पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८७

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। CC करमा वाई चनिको विशेष यत्न हुवा। वष्यके प्रेमरसका धावाद । घबरा देशदेशान्तर घूमते घूमते वृन्दावन पहुंचे थे। पानसे करमा वाईको संसार विषवत् धुण्य लगता बहु वन और बहु स्वान टूटते भी कन्याका था। सुतरां खामोक गह जानकी अत्यन्त अनिष्टकर कोई सन्धान न मिला। अन्तको वह एका दिन समझ यह सर्वदा रोते रहीं। अन्तको किसोरी किसी विशाल वृक्षको उच्च शाखापर चढ़ चारो ओर कुछ न कह इन्होंने चुपके चुपके वृन्दावन जाना स्थिर देखने लगे। देखते देखते उन्होंने हठात् ब्रह्मकुण्डके. किया। रात्रिकालको यह अपनी कोठरीसे बाहर तौर निविड़ वनमें करमा बाईको बैठे पाया। वह निकलीं। घरके सकल द्वार बन्द धे। बाहर जानेको घबराकर वृक्षसे उतरे और साथियों को ले कन्याके कोई राह न देख करमा बाई मनके प्रावेगमे निकट पहुंचे। किन्तु उन्होंने अपनी कन्या विभिन्न अटारीसे नीचे कूद पड़ौं। किन्तु यह कभी घरसे पायौ थी। संसारको मलिनता करमा वाईके देह में बाहर निकलती न थीं। इन्हें क्या मालम-कहां न रही। समुदाय शरीर में तपःममा चमकती थी। वृन्दावन और कहां पथ रहा। फिर भी इन्होंने मुखमन्त एक आश्चर्य न्योतिसे पवित्र रहा। फिर वातालकी तरह अकेले अव श्वाससे वृन्दावन उद्देश्य यह वाद्यज्ञान न रख ध्यानमें मग्न थीं। चक्षुई यसे यात्रा प्रारम्भ की। प्रेमाश्रुको धारा बहते रहो। कन्याको ऐसी अवस्था प्रभास होनेपर परशराम पण्डित हमें कन्याको देख परशुरामका हृदय फटने लगा। फिर वह न देख अत्यन्त व्यस्त हुये और राजाके निकट पहुंच। करमा वाईको कन्या समझ न सके । अन्तको अत्यन्त सयल कथा कहने लगे। राजाने उन्हें आखास दे घबरा परशरामने इन्हें साष्टार प्रणिपात किया। चारो धौर करमा बाईको ढूढनके लिये आदमी भेजे बहुक्षण पोछे इन्होंने चक्षु खोले थे। सम्मुख थे। इन्होंने राइमें जाते जाते पीछे धूमकर देखा- पिताको देख करमावाईने नीरव प्रणाम किया। मुझे ढूंढनेको लोग पाते हैं। इससे यह पत्यन्त , फिर यह नौरव ही बैठ रहौं, मानो पिताको कहीं व्यतिव्यस्त हुयौं। चारो पोर खुला मैदान था। देखा नहीं। परिहत परशरामने विनयपूर्वक इनसे छिपनेको कहीं उपयुत्ता स्थान न मिला। सम्मख उष्ट्रका लौटनकी कक्षा और घरमें बैठ क्षणचिन्ताम लगनेको केवल एक मृतदेह पड़ा रहा। शृगाली और कुञ्जरोंने अनुरोध किया। किन्तु यह किसौप्रकार उसपर उसका मांसादि प्राय: खा डाला था। भीषण दुर्गन्ध स्वीकृत न हुयीं। इन्होंने पिताको उल आशा छोड़ने. उठता, निकट पहुंचना दुःसाध्य रहा। मलिमती पर अनुरोध किया और सर्वदा कृष्ण-कृष्ण रटनेको करमा उसी उदेहके उदरसे छिप गयीं। उद्देश्य उपदेश दिया। वष्णनाम लेनको उपदेश देते समय भी सिद्ध हुवा। अन्वेषणकारी उसको दूसरी दिक् यह प्रेमसे. मूर्छित हुयौं एवं पुनार अपने पाप चल दिये। अनाहार केवल कृष्णचिन्ता करते इन्होंने मानो चैत उठीं। इस भय से तीन दिन उसी उष्ट्रदहमें काटे धे-फिर परशुराम पण्डित कन्याको ऐसो प्रसाधारण कोई कहीं भान पहुंचे। तीन दिन पौछे वहां भलिसे शैक पड़े थे। वारंवार अनुरोध करते भी बाहर था और नदी में नहा करमा बाई शरीरको वह इन्हें वापस ला न सके। अन्तत: परशराम रोवि. निर्मल किया। इसीप्रकार पथमें बहु को उठा यह पौटते घर लौट भावे और राजाको जाकर सब हात वृन्दावन पहुंची थीं। पवित्र वृन्दावनके दानले बहु सुनाये। राजा भी विशेष भगवत् मे मि में रहे। वह दिनका अभिलाष पूर्ण हुवा और मन एवं माण करमा बाईकी देखने वृन्दावन पहुंचे थे। वहां आनन्दसे फूल उठा। फिर यह ब्रह्माकुर के तौर | साक्षात्कार होनेपर-राजाने इनको अनिच्छा रहते भी • वनमें कृष्णदर्शन पानेको ध्यानयोगसे बैठ गयौं। एक कुटीर बनवा दिया। इस कुटीरका ध्वंसावशेष. उधर परमाराम पण्डित कन्याके. विरहसे अत्यन्त पान भी वृन्दावनमें विद्यमान है। किसी करमा 1