पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२१६

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लशकर-सन २२१ असम्मान वणिक पश्चिमी भारतके वाणिज्यके लिये भारत, निहे जवा कहते हैं। चैयरमें यह मासवर्द्धक, शुभ भाते जाते थे, उनमें से बहुतेरे यहोंके मधिषासी हो गये | वई, स्निग्ध, उष्ण गोय, पाचक, मारक, पटु, मधुर, इसी पणिकसम्प्रदायने १६वीं सदीके प्रारम्म तक दक्षिण तीक्ष्ण, हट्टी जगहको ठोर रोगाला, कफवातनाशक, भारतमें अपनी धाक जमा ली थी। पुर्तगीन वणिकोंके | काठगोधा गुरु रत पित्तवर्द्धक, बलकारक, वर्णप्रसादक, प्रभायसे उक्त मुसलमा1 वणिसम्प्रदायाा पाणि मेघाजना नेत्रों का हितकारी, रसायन और हटोग जीर्ण धीरे धीरे हास होता गया। भारतवासी ये सब पर कुक्षिशूल, गुल्म, अवचि, कास, शोध, आमदोष, मुसलमान वाधर ही अमी रचय कहलाते हैं। ये खास कुष्ट अग्निमान्ध, समि, यायु ध्यास तथा कफनाशक पर मारवाडी और हिन्दी भाषा बोलते हैं। माना जाता है। भावप्रकाशमें लिया है, कि लहसुन इनका मुह और काली काली आँख देघनसे मालूम | बानेवाले के लिपे खट्टी चीज, मध और माम हितजनक है होता है, कि नाना पैदशि रस्के मिलनसे यह जाति तथा क्मरतापप फ्रोध. अधिक जल. दध और गड उत्पाद है। पेस्समावत: नाटे लेकिन बडे पलि। महितकर है । वैद्यार्मे इसके बहुत गुण कहे गये हैं। यह होते हैं। इनका माचार व्यवहार सराहनीय है। ये साफ नरकारीके मसाले में पड़ता है। भायप्रकाशमें लहसुनके सुपरा रहते हैं। चमडा, मुता, किमती गत्यर, चावल सम्मधर्म यह आपयान लिखा है, जिस समय गड मौर नारियल येचना हो इनका जातीय यनसाय है। इसे यहासे अमृत हर पर लिये जा रहे थे, उस समय पे साफा सम्प्रदायमुक और सु ना मतावलम्बी हैं।। उसकी एक बूद जमीन पर गिर पडा, उसीमे लहसुन धर्मकर्ममइनका पूरा ध्यान रहता है। आधेसे अधिक | को उत्पत्ति हुई। मनुष्य चमका कारवार करते हैं। रसायके लिये धर्मशासके मतसे लहसुन पाना एक्दम निषिद्ध है। पेसिंहलद्वीप तक धावा करते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय और पैश्य, इन तीन जातियों को कदापि एशकर (फा. पु०)१ सेना, फौज । २ मनुष्योंका भारा लहसुन नहीं खाना चाहिये। समूह, मोहमाह। ३ जहाजमें काम करनेवालोंश दल, । "लशुनं गृञ्जन चैर पलायदु ककानि च । जहाजी मादमी। ४ फौजफे रिकनका स्थान, छावनी। अभदयाणि द्विजातीनाममेध्य प्रभवाय च ॥ शरा (फा० वि०)१ फौजका, समासमधो । २जहाज (मनु ५५) स सम्बन्ध रखनेगा । ३ जहाज पर काम वरनवास, लशुन, गुंजन पालगण्ड क्यक मीर अमेध्यप्रभाय अर्थात् विष्ठादि जात वस्तु द्विजातियोंकी अमश्य है। बरामी । (पु०) ४ सैनिक, सिपाहे । ५ नहाजी आदमी। ६ जहाजियों या खासियोंकी भाश। कुल्लूरभद्दन उस श्लोक्को टोकामें लिखा है,-'दिनाति ग्रहण शूगरयुगामाय द्विजाति पदसे पर्युदासार्थ एशकारना (फा० कि०) शिकारी कुत्तोंको शिकार पाउन अर्थात् अप्रशस्ता जानने पर शूट भा भक्षण न करे। के लिये पुशार कर पढावा देना, रंहकारना। यदि करे तो काइ विशेष दोपायह नहीं होगा। लहसुन रशुन (सलो . ) अश्यने भुज्यते इति अ7 (मशेप्तश्च । | दिनानियोंक ममप है शह दिशातिमें गिना नहीं जाता। ग्ण २७) इति उनन्, लशादश्व धातो । रसोन, रद सन । पर्याय-महीपध, गृधन, अरिए, महामन्द, रसोनक, । अनए शद हसुन भक्षण कर मफेगा यह शास्त्रका अभिमत नही है। सोन, म्लेच्छकन्द भूनन, उप्रगन। लहसुनका नह या मनु और यापर यम मतसे यदि को द्विजाति कन्द प्याजक ही समान तीक्ष्ण मोर टन गधवाला शेती। शता (ग्रामण क्षत्रिय जान वृझ कर लहसुन मक्षण परे, है। इससे बहुत-से माचारवान् हिन्दू विशेषत वेश्याव तो ये पतित होंगे। ममानत भक्षण करनेम पेपर मही बात, प्याजको गांठ मीर लहसुनती गांठको बना भाटायण तथा मानन भरण करनसे उन्हे चादाय घरमै बहस मतर होता है। प्याजको गाठामर पालिका पन सम्बार करना होगा, नहीं तो ये सध्य मितको तहाँस मढी हुइ होती है, पर रइसुनकी गाठ ! यहाम गौर पतित होंगे। पारो मोर पर परिमें गुठा हुर फारसे पनो होती (भनु RE२०, पारस १३) पलाएर देखे। Tol, LL, 6