पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१२२

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मकलार-लगर ११६ मातृकायासमें इस वर्णका कुददेशमें न्यास करना , रहता है। कुछ पलोंमें यह ऐसे पुरजोंका भार रोक रखने होता है । काय आदिमें इस गन्दका प्रयोग नहीं करना न व्यवहार किया जाता है जो एक थोर बहुत भारी होते हैं चाहिये, करनेरो विपत्ति होती है। सौर प्राय इधर उधर हटते बढने रहते हैं । वही घडियौन र फलाट (म0पु०) पक प्रकारका मोटा पढिया पहा। जो एगर होता है यह चामो दौर कमानीके जोरसे एक यह प्राय धुला हुआ होता है। मीधी रेया धरम उधर चलता रहता है और घहोकी काल (हि.पु.) सिह, शेर। गति ठीक रखता है। ३ जहाजी का मोरा बडा रस्सा। रकोड (दि. खो०) सहोदक दम्वा । ४ाडीका यह पुदा पो किसी हरदाइ गायके गरेम लग (फास्त्री०) लोग देवा। (पु.)२ लगडापन। रस्सी द्वारा घाध दिया जाता है। इसके साधनेसे गाय लग (फा. पि.) लैंगता दखो। (पु०) २ अगर देखो। । इधर उधर भाग नहीं सकती। रसे टेसुर भी कहते हैं। रंगहा (हिं० यि०) १ जिसका एक 'पैर येकाम या दृटा ५ चादीका दमा हुमा तोडा जो पैरम पहना जाता है। हो। २. जिसका पर पाया हटा हो। (९०) ३ एक प्रकार इसको बनायर जनारकी सी होती है।६ लोहेको मोरी का बहुत बढ़िया पलमी आम। यह प्राय घनारसमें } और भारी जजीर । पहलवानोका रगोट। ८ मह होता है। कोश । क्सिी पदार्थ नीवेका यह भाग जो मोटा लंगहाना (हिं० मि०) चलने दोनों या चारों पैता और भारी हो । १० कमरके भाग । ११ या स्थान जा ठोक टोक और वरावर न बैठना वल्यि फिमी एक पैरका। बहुत से रोगीका भोनन एक साथ पता हो।१२ कुछ का या दव पर पड़ना, रग करते हुए चलना। काडेमैफे घे राके जो दूर दूर पर इसलिये वाले जाते हैं, रगडी (दि. स्त्री०) १५ प्रकारका छन्द। (वि०) निसमें मोडा हुआ कपडा अथवा एक साथ सीप जाने २वली जोरावर । ३निस साफा पर पैर येकाम या पाले दो कपडे अपन स्थानसे हट न जाय । इस प्रकार टूटा हो। | के टाके पको सिलाइ करनेसे पहले साले जाते हैं इसीसे एगर (का.पु.) लोहेका बना हुआ एक प्रकारखा इसे रची मिलाह भी कहते हैं । १३ यह पका हुमा बहुत बडा कारा। इम पाटेके बीच एक मोटा या भोजन जो प्राय हर रोज किसी निश्चित समय पर दोनों घर होता है और एक सिरे पर दो, तीन या चार रेदार और दरिद्रो अादिको दारा जाता है। १४ यह स्था झुती नुकीलो मायाए और दूसरे सिरे पर एक जहा दोनों ओर दरिद्रो आदिको पाटनके लिये भोजन मायून कडा 7गा हुआ होता है। इस फाटेला व्यवहार पाया जाता है । १५ यह उमडी हुइ रेखा जो १३ घही वडा नावों या जहाजोंको जलमें किसा एक हो कोशक नीचेक भागसे शुरू हो र गुदा तक जाती है, स्थान पर ठहराये रखने के लिये होता है। इस ऊपर सोयन । १६ वह स्थान या व्यक्ति आदि जिसके द्वारा कहे में मोटा रस्सा या जजोर मादि वाध कर से योग विसापिसी प्रकारका माश्रय या सहारा मिलता पानी में छोड़ देते हैं। जब यह तलमें पहुंच जाता है तब हो।(वि०) १७ जिसमें अधिक बोझ हो, भारो।१८ इस रे मई जमीन का पत्थरों में अह जाते। नटपट, ढीठ। १६ नगड़ा दो। है जिससे नाय या जहाज उसी जगद यक जाता ल्गरक्षाना (फा०पु०) यह स्थान पासे दरिदोंको या दे और अब तक यह फिरषींच पर ऊपर नहीं उठा पनापा भोजन पांग आता हो। लिया जाता तब तक नाय या अदाज भागे नहीं बदल गरगाह (फा० पु.) किनारे परका पद स्थान जहा साता। रस्सी या तार गादिमे यघो और लरकता र गर डाल कर जहाज टहरापनाते हैं। हु को मारी चोमा मायादार प्रकारकी पोंगर (हि.पु.) १यदर ।२५छ दुम। ३१ विधर में और विशेषत पसा घडियों मादिमें होता है। ऐमा! प्रकारका यंदर। यह साधारण पदरसे यदा होता है रगर पाय निरन्तर एक योरमे दूमरो मोर माता जाता [ और इमफी पूछ बान सम्या होती है। इसके सारे