पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३१०

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लिङ्ग भी एक प्रिय वृप था । उम वृक्षा पत्र विन्यपत्रको की एलिगमूति देखने में आई है । यह इस देशके तरह तीन भागोंमें विभक्त था। धाम जिस प्रकार योनिलिगको प्रतिरूप ६ । भारतीय शास्त्रकारनि महादेवशा प्रधान तीर्य : मेम्फिस नगर भी उमी प्रकार निस प्रकार रिलिगको शिवको सृष्टिशक्तिका विसापक मोसारिस देवका सर्वश्रेष्ठ माहात्म्य क्षेत्र समझा जाता। यताया है मिनशाय इतिहासकारगण ओसोरिस देर है। दूधसे निम प्रकार शिका अभिषेक किया जाता } को गिनाक विषयमें भी हट्ट घेसी हो मोमासा है फिलिद्वीपमें योप्सीरिस देवक पीठस्थानमें भी उसी पर गये है। प्रकार प्रतिदिन ३५० वरतन दूध चढाया जाता था। धमतर नुसरित्सु वीस यनाने इस देगी दोनोंमें प्रमेद इतना ही है, किमि शेत धर्णदे पर लि गउपासनाके साथ मिस्रदेशाय लि गपूजाके दो ओसारिस कृष्णवर्ण होते हैं। रितु महाकाल नामक विषयमें पृथक्ना बतलाइ है। उनका कहना है, कि मिस्त्र शिवभूतिरिशेष मा कृष्णरणकी होती है। इसके सिवा । देशको तरह भारतवनमें लिगमूर्तिकी प्रामयाना या भारतवर्ष के नाना तोमि कमौरी पत्थर पर घोर थीर | नगरयात्रा प्रचलित नहीं है । उनका यह कहना नितान्त उमर कृष्णरर्णके शिलिग विद्यमान दम्खे जाते हैं। , अमूल । घगालशमें चैत्रोत्सर समय सन्यासी ___ मारतवर्ष में शिवलिंग-पूजावी तरह मिस्रदेशमै मा । लोग बढी धमधामम जलाशयमेंस शिरि गको पूजाकी मोमोरिस देयका लिंगपता गति प्रबल थी। यह पूजा। जगह पर लाते हैं। पीछे मस्तक पर रख कर गांवके विम प्रकार पसी, इम सम्य धर्म प चिदता इस प्रत्येक गृहस्थके घर ले जाते है तथा सिदि म्यानमें प्रकार है-टाइफन नामक दरतामात्रणा परफे मोसी रख कर उनकी अनादि करते हैं। बहुत दिनमे उडीसा रिसको मार उमफे शरीरको सएड सएड पर डाला। ये भुवनेश्वरक्षेत्र में चैत्रमासम लिगरानको रथयात्रा चली पदमाशुभ समाचार सुन उनका स्रा आइमीम याने भा रही है। उमो समय द्वीपमें शिक्षा विवाह उन सब सएडी साह कर विशेष विशेष स्थानमें गा| नामक एक महोत्सव होता है। इसमें शियजी पाने रसा। रितु पर लिगदेश न मिला तब उहोंने प्रति गाजे के साथ बडे ममारोहम भगतापे घरमें लापे नाते स्त्ति पना कर उमची पूजा और महोत्सवमा प्रचार हैं। विवाह हो नाने पर उन्हे फिर मन्दिरमें पहुना दिया। माते हैं। इस उपलक्ष में सात माठ ओसमे अनेक लोग मिनदेशके स्थान स्थााम तऊ नाम इसी प्रकार | नवद्वीप गात है। पनेसी साहयने यह भी कहा है, कि मोसोरिसका लिगपूजावी तरह शियलि गरी पूजाम - भरना हिन्दूशास्रोच दक्षा पथपत्र दिशा मद्यपानादि प्रचलित नहीं है। प्रकाश्य रूपसे ऐसा ध्यर निम के सदाका स्त्रिालयमें जाना तया निवको निदा मुन दार प्रचलित तो नहीं है पर वीराचारागण अप्राश्य पर सतीया दाराग मादि पाते याद मा जाती है । पर । रूपसे कुराचारक अनुष्ठान साथ शिरि गकी अजना शिव कंध पर स्थित रस सनाका विवान मुररानचनस) करते हैं। योगमारर्म म विश्व प्रतिपोपा सस्पर ५११योंमें विभक यिा । उग सती भगमे ५१ पोगका Tमाण भी विद्यमान है। उत्त मज मा कामरूपमें यानिपाठ रिद्यमान है। प्रीपदामें भी पा समय लि गपूना बहुत प्रबल थी। सर नापीको पूजा भोर रसव प्रचलित है । मालूम नरी, यहाक नारोंक प्राय प्रत्येक पथ पर भने मदिर और अमोरिस गमय यव पौरम्पमें मान य य या नहीं। शिवरि गमूर्ति प्रतिष्ठित थी। उन रि गोरे मध्य कुछ इस पारनात्य उपान्यानम सनी-गविता ल्नके काय सिप | हुभा है। मनभस्म के समय दिन कामदेवका मम्म संप्रदी Kennedes slesearches in to the यो।पर शिव प्रसनाधीनतानों उरमोम मिस उक्त nature and iffinity of Ancient and indey गिदन्ती प्रमिस हा रोग Mythologr P303