पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१६६

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लग्नेश-लघुकाय- १५ लग्नेश ( स० पु०) फलितज्योतिषम यह ग्रह जो लानका (स.की. ) लडतेऽनेनेति लड (लवियोनोपश्य। स्वामी हो। | उण १३०) इति कु, धातोनलोप) १शीघ्र, जल्दी। लग्नोदय (स० पु०) पिसी लग्न के उदय होनेका समय ।। २ कृष्णागुरु, काला अगर। ३ उशीर, जम ४ हस्ता, २लगनके उदय होनेका कार्य । अश्विनी और पुया नक्षत्र । पे तीनों नक्षत्र ज्योतिपमें लट ( स० पु०) लट्वने मध्यस्थान:स्पृचा उत्तरस्थाने छोटे माने गये हैं और इनका गण लघुगण कहा गया पतति प्लुतं इतस्ततो गच्छति पालव ( सई नलोपश्च । है। (वृहत्सCE)५ समयका एक परिमाण | परद उप । १६१३४) इति भति, नलगेपश्च धातोः । वायु क्षण परिमाण फाठको लघु करत है । पञ्चकाष्ठा परि माणका एक क्षण होता है। (भाग० ३।१११७) हधा। (पु.)६ तीन प्रकार के प्राणायामोमेंसे यह प्राणा- ल्धरि ( स. पु०) लघ गतौ अदि, इदभाषः । यायु । याम जी वारद मालागोंका होता है। शेष दो प्राणायाम घडवगा (fr.पु.) लघड दस।। मध्यम और उत्तम कहलाते हैं। ७ व्याकरणम यह स्वर स्पती (सस्त्री०)पक नदीका नाम) । जो एक ही माताका होता है। जैसे,--अ, उ, ओ, लघमीपुष्प (हिं० पु०) पद्मराग मणि, लाल, माणिषय । | एनादि । ८ छन्द शास्त्रोक लघु गणभेद । छन्दके रघरि-पक असभ्य जाति ।। रचित (स० पु०) प्राचीनकारका एक प्रकारका धारदार | लक्षणमें 'न' शब्द रहनेसे तीन लघु, 'म' शब्दमें मादि पत्र। इसमें दस्ता स्गा होता था और इससे मैसे) गुरु तथा शेष दो लघु 'घ' शब्दमें आदि लघ, जो आदि और शेष लघु लघु 'स' पहला दो लघु, 'त' मादि काटे जाते थे। लधिमन् (स.पु.) लघोधि रघु ( पृथ्वादिभ्य इम | | शेष रघु और 'ल' शम्दम सिर्पा एक लघु होता है। निधा। प ११२२) इति इम नि । १ घुरम, लघु (छन्दाम०) रोगमुक, यह जिसका रोग छूट गया हो। या हम्ब होनेका भाष । २ अणिमादि ऐश्वयों के भत रोग छूटने पर शरीर कुछ इला जान पड़ता है। र्गत एक ऐश्वर्य | साधनाफे द्वारा यह ऐश्वर्य लाभ १० घशीका छोरा होना जो उसके छ दोषोमस पक होता है। योगियोंके सयम सिद्धि द्वारा शित्यादि पञ्च माना जाता है । ११ चादी । १२पृक्षा, असपरग। १३ पिडि भूत जय कर सकने पर उनके मणिमादि माठ ऐश्वर्या की सागर (स० ) १४ भगुरु, हलका । १५ जो बडा सिद्धि प्राप्त होती है। लघुत्वको लधिमा पहते हैं। न हो, कनिष्ठ। १६ सुन्दर, पढिया। १७नि सार जिममें विमा प्रकारका सर या तत्त्व न हो। १८ घोडा, जो व्यक्ति लघिमा शक्ति प्राप्त करने है ये बहुत छोटे था, म । १६ दुर्यर, दुबला । २० नाव! काको तरह इलपे बन सकते हैं तथा ये जर मादिके लघु आमार्य-एक कार ने त्रिपुरसुन्दरीस्तोत्र ऊपर आसानीसे चल साते हैं। या त्रिपुरास्तोल, देवीस्तोत्र गौराघुस्तय बनाया। ये (पास इलद० विभूतिपा०४६)लघु पण्डित नामस भी प्रसिद्ध थे। लधिमा (स० वि०) लघिमन देवा । लघुपट्रोल (म.पु.) पर प्रकारका क कोल जो साधा लपिष्ठ (स.लि. ) अयममयोरेपा या अतिगपेग लघु। रण ककोलस छोटा होता है। लघठ। अतिशय लघु त्वयुक्त, बहुत छोरा या लघुराइ हि स्त्री०) क्यकारी देखा। लघुकरण ( स • पु० ) शुद्धजोरक, सफेद जीरा। पिष्ठमाधारण गुणनीयक-~भइविशेष, एक तरहका रघुगएको (सर स्त्रो०) लजालू। हिसाव। लघुक्कंधु ( स० पु.) भूमियदर, भुयर। Pघीयम् (स.लि.) अयमनयोरेपा या अतिशपेन घुः लघुकणों ( स० रबी०) मा । लघदयसुन् । भतिशप लघुत्ययुक्त, बहुत छोटा या लघुकाय (स.पु.) रघु कायो यम्य । १ डाग, बकरा। 1 (नि०)२श देशरी नाटा।