय कन्यापक्षीय वरको ले जाने तथा दोनों फूल छीट देती तथा कपुर गौर धूना जलाती है। प्रसूनि- को उबटन लगा कर परस्परके फपडे के अचलमें गांठ के उस देवीमूर्तिको पूजा और प्रणाम मरने पर सनिका वांध देते हैं। तदनन्तर नवदम्पतीको ले कर निकटस्थ मारके सामने जंगम लिगाये जाते और उस चौकी पर महादेवान्दिग्में प्रणाम करा आते हैं। उमेके बाद विठाये जाने हैं। घरकी धाई तब पर थाल में पुरोहित से निर्दिष्ट चतुष्कोण शिलाके बीच रखी हुई काठको चौकी दोनों पैरको पखारती है। वह पादोदक पीछे घरके सभी पर उन्हें बिठाया जाता है। उसके चारों कोने में चार कमरे छीट दिया जातो और ममी पीते हैं । भोजनके | और सामने में पक पीनलकी जलपूर्ण कलसी रहती है। वाद दक्षिणा ले कर जगम विदा होते हैं। पन्या होने बाद वर योर कन्याके सामनेके नृपमवाहन शिवमूर्ति पर दश दिन तथा पुत्र होने पर तेरहवें दिन जात- पूजा करने पर जगम विवादका मन्त्र पढाते हैं । इम दाटकका नामकरण होता है। नामकरणके दिन पांव समय आत्मीय वजन दोनोंके मस्तक पर सधवा स्त्री आ कर बालकके नामकरण के बाद एकत्रित चावल छोंटने है। विवाह हो जाने पर वर मुटुम्ब-रमणिशेके साथ बैठ कर खाती है। यौर कन्या मम्मुपके शिव और नन्दीको प्रणाम __ अशौचान्त के दिन प्रति म्नान कर पास के मिसी परती हैं। तमोसे वे स्वामी और स्त्रीरूपमें गिने जाते महादेवमन्दिरमें पुतके साथ जाती है। उसके बाद वह हैं। इसके बाद कन्याफर्ता वर और कन्याको उपरोक्त घरका बाम काज कर साती है। छः महीने में अाबेदी पर पिटा कर अपने जामाताके हाथ एक नावेका घडा प्रागन देनेकी विधि है। एक वर्ष में चोटी रख कर या कलसी और पीतलकी थाली उपढीकन देते हैं। जातबालकका सिर मुड्या दिया जाता है। बालिका | पीछे शाति कुटुम्म और वरातका भोज होता है। विवाह होने पर उसका मामा आ कर सामनेके वाल छाट देते | के दूसरे दिन वरकर्ता पतोहको साथ ले अपने घर है। यही शायद उनका चूडाकरण है। लौटन है। जब बालक पाच वर्गका होता है, तब वह पाठशाला फिसी लिगायतका मृत्युसमय उपस्थित होने पर भेजा जाता है तथा वारह वर्गमे उसे शैवमन्त्रकी दीक्षा आत्मीय स्वजन उसकी आत्माको शुमकामनासे भिक्षा देने दे कर स्तोत्रादि पढ़ाया जाता है। पालिका सोलह हैं। मरने पर पडोसी शवदेवको एक काठको चौकी पर वर्गको न होनेसे कभी भी शिव मन्त्रका अभ्यास करने । मुलाना और उसके चारों कानेमें चार केलेका पेडं बांध की अधिकारिणी नहीं होती। वालिकाका ८से ले कर देता है। पीछे रंगीन कपड़े से ढक कर उस चौकीको १२वर्ग तक तथा युवकोंका १२ से ले पर २५ वर्ण | वाहर लाता है। यहां दे पानीसे स्नान करा कर मृत तको विवाह होता है। वालकके पिता .हो पहले | ध्यक्तिको नया वस्त्र पहनाता और उसके कपाल, छाती कन्याक के यहां विवाहका प्रस्ताव भेजते हैं । घरकर्ता, | और वा में भस्म लगा कर गलेमें फूलको माला पहना अंगम और नजदीकी सम्बन्धी कन्याके घर जा कर देता है । पीछे एक दीयो जला कर उसके मुंह और शरीर- विवाह टीक पर आते हैं। गतचीत पक्की होने पर वे को भारती उतारता है और तब चार आदमी चौकोको कंधे वन्याको नया वस्त्र और अंगरखा पहना कर उसके मुंह पर उठा कर समाधिक्षेत्र ले जाते हैं । शवके सामने एक मे चीनी देते हैं। पीछे कन्याकर्ता अतिथियोंके हाथ जगम मुहुर्मुहः शड्स बजाते और घंटाध्यनि परत तथा पान दे कर दिदा करते हैं। अपरापर स्त्रीपुरुष उसके पीछे 'हर हर महादेव' कहते हुए जंगम या स्थानीय आचार्य ब्राह्मणों के साथ परा चलते हैं। समाधिक्षेत्र पहुंच कर जहां शव दफनाया मर्श पर विवाहका शुभ दिन स्थिर करते हैं। विवाह के जाता है वहां पानीका छींटा दे कर चार हाथ गहराई दिन विवाहके लिये एक वेदी या मंडप तैयार होता है।। एक गड्ढा बनाते हैं। तदनन्तर शवको उसके भीतर