पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२३१

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लाक्षारस-लाखेरी २३६ लाक्षारस (सपु०) लोक्षयाः रसः । महावर जो पानीमे अभी तक नहीं बनवाये गये?" सभासद्ने उत्तर दिया, लाख औटा कर बनता है। "अन्नदाना! कपडे तो बन गये ।" लाखनसेन बोले, लाक्षावटी (सं० स्त्री०) शोपविशेष । प्रस्तुत प्रणाली- 'तव ये शोर फ्यों मचा रहे हैं । अच्छा इनको रहने के लिये लाख, भेला, अजवायन, सफेद अपराजिताको छाल, मकान बनवा दिये जाय । इतिहास-लेखक लियते हैं, कि अर्जुनके फल और फूल, विडंग, माखी और गुग्गुल इन राजकर्मचारियोंने शीघ्र ही राजाको इस बाशाका पालन सवों को एकत्र चूर्ण कर गोली वनानी होती है। किया। मोढा जातिकी रानी इन पर अपनी बडी प्रभुता इस औषधको घरमे रखनेमे साप तथा चूहा आदि घरमे नती थी। रानीने अपने पिनाकी गजधानी अमर- पैठ नही सकता । ( रमेन्द्रसारस पायडुरोगाधिका०) कोटसे बहुतेरे अपने कुटुम्बी बुलाये थे और उनके हाथमें लाक्षावृक्ष (सं० पु०) १ कोगाम्रक्ष, कोसमका पेड।। गज्यका एक एक काम सांप दिया था। किन्तु एक दिन २पलासका पेड़। विना कारण ही लाग्ननसनने उन सभीको मार डाला। लाक्षिक (स. त्रि०) १ लाक्षासम्बन्धी. लाग्वका । २ इनिदासमे लिखा है, कि इस नियाँध राजाने चार वर्ष लाक्षाभाव, लाखका बना हुआ। नक राज्य किया था। इनके पुत्र का नाम पुण्यपाल था। लाक्षेय (सं० पु.) लक्षका गोत्रापत्य । लाग्बना (हिं. क्रि० ) लाग्न लगा कर वरतन या और लाश्मण (सं० पु०) १ लक्ष्मणका गोलापत्य ।२ लक्ष्मण किसी चीजमेका छेद बंद करना। वृक्षसम्बन्धीय। लापपती (हि.पु०) लसपती देखो। ला-मणि ( सं० पु०) लक्ष्मणका गोलापत्य । लाखा (दि. पु०) १ लाया घना हुआ एक प्रकारका लाक्षमणेय ( स० पु०) १ लक्ष्मणका गोनापत्य । २. रंग। इसे स्त्रियां सुन्दरताके लिये होठों पर लगाती हैं। बगालके सेनवंशीय पक राजा । सेनगजत्रश देखो। २ गेहूं के पौधों में लगनेवाला एक रोग । इससे पौधेकी लाश्यिक (सलि०) लक्ष्यमधोते वेद वा (ऋकथादि- नाल लाल रंगको हो कर सड़ जाती है । इसे गेरुआ या सूत्रान्तात् ठक् । पा ४२२६०) इति लक्ष्य ठक् । वह जो कुकुहा भी कहते हैं। यह एक प्रकारके बहुत ही सूक्ष्म लक्ष्याभ्यास या भेद कर सकता है। लाल रगके कीड़ोका समूह होता है । ३ एक प्रसिद्ध लाख (हि० वि०) १ सौ हजार । (पु०)२ सौ हजार- ' भक्त । यह मारवाड देशमें रहता था। संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है -१०००००। लाखागृह (सं० पु० ) लाक्षागृह देखा। (क्रि० वि० ) ३ वहुत, अधिक। (स्त्री०) ४ लाक्षा देखो। लाखिराज (हिं० वि० ) वह भूमि जिसका लगान न देना लाखनसेन-जयसलमेरके एक राजा। इनके पिताका । पडता हो, जिस पर कर न हो। नाम था कर्णसी। पिताकी मृत्यु होने पर लासनसेन लाखिराजी (हिं० सी० ) वह भूमि जिस पर कोई लगीन सन् १२७२ ईमें जयसलमेरके राजसिंहासन पर बैठे।। न हो। सेबडे सीधे सादे थे। इनको सर्वदा एक प्रकारका 'लाखो ( हि वि०) १ लाख के रंगका, मटमैला लाल । उन्माद रोग हुआ करता था। एक दिन माघके महीने में (पु०) २ मटमैला लाल रंग, लाखका सारंग। (स्त्री) गीदड़ बड़े जोरसे चिल्ला रहे थे । लाखनसेनने सभा- ३ लाखके रंगका घोडा। सदों को बुला कर कहा, 'ये क्यों चिल्ला रहे हैं ?' एक सभा- लाखेरी-बबई प्रदेशवासी जातिविशेष । लाहसे चडी सदने उत्तर दिया कि जाडसे व्याकुल हो कर ये चिल्लाते आदि वनाना ही इनकी उपजीविका है। उन लोगोंका हैं । लाखनसेनने उत्तर दिया, कि इनको कपड़े। कहना है, कि उनके पूर्वपुरुष मारवाड़से अह्मदनगर, वनवा दिये जाय। कई दिनोंके पीछे राजाने पुनः उस- धारवाड आदि दाक्षिणात्यके प्रधान प्रधान नगरों में आ फा चिल्लाना सुना । तव राजाने अपने उसी सभासद्को कर वस गये हैं। ये लोग हिन्दूधर्मावलम्थी हैं। इनमें वुला कर पूछा-"अब ये क्यों चिल्लाते हैं क्या इनके कपड़े। श्रेणिगत कोई विभाग नहीं है। एक उपाधिवाले व्यक्तियों में