1 ... ३ नागकेशरके पुष्पको ::प्राभा. रखनेवाला बौह ४. महाखड्गका अंतर्भाग पति कठिन होता है। .मयरवलका है।::::::::::::: भूमिपर कोयी चिज देखनौं पड़ती। किन्तु मध्य ४. सुवर्णववौ वर्णक चित्र होते हैं। यह पधिक एवं पाखं स्थल पत्यन्त तीच्यं पड़ता है। ....... मूस्यवान है।...:.:... ५ केतकीवजको भूमिपर केतकीपत्रको भांति चिन .५ मौषत वनके दोनों पाई पामायुं रहते हैं। मध्यमें स्वर्णरेखा पड़ जाती है। फिर. पाधात लंगाने ६ कुटीरकका अङ्ग सूक्ष्म रंजसपनाकार अथच यर.संघात स्थान-मवर्ण निकर पाता है। कृष्णावर्ष होता है। इसके द्वारा चत लगने थीथ खणको तोड़नेसे उपरी भागमे पलके डण्ठवं उपजता है। की भांति सूक्ष्म छिद्र देख पड़ता है। इसका .पपर ७ कललगानको धार मादी रहती है। मध्यभाग नाम कोखवष्यक है। कनकी भांति होता है। फिर सर्वाङ्गमें छष्णवर्ण ... अस्थिवचके .सर्वाइमें गांठ रहती है। यह चि देख पड़ते है। ........ चौर मूल्यवानं और दुर्लभ है।. कालगिरिक पक्ष में स्वर्णविन्दु और श्याम चिक ८ जिसके अङ्गमें अविच्छिन सूत्र रहता. और रहते हैं: दुर्वाकी भांति वणं देख पड़ता, उसको विहान् 2 धवलगिरि याय चौहले बनता है। भूमि -शैवानमालाना कहता है। तथा प्रहको प्राभा रौप्यको..भांति साफ चमका नीलवरीसे पांमामें मिलता जुलता लोहनी- करती है। पिण्ड काहाना है.... १९ कान्तिलौर-निर्मित, बङ्गामें रोप्यधिकयुत पौर १. तिमिराका वर्ण तित्तिर पचीसे मिलता है। पल नौलवणं करवासका नाम निरङ्ग वा कान्तिसौह यह महामूस्य: और दुलभ.. लौह है।. . इससे उलष्ट है। यह दुर्लभ और पति मूल्यवान होता है। अस्त्र: बनता है। ११ जिस तीक्ष्णधार प्रसिक अङ्गामें दौनेक पत्र लोहावके मतसे निरङ्क : लोह तीन प्रकारका जैसा चिक रहता, उसे विहान् दमनवक्त कहता है। होता.१-रोडियो, प्राण्डाः: और सका। अकमको .: .१२ वामनावअति कठिन और चिरहित पाजंकम कान्सलौह.(फौलादः) कहते है।. ..... होता है।... ... प्राचीन ग्रन्यमें १५ प्रकार.लचवाक्रान्त करबालका महिषमे मील मेघकी भांति पाभा और एरण्ड -उल्लेख मिलता है। यथा-१ कारखा २ नकुराह, वोजकी भांति रेखा रहती है। .३ अवच, महाखड़, .५ केतकीवच, कुटीरक, १४.पापतको रगड़नेसे दर्पणको भाति प्रतिविम्ब .७ कन्जलगाव, ८ कारागिरि धवलगिरि, १० कान्ति- देख पड़ता है। :: लौड़, ११.दमनवक्त, १२ वामनाक्ष, :१३ महिष, १५ गजवसका अङ्ग अति महणं, धन और स्थान १४ प्रपत्र और १५. गजवक्ष:।। रेखावियिष्टं होता है। धार प्रति सोच्ण पाती है। १. कासी जमीनवानी तलवारका नाम कालखड्न या र छूते ही शरीरमें घूम आता है। इस प्रसिका है। यह वर्णकी मांति चमकतापौर प्रत्य-वधि धौत जन पौनसे प्राधिष्वाघि टूर होता है। युत रहता है। काचखड्गको डाहुनीववमी कहते है। ::: देवभेदसे करबाका गुणांगुण स्वतन्त्र होता है। .२. नालापरे जवंगामी कपिलको. भाभा देख प्राचीन.धनुर्वेदले मतसे खुटी खंडेर, ऋषिक, वन, पड़ती है। इसके स्पर्शसे सर्यादि भी मरमाते हैं... भूपरिक, विदेश, अङ्ग, मध्यमग्राम, देदी, सहयाम, ५: अपने पाहीर मालाकार छोटी छोटौं कुरखनी चीन पौर कालपारमें जो चौरमिकलता, वही खाक मखनेवासा करबास छुटूवs निर्माचार्य प्रशला पड़ता।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८२
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