कराचीन-कराढ़-ब्राह्मण है। इसी नगरसे बिलकुल दक्षिण कराची उपसागर "नगरी मजयन्तीव पापणं करपाटकम् । है। उपसागरके एक पाखपर मानीरा अन्तरोप इतरेव वशे चमे करखे नामदापयेत् ॥ (ममा ३८००) पड़ता है। मानोरा अन्तरीप और विकटन दाक्षिणात्यवाले वनवामी प्रभृति प्राचीन स्थानक नामक स्वास्थ्यनिवासके बीच कराची उपसागर किमी किमो गिनाफलकमें भी कराडका नाम का प्राय: साढ़े तीन मोल विस्तृत है। किन्तु प्रवेशमा घाटक लिखा है। स्कन्दपुराणके सन्याट्रिखण्ड में यह मुख घधिक पर्वत (क्षुद्र क्षुद्र पार्वत्य होय) और भूभाग काराष्ट्र नामरै उता है। मधाद्रिखण्डके कियामारी नामक दोपसे सका है। मानोरा अन्त मतमे काराष्ट्र शोयनासकामके दक्षिण और वेदवती रोपमें एक पालीकस्तम्भ है। इस प्रान्तोकस्तम्भके नदीके उत्तर सब मिलाकर १० योजन पड़ता है। पश्चात् एक क्षुद्र दुर्ग भी खुड़ा है। "वेदवत्तायोचरे न कोयनामदत्तिणे । १७२५ ई०को जहां हाव नदी सागरसे मिली, काराष्ट्रनाम देशय दृष्टदेशः प्रकीर्तितः(उत्तराध ॥३) वहां खड़क नामक एक नगरी रही। उस समय यहां लक्षाधिक हिन्दू रहते हैं। उनमें कराढ़ खड़कका व्यवसाय वाणिज्य बहुत विस्त त था । क्रमयः 'ब्राह्मयों को हो संख्या अधिक है। कराल-बाना देशो। काल पानपर खड़क बन्दरके प्रवेशका पथ बालू में २ कराद विभागका प्रधान नगर। यह क्या एक गया। फिर थोड़ी दूर दक्षिण वर्तमान कराची एवं कोयना नदीक सङ्गम स्थान, अक्षा० १७.६० नगरके स्थानपर 'कन्नाचीकूण' नामक दूसरा मुद्र तया देशा०७४. १३३० पू० पर प्रवखित है। नगर रहा। इसी स्थानसे कराचीको चारो पोर लोकसंख्या प्राय: ११ सहस्र है। उसमें 2 हजार व्यवसाय वाणिज्यका लेनदेन बढ़ा। क्रमशः यज्ञी हिन्दू निकलते हैं। मव जजको प्रदानत, डाकघर, दुगं बना था। फिर मसकट नगरसे तोप मंगा दुर्गको प्रोषधालय प्रमृति विद्यमान है। रक्षा की गयो। अन्तको शाहवन्दरका व्यवसाय विल कराट-बामण ( काराष्ट्र ब्राह्मण ) महाराष्ट्र ब्राह्मणों को कुल बन्द हो जानेमे यह स्थान समृद्धिशाली हुवा। एक यो। जन्मभूमि अनुसार यह ब्राह्मण भी लोगोंके. विश्वासानुसार उक्त कन्नाची नामसे ही कराढ़ बहाते हैं। स्कन्दपुराणमें इन्हें प्रतिनिन्दित 'कराची' शब्द निकला है और दुष्ट लिखा है- कराचीन (सं० पु०) खनन, खडरचा। "काराष्ट्रो नाम देश्य दुष्टदेयः प्रकीर्तितः सबैलौकाय कठिमा कुञ्जनाः पापर्मियः। कराट (सं० ली.) राय विक्षेपाय अति, अट-अञ्च । नई भजाय विप्रान्त काराष्ट्रा प्रति नाननः ।। थप्पड़, तमाचा पापकर्मरवा ना व्यमिधारसमजवा। करातग्राम काशी निलेका एक याम। खरस छवियोगन रेत: चित्र विभावकम् ॥५ (मवि० ब्रह्मवय ५२५४) तेन तेषां समुत्पनिजांवा वै पापानिपान्। कराड़ (हिं० पु० ) १ नाय करनेवाला, महाजन, जा सद्देशै मावशी महादृष्टा दुपियी ६ तयाः पूजा बढाडे च ब्राह्मपो दीयते वलिः। माल खरीदता हो। २ वणिक नातिविशेष। यह ते किगीवनाना त्यां करोविच ३० बनिये पनावमें उत्तरपथिम रहते हैं। महाजनी न ता येन मा इत्या कुल तस्य च बीन् । इनका धन्धा है। ३ नदीके ऊपरका हिमा, टोला। एवं पुगतवा देव्या वरीदनी विजान किन्न । सम्यक् उच्च नदीतटको कराड़ कहते हैं। 'नेपा नर्गनाव या सर्व खानमाचरेत् । कराद-१ वम्वप्रान्तके सतारा जिलका एक विभाग। तथा देशान्तर वायुनं याची योजनवयम् । वलं विषमाति पातकं अतिदुतरम्।" (साद्रिषण २०) इसकी भूमिका परिमाण ३८५ वर्ग मौन है। महा- भारतमै सञ्जयन्ती नगरीक साथ 'करहाटक' नामसे वाराड़ ब्राह्मण सकल ही गात होते है। बोग कहते-पहले इनमें प्रति वर्ष देवी अधिक उडेय एक इस स्थानका लेख पाया है।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/९५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।