४ नग्न, नंगा। चावल। - दिनी। कोश-कुड़ ७६३ कोश (सं० पु.) को इति शब्द ईष्टे, को-ईश-क यहा | कुपर (हिं० ) कुमार देखो। कस्य वायोरपत्वम्, क-प्रत-इन् कि: हनुमान सईयो | कुंअरपुरिया (हिं० पु.) हरिद्राभेद, किसी किस्मको यस्य । वानर, बन्दर । के आकाशे ईष्टे प्रभवति, क हलदो । वह कटकके निकट कंभरपुर राज्यमें उत्पन्न ईश-क । २ सूर्य, सूरज । ३ पक्षी, चिड़िया। (त्रि.) होता है । ५ वर्ष पोछे उसे क्षेवसे खोदते हैं। मूल और पत्र वृहत् तथा दोघं होता है। भैसके गोबरको कोशपर्ण (सं० पु.) कोशं वानरः तस्य लोमेव पर्ण खाद देनेसे कुंअरपुरिया बहुत पनपता है। पत्रमस्य, बहुव्री० । अपामार्ग, लटजीरेका पेड़। कअरविरास (हिं. पु. ) धान्यविशेष, किसी किस्मका कौशपर्णी (सं० स्त्री०) कौशपर्ण नातौ डी ! कौमपर्ण देखी। कुंअरेटा (हिं० पु०) कुमार, छोटा कुंवर ! कोशफल (सं० लो०) कक्कोल, शीतल चीनी। कुत्रा (हिं० पु०) कूप, चाह, कुवां । कोथरोमा ( स० स्त्री०) कपिकच्छ, केवांच । कुपारा (हिं. वि.) अविवाहित, बेव्याहा, जिसको कौशाण-जातिविशेष, एक कौम । कौशाण को नागेश्वर शादी न हुई हो। भी कहते हैं। वह लोहारडांगा, पलामू, यशपुर कुइयां (हिं. स्त्री०) क्षुद्र कूप, शेटा कुवां । और सरगुना प्रभृति स्थानों में रहते हैं। वनके मध्य | कुई (हिं० स्त्रो०) १ क्षुद्र कूप, छोटा कुआं। २ कुसु- सनका पास और कृषि हो उनको उपजीविका है । कोशाण बाघको उपासना करते हैं। वह उसे वनके | कुंकुमफूस (। (हिं० पु०) पुष्यविशेष, दुपहरियाका राजाको भांति पूलते हैं। एतजिन सूर्य, महादेव, फल । महीधुनिया, शिकरिया पौर मृत पिटगणक महेश भी ) कुकुमा (हिं. पु.) ताखका एक पोला गोला । पूजा की जाती है। शिकरिया देवताके पागे छाग होसीको उसमें गुलाब डाल कर मारते है। और सूर्य देवताके उद्देश खेत हंस वलि देते है । | कुचो (हिं० ) कृषिका देखी। उनके ग्राम्यदेवताका नाम दरहा है। उता ग्राम्यदेवके | कुंज (हिं• पु०) इक्ष लतादि हारा आच्छादित स्थान, स्थानमें 'वामनी पाट' 'अन्दरीपाट इत्यादि नामधेय पौदों और बेलोसे ढकी हुई जगह। २ हाथी दांत कई पाट हैं। कौशाण कोसनातिकी भांति माचते ३दुशालेके कोनेका बूटा। ४ कोनिया, बडेरसे कोने गाते हैं। उनकी स्त्रियां गोदना गोदानेसे अपने समाज- पर मिलनेवाली खपरैल या छप्परको छाजनको एक में हेय और समाजच्युत समझी जाती हैं। लकड़ी। कोस (हिं. पु०) १ कोसा, जरायुज, गर्भको थैली । कुंजगली (हिं. स्त्रो०) १ पादपस्ततादि द्वारा आच्छा- २ कोष, बन्दर। दित पथ, पौदों पौर बेलों से ढकी हुई राह अप्र- कोसा (फा: पु०) थैली, जेष। कौस्त (वै० पु.) स्तव, स्तुति । कुजड़ (हिं. पु.) कुंदुर, पिस्ते का गोंद। वह औष- "दितो यही कौस्तासी पमिद्यवो नमस्यन्त ।' (सक १ १ १९७10) धर्म चड़ता और रूमीमतगो-जैसा रहता है। कु (सं० पव्य.) कुडु। १ पाप, इनाव, राम राम । | कुंजड़ा (हिं० पु०) जातिविशेष, एक कौम । कुजड़ा २ निन्दा, छो छो। ३ षत्, थोड़ा। ४ निवारण, दूर तरकारी और फल बेचते हैं। वह सबके सब मुसच. दूर । ५ मन्द, धीरे धीरे । (वि.) निन्दनीय, वद. मान हैं। कुजा (हिं. पु.) कूजा, पुरवा, सिकोरा। कु (सं० स्त्री० ) कु-डु । पृथिवी, जमौन् । कुड़ (हिं. पु०) हल चलनेसे पड़नेवालो खेतकी कुमाया (हिं. स्त्री०) दुराशा, ना उम्मेदी। गहरी लकौर। शस्तमार्ग, तजकूचा। 1 नाम।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७६०
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