रोला कोड़ा। ९. करर-करवार करर (हिं. पु.) १ विषामिविशेष, कोई नह-। करल :(पु.) कपित्य वृक्ष, कैथे का घेड़। • इसका शरीर अन्थिविशिष्ट होता है। करन (हिं. पु.) कटाह, कड़ाह। २ अश्वविशेष, किसी रंगका एक घोड़ा। ३ वृक्ष कारला (हिं० पु.) अड्डुर, किल्ला । विशेष, एक पेड़। इसे जङ्गली कुसुम कहते हैं। यह करली (स्त्रो०) करला देखो। भारतके उत्तर-पश्चिम पंजाब प्रभृति देशमें पधिक वारलुरा (हिं० यु०) लताविशेष, एक वैन । उत्पन्न होता है। पोलीला तेल इसीके वौजसे निकलता कण्ठकाकीर्ण होता है। पुष्य खेत एवं पाटन निक है । अफरीदी अपना मोमनामा उत तैलसे प्रस्तुत लते हैं। भारतवर्ष करलुरा सर्वत्र मिलता है। फर- करते हैं। कररमें पुष्प बहुत पाते हैं। काष्ठ मृदु रहता वरीसे मयो तक पुष्प पाते और अगस्त सितम्बरको है। शाखा एवं पत्र पशुका खाद्य है। फन्त लग जाते हैं। पुष्पों का अचार बनता है। शाखा- कररना, करराना देखी। पत्र खानेमें हाथीको बहुत अच्छे लगते हैं। कररान (हिं० स्त्री०) धनुःके धाकर्षणका शब्द, करवंट (हिं. स्त्री०) जताविशेष, एक वैन । यह युक्त समान चढ़ाने की आवाज। प्रदेश, बङ्गाल, दाक्षिणात्य और सिंहलमें होती है। करंराना (हिं. ली.) १ मरराना, घरराना, टूट पत्र ४।५ इन दोर्च पोर पुष्प पीतवर्ण लगवे । कर- फूट जाना। २ कठोर शब्द कहना, कड़े पड़ना। वंठकी कीमल शाखासे छाजन छाते या दौरी बनाते हैं। कररी (स. स्त्री०) कारिदन्तमूल, हाथोके दांतको जड़। करवट (हिं. स्त्री०) १ करवर्त, दक्षिण वा वाम पाव कररी (हिं. स्त्री०) गन्धमटी, वनतुलसी। लेटनेको स्थिति। (पु०) २ करपत्र, करवत, पारा । कर (सं.वि.) कर कारागारे हस्तेन वा कवः । करवत (हि.पु.) करपत्र, पारा। १ कारागारमें पाबद, कैद खानेमें पड़ा हुवा। २ हस्त करवर (हिं. स्त्री) विपद, आफत, पोचट । हारा भाबड, हाथमे रुका हुवा। करवरना (हिं० कि.) कलरव करना, चहकना। . कररुप (सं० पु.) करात् रोहति उत्पद्यते, कर-रह- करवल (हि. स्त्री०) कांस्यमिवित रौप्य, जस्तामिली क। गुपधा । पा ६५१३८१ १ नख, नाखु.न। २ अगालि, चांदी। करवल रुपयमें दो पाने कांस्य धातु रखती है। उंगली। ३ कपाण, तलवार । ४ नखी नामक करवा (हिं. पु०) १ पानविशेष, एका लोटा-जैसा गन्धद्रव्य, एक खुशबूदार चौज। ५ अगदि धूप । वरतन। यह महीसे टाटीदार बनाया जाता है। कररेखा (सं० श्री.) करस्थ रेखा, हाथको लकीर। २ कोनिया,घोड़िया। यह लोहे से बनती और जहाज- सामुद्रिकके मतानुसार यह शुभाशुभ फल देती है। में लगती है। ३ मत्स्यविशेष, एक मश्ली। यह कररचक रत्न (सं० ली.) त्यमुद्राविशेष, नाचमें पक्षाद, बङ्गाल और दक्षिण में मिलती है । हाथका एक घुमाव ! यह अत्यन्त कठिन होता है। करवा-गौर (हिं. स्त्री०) कार्तिक कृष्णचतुर्थी, कातिक इसमें दोनों कर कटिपर रख खस्तिकको सहारे मस्तक्षा महीने के अंधेरै पाखको चौथ । भारतवर्षमै इस दिन पर्यन्त पहुंचाते पौर मण्डलाकार बनाते हैं। पुनार सौभाग्यवती स्त्रियां गौरोका व्रत रहती हैं। सायं- एक कर नितम्ब पर लाया और घपर कर चक्र की काल महोके करवेसे चन्द्रमाको अर्घ्य दिया जाता भांति धुमाया जाता है। इसी प्रकार दोनों कर झूता है। पक्षानयुक्त करवेका दान भी होता है। करते हैं। इसके पीछे लपेट लगा और फैला दोनों करवाचौथ, करमागौर देखो। कर स्कन्धक निकट घुमाना पड़ते है। करवाना , (हिं. स्त्री०) कराना, काममें लगाना। करई (सं० स्त्रो०) करस्य ऋषिः । १ करसम्मत, करवार (सं० पु.) कर वृणोति- वारयति प्राक्र- हाथको दौलत । २ करताली, इथेलियोको आवाज । मणकारिभ्यो वा, कर-व-अए। कर्मणा । ३ करताल, एक बाजा। । पाशशर पाया, तलवार।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८९
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