पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१०६

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रोहन-रोहरी १०३ ___उठापे खड़ा है। सुल्तानपुर और काङ्गरासे जो चौडा। दोनों किनारा घालुफापूर्ण मरमान्तरम बदल गया है। रास्ता रेहवारपद तक गया है यह इसी रास्तेके ऊपर | एतद्भिः सेतीवारीको सुविधाके लिये यहा बहुत सी से चद्रा और भागा नदीको उपत्यकाको पार कर चारा नहरें हैं। उनमेंसे पूर्ण नारा १३ मोल, लुण्डी १६ मील ठाचामें मिला है। दिसम्बर मगनको छोड कर अभी अगेर १८ मील, दहर २६ मील, मसु २२ मील, कोराइ समी समय यह रास्ता नाने माने लायक रहता है। । २३ मोल, महारो ३७ मील और देवरो १६ मोल, रोहन (हि० पु०) एक प्रकारका पेड। इसे सहन और लम्बी है। इन सब नहरांसे स्थानीय जमींदार फिर सूमी भी कहते हैं। यह पेड बहुत बड़ा होता है और । ५७ नहर काट कर अपन अपने इलाके में ले गये हैं। दक्षिण तथा मध्यभारतके जगलों में बहुतायतसे होता है। यहा मट्टोर वरतन, सूती कपडे और चूनेका विस्तृत इसको एक्झी मकानों में लगती और मेन, पुरसी आदि। कारवार है। घोटकी और सैरपुर घी गरम फसी, सजाघर के सामान बनानके काममें आता है। हीरको नासदानो, कैची और रसोईके बरतन तैयार होते हैं। एकड़ी बहुत फडो, मजबूत, टिकाउ चिफ्नो नधा ललाइ यहासे तरह तरह के अनाज, सन्जीमिट्टो, चून, तेल, पशम, लिये कारे रगको होती ह । शिशिर ऋतुम इस पेडके | रेशमी वस्त्र, नील और खाद्योपयोगी फलादिकी विभिन्न पत्ते भरते हैं। स्थानों में रफ्तनी होती है। नार्थवेष्टर्न रेन्येके खुल रोहना (हि.मि.) १ चढाना, ऊपर करना । २ अपो जानेसे व्यवसाय वाणिज्यमें वही सुविधा हुह है। ऊपर रखना, धारण करना। ३ समार राना। सिधुप्रदेशके शिकारपुर जिला तर्गत पर तालुक। रोहन्त (स० पु० ) रुधादिति ६ (हिनदिधीषिमाणिभर | यह अक्षा० २७ ४ से २७ ५० उ० तथा देशा०६८ ३५ पिदाशिथि । उरण ३.२७) इति च । १ शमेद, एक से ६५ ४८ पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरिमाण पेडका नाम । २ पक्षमाल, पेड। १४६७ वर्गमील और जनसमा ८५ हजारसे ऊपर है। रोहती (स० सी०) यह मैच, पिस्चात् टोप। १ लना इसमें रोहरो नामक १ शहर और ६ माम लगते हैं। मेद। २ लतामात । यहाकी प्रधान उपज धान, चार और गेह है। रोहरो-सि धुपदेशके शिकारपुर जिलातर्गत एक उप ३ उक्त तालुका एवं शहर। यह अक्षा० २७ ४१ विभाग। कोहिस्तान ले कर इसका भूपरिमाण ५४१० उ० तथा देशा० ६८ ५६ पू०के मध्य सिधुके दाये पर्गमोल है। इसके पश्चिम और उत्तर सिधु नदी, किनारे स्थित है । जनमश हजारके परीव है। उत्तर पच और पचमें वहवलपुर और जयसलमेर रान्य प्रशाद है, कि १२६७ मे सैयद यकन उद्दीन शाहने तथा दक्षिणमै सैरपुर जिला है। मीरपुर नगर इसका । इस नगरको वसाया । मुसलमानी जमानमें यहा बहुत विचार सदर है। सा मसजिदें बनी थी। उनमे स १५६४ १०मे सम्राट ___रेनिस्तान नामक मरुमदेश और कारका समतल अश्वर शाहये अधीनस्थ शासनात फते खाने नाना भान्त ले कर यह विगाग सगठित है। बीच बीचमें वन शिल्प और कारकार्य समवित जमा मसजिद् तथा माला परिशोभित गएडीरश्रेणी गोमा दे रही है। १५६३ १०मे मोर मुशाम शाहने इदगाह मसजिदकी पर समय मिधुादी उा सब गएडौल न हो कर प्रतिष्ठा कराइ था। अरोर नगर तक विस्तृत थी। पीछे किसी प्रारतिक १५४५ ई०म धानीय फ्लदोडाराज मोर महम्मदने परियत्तनमे स्रोत गति शावर शैलप के मध्य हो पर लौटी। अपने मित्र सैरपुराधिपति मोर अलीमुरादसे पैगम्बर है। शायद सिधुादो त्क्षिप्त पालुकाराशिफे विकारसे | महम्मदकी दाढाका एक बार पाया। उसने उस देय ही यह शैलमाला बनी है। रेजिस्ता1 बिमागी रेन स्मृतिकी रक्षार्थ नगरसे उत्तर 'वार मुबारक' नामक नदी एक समय मूल सिन्धु रूपमे बडी तेजीस बहती थी। एक चौकोन धर्ममयन वनराया। उस मसजिदके मध्य अभी मन्दगति दो शानेसे उनकी चौहाई घर गा है तथा स्थरम हारे 'पनेसे पडे हुए एक सोनेके अम्बेमें यह