३००। लाहोर को पददलित किया था। उनके हठात् आक्रमण और वाद ही वृटिश शासनाधिकार भारम्भ हुआ। ' . विजयको देख बलवीर्यसम्पन्न सिखजाति अपने हृदयमें रणजिसिंह और पक्षाव देखो। अभ्युटानकी एक अभिनव आशा संचारित करने लगी। ____ पक्षाव प्रदेशमे अपना शासन विस्तार करने के अभि- गुरु नानक के धर्ममतने पहले ही उनका कलेजा मजबूत । प्रायसे १८४६ ई०के दिसम्बर महीने में अगरेजगजने कर समूचे पक्षीवमें धीरे धीरे एक जातीयशक्ति फैला दी | लाहोर नगरमें प्रतिनिधि सभा (Council of Rcgency) थी। सितगण उसं धर्ममंन्त्रके वलसे क्रमशः एकतावद्ध | कायम की तथा अगरेज रेसिडट हो यथार्थमें उस समय और चलदृप्त हो कर वैदेशिकका पदाघात सह न सके | लाहोरके प्रधान शासनकर्ता हुए थे। उनके अनभिमतसे तथा इच्छुक हो कर सभी वैदेशिक राजाका अधीनतापाश कोई भी सिख सरदार राज्यशासन संक्रान्त कोई काम तोड्नेका उपाय दृढने लगे। उन्होंने पहले डकैतोंकी तरह नहीं कर सकते थे। १८४६ ई०को २स्वी मार्गको दल वाध कर इधर उधर लूट पाट मचाया और धन | द्वितीय सिख युद्धका अवसान हुआ। युवक महाराज इकट्ठा कर पञ्जावके हर एक प्रदेशमें सरदाररूपमें अपना | दलीप सिंहने अगरेजके हाय राज्यका शासनभार सौंप शासन फैलाया। पीछे वे आपसमे मिल कर दो या तोन | स्वयं राजपद छोड़ दिया। तभीसे इस जिलेका शासन मिसलैमे एक एक शक्ति संगठन कर प्रवल शत्रुके आक्र कार्य अंगरेजोंकी शासनप्रणालोके अनुसार परिचालित मणसे स्वदेशकी रक्षा करने में आगे बढे.थे। होता है। खडग सिंह, नवनेहाल सिंह और दलीप सिंह देखो। -- - - - पजाब और सिख देखो।। १८५७ ई०के गदर में यहांके मियां मोर सेनावासके , १७४४ ६०में दुर्रानी सरदार अहमद शाह अबदलीने देशी सेनादलने वागी हो कर लाहोर-दुर्ग पर आक्रमण लाहोर पर धाचा, किया। इस समय मुसलमान शत्रुओंके | फरनेका पड़यन्त्र किया। सौभाग्यवश टिश गवर्मेण्ट. उपयु परि आक्रमण और लूट-पाटसे लाहोर नगर और से यह वात छिगी न रही। अगरेज सेनापतिने वहांकी उसको चतुष्पार्श्ववत्तों स्थान उत्सन्न तथा जनशून्य हो अगरेज कमानवाही और पदातिक सेनाओं की सहायतासे गया ! सिखोंने इस समय यथेष्ट वीरत्वका परिचय दिया | उस वागो सेनादलको अपने वश में कर उनका सव हथि- था। १७६७ ई०में अह्मद शाह अन्तिम बार भारतको लूट | यार छीन लिया। इससे उनको आशा व्यर्थ हुई सही, तधा विजय कर खदेश लौटे। उसके बाद ३० वर्ष तक पर लाहोर-राज्यकी विद्रोदवति न वुझी। दीर्घकाल- लाहोर नगरमें किसी प्रकारका अत्याचार तथा दुर्घटना घ्यापी गदरके समय यहाके सिखोंने भी बीच वीवमें नहीं हुई तथा उद्धत सिख-सम्प्रदाय इस समय किसी अगरेज राजको शफामें डाल दिया था। • उक्त वर्षके तरहके युद्ध-विग्रहसे क्लिष्ट नहीं हुए थे, वरन् उनका वल | जुलाई महीनेमें मीयान मोरके २६ देशी पदातिक दलने वढ़ता ही जाना था। समूचे लाहोर जिले में उस समय । विद्रोहो हो कर सेनानायकके प्राण लिये और सबके सब - भंगी-मिसलके तीन सरदारोंने अपना अपना प्रभाव | छिप रहे। अमृतसरके डिपुटो कामश्नर - म फैलाया था। , . . . . . . द्वारा परिचालित एक दल अङ्गरेजो-सेनाने इरावती नदीके १७९१ ई० में सिख-सरदार रणजित् सिंहने अफगान-1 किनारे उनके सामने हो कर लड़ाई की । - इस युद्धमें - आक्रमणारी जमान शाहसे लाहोर पा कर अपना राज देशो पैदल सेना पूर्णरूपसे हारो थी। उसके बाद दिल्ली पद कायम करनेका.संकल्प किया । क्रमश' उन्होने अपनी नगरके अधःपतन तक अङ्रेजराजते लाहोरकी रक्षाका बुद्ध और भुजवलसे पंजाब प्रदेशका अधीश्वर-पद प्राप्त अच्छा वन्दोवस्त किया था । दिल्ली राजधानी अगरेजोंके - किया तथा "पञ्जाव-केशरी महाराज रणजित् सिंह" पदानत होते देख यहाँका विद्रोहो दल उनके वलबीर्य और नाममे विस्मात हुए.थे। इनके परिश्रम तथा वारतासे वीरत्वसे स्तम्भित हो गया। अजित यह पञ्चन जे उनके वंशधरोंकी शासन शक्तिके लाहोर नगर और मीयान-मीर गोरा बाजार, कसूर, अभावलेता गृहविवादसे शीघ्र हो नष्ट हो गया। उसके ! जुनियनपट्टो, खेमकर्ण, राजा जङ्ग और शूरसिंह नगर,
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