पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/११४

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रोबिछा-गोहिश हाफिज रहमत्के साथ महाराद्रिदलका मधि प्रस्ताव । इस युद्धर्म यजीरका पजामा बाली हो जाने के कारण चलता देय हेष्टि सपो बहुत पित्र हुइ । उहोंने अयोध्या । उसने मराठोंने अपना प्राप्य मागा। हाफिज रहमत् देने पे घजीरका पक्ष लेने और गरेपनि स्वार्थ माधनेके कोर जी न हुआ इससे उसके विरुद्ध मुद्ध ठान देनेका लिये सेनापति सर रापर्ट कारपे अधीन एक दल हुकुम भा। किन्तु सुनाने युद्ध परके राजकोप खाली मनरेजी सेना भेजी। माटोको रोहिग्य एजरे भगाना परना न चादा ! इस पर पिम्सने धारापानीको सचि ही उनका मुख्य उद्देश था । सेनाध्यक्ष कारने सुजा के अनुसार उमे ५० लाख रुपये है पर इलाहाबाद और उहीलाके साथ शर्त परम दो दर अडूरेज, छ दल शेरा खरीद लिया। इसके बाद रोहित्गेको मार भगाने सिपाही और एक दल कामानगाहो सेना ले पर १७७३ | कोशिश होगी लगी। यजीरने इसमें अपनी सम्मति १० मा मासमें अयोध्यासे रोहिलखण्डकी यात्रा कर दो सही, पर सेना एक भी न मेजो। दी। अयोध्यानी सेना अरोनोगना रोपिसको १७७४ १०में सुजान मराठोंको धीमायसे भगा कर मदद देगी, इस मागय पर सुजा होलाने हाजिद जाषिता खाँ तथा ठान्या । सरदारोंसे मेल कर लिया। मतको पत्र लिखा था मराठोंक विद्ध यद्धघोषणा। किन्तु शीघ्र ही उसका मन बदल गया। उसने रोहिल्ला करनेका सपरप किया । इस प्रस्तान पर हाफिज रहमत् । ओमा दमा करनेफे अभिप्रायस पुन हटिसको सहायता सहमत न हुप । सेनापति कारन जब देखा कि हाफिजन प्रधना की। सेनापति येकार उसरी मददमें मेने गये। जापिता या और महाराष्ट्रका पक्ष रिया, तब यह दल यातको वातम नंगरेजो सेना अयोध्या प्रान्तों ना धमकी। बल के साथ रामघाटकी ओर अग्रसर हुआ। यहा बीये काल चम्पियनशिक्ट सधिका प्रस्ताव भेज़ पर भी दुमरे किनारे महाराष्ट्रगण मसैय रहने हाफिज हाफिन रहमत् प्राप्य रुपये देनेको रामोन हुआ। पर रहमत् गठनापूर्वक बाज तक महाराष्ट्र या सुजाफे दर । युद्ध अवश्यम्भागी हो उठा। उसी वर्षकी २३वी अमिलको में शामिल न हुमा था। महाराष्ट्र सेनापनिने समय न । राहजहानपुर निलेके गोरन परराम युदलिडा। रण खोकर पर पूर्व उसे वीभूत परनेकी चेटा की। क्षेवम हाफिज रहमत्के साथ करीब दो हजार रोहिलाने उहोंने नदी पार कर हाफिज रहमत के शिविरव मागो प्राण विसजन किये। इसके बाद फ्यजल्ला नेरोहिलो रोहिल्ला दुर्ग पर शाक्रमण कर दिया, मि तु चे भररेजों का नेतृत्व ग्रहण बिया लहो, पर वह युद्धमै अममर्श के साथ युद्ध करनेक ठि५ तैयार न हुए। हो रामपुर, तरा और पाछे गडवाल के पतिमानुदेशमें इधर २१वीं माचको हाफिज रहमत् धोद उपाय न ! भाग गश और यदी से सघिका प्रस्तारिख भेजा। देख सुजाके प्ररताको मान कर उसके इलम मिल जुनमाम म गरेश गौर चीर सेनाको पर्वात सोमा त गया। इससे मराठोंको पीछे हटना पडा । पर वार पर उपस्थित देख डर के मारे उसने सघिकी शर्त मजुर आक्रमणका भय दिखा कर उन लोगोने सुजा और बङ्ग पर ली। रेनोंको उत्तण्ठित किया था। आखिर म मासमें दाक्षि अगरेजी सेना और बनारके यासे चले ज्ञान पर णात्य महाराष्ट्र सरदारों के योच मगोमालिन्य हो जाने । फजुला पाच हपार रोहिल्ला ले कर रामपुर माया और से उहोंने बाध्य हो कर उत्तर भारतको छोड़ दिया। राज्यशामन करने लगा। वाफी रोहिला सेना सरदारक इससे वजीर और गरेनौक सितार चमक उठे। महा साध रोहिल पण्डका परित्याग पर जाविता खाँके इलाके राष्ट्र शक्तिका बिलकुर लोप हो गया। इस भीषण | में रहने रगी। इस युद्धम रोहिला जातिके ऊपर जो विवादसे महाराष्ट्रीय सरदार तितर बितर हो गये। अत्याचार किया गया था यह महामति वानरको १७८६ उन लोगान जोहाखमे अधिक अश्वारोही सना और१० इ०४थी अप्रिलको धक्तृताम तथा राड मेक्लक विव रोड तडा वसूल किया था उसीफो आपसमें घाट पर रणर्म साफ साफ लिखा है। महाराष्ट्र सरदार चुप हो वैठे। इमो समयसे महाराष्ट्र रोहित (सलो०) मा नामक घाम | इसकी जड शक्तिका नसान हुआ। | सुगन्धित होती है।