पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/८०

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बरन्धबारमा 58 होते भी प्रमाने में सिशासनसे उतार परसको इन् । दालोमसयुयुनच तदमिसिचादिइन् । पाश१५। १ वाक- भगाया और उनके पुत्र मुव को राजा बनाया। चाल, बरौत। या मतमें कथित विधति पस्त्रोंका सुवर्चा पिताको विरु-क्रियारत रहनेसे राज्यात एकप्रकार भेद है। इससे छेदम और सेखन कर्म चौर निर्वासित होते देख सतत संयत-चित्तसे प्रजाक होता है। मानके समय जसका इधर-उधर कटाव, हितसाधनमें सगे थे। प्रजा भी उनको ब्रह्मनिष्ठ, नहाते व पानीको प्रपने इधर उधर हाथसे भाकोर- सत्यव्रत, शुचि, शमदमादि गुणभूषित, मनखी और नेका काम। धार्मिक पा पत्यन्त अनुरक्षा दुयो । कासवय सदा धर्म-करपत्रक (सं० लो०) क्रकच, करौत। निरत सुवर्चाको पर्थहीन होनेसे सामन्त सताने लगे। करपत्रवान् (सं० पु०) करपववत् पत्र यस्य तत् वदयाराबिधिति इन धर्मामा नृपतिने कोष एवं वाहनादि विहीन प्रस्थास्ति, करपत्र-मतुप, मस्य । हो सामन्तगरके भयसे अपने अनुरख भृत्यांक साय मनुप । पा UAE तातच, ताड़का पेड़। खपुरीको बचाया था। बसहीन होते भी नियत धर्म- करपत्रिका (स. बी. ) करी पत्र' यानमिव परायण सनेसे उत्पीड़क -सामन्स इन्हें विनष्ट कर यस्याः, कर-पत्र-कप टाप प्रत इलम्ः। १ जलक्रीड़ा, न सके। अवशेषमें जब राजाको सामन्तगपने निदा- पानीका खेल। २ तिचपणी। रुण रूपसे सताया, तब इनोंने अपना कर अनसमे | करपर (हिं० पु.) १ कपर, सोपड़ा। (वि०.) खगाया था। उसपर पम्निसे इनका भीमपराक्रम २ रुपय, कसा सैन्यसमूह निकल पाया। फिर वलीयान् नृपतिने करपरी (हिं. स्त्री.) वरी. मुंगौरी-मेधोरी। अपूर्वरूप प्राविभूत सैन्धसमूहले परिहत हो बीय करपणं (सं० पु.) करवत् पर्ण या । १ मिखाइय, सीमाके, अन्तर्वती नृपतिगरको नीचा देखाया या। मिणीका पेड़। २ रहारण, लास रेड़। एष देश। खीय कर अम्निमें जचानेपर इस दिन सुवर्चाका करपलयो (हिं.) करपलवो देखो। नाम 'करन्धम' पड़ गया। करपल्लव (स: पु.) करख पनववत्। १ पछि, करचय, (सं० वि०) कर धयति खेदि, करधे-साथ उंगली। रास्त, हाथ । ३ अङ्गलिक सतसे कथ- मुम्। इतलेहक, शय चमने. या चाटनेवाला। नोपकथन करनेको विद्या, उंगलियोंके यारसे कात करन्यस्तकपोसान्त (संपन्य.) उस्तत कपोलके करनेका नर: पन्तपर, वपर रखे ये मासके सिरे।.. "फिय कमल चक्र टपार। तरू पर्वत यौवन महार। करन्यास (सं.पु.) वर करावयवे न्यासः, ७-सत् । पंगुरिल पचर चुबटनि मात । रामबखनषों बात तन्नोस न्यासविशेष। तन्त्रोत मन्त्र उच्चारयपूर्वक हायसे पहिका फष बनानपर पकारादि स्वर, पन्न प्रति अङ्गुलिसमूहके तल और पृष्ठदेयपर नो कमन बनानेपर ककारादि, चक्र देखानेपर चकारादि, न्यास किया जाता, वही करत्यास कहाता है। टमार चगानपर टकारादि तक बतानेपर तकारादि, करपच (सं० पु०) फरी. पक्षवत् यस्य, बहुव्रीः । पर्वत बनानेपर पकारादि, यौवन देखानेपर यकारादि चीमगोदड़ वगैरह। और मृङ्गार सुझानेपर सकारादि वर्षका बोध होता करपइन्ज (सं० पु.) करः पानमिव । पद्महस्त, है। फिर एकादिक्रमसे अनुचि देखानेपर पथर पौर कंवन-जैसा हाथ) चुटकी बजानेपर मावा उभराते हैं। करपण्य (सं• को०) करायें राजखाय पण्यम, करपल्लवी (सं. स्त्री०) इसके सतसे कथनोपायन, मथपदखी। राजखके लिये दिया जानेवाला नायक इमारकी.बातचीत। वरपर देखो। विक्रेय वस्तु, बो चीन: सिराजके चिये दी जाती। करपा (हि.पु.) डांट, लेहमा। अमानके बार- करपा (म.को.) करमवया पतति, कल्पत. दार इयको करपा कहते है। Vali IV. 21