कौट ७५३ erflies ) नामक एक चित्रपतन (सोतची) पाहार हरा रंग बनाया जाता है । उसे यहांसे युरोप करते हैं। चीनदेशक बड़े आदरसे रेशमका कीड़ा भेजते हैं। (रेशम निकाल लेने पर गुटीके मध्य मिलनेवाला उन्न जातीय एक प्रकार कीटके पक्षमूनको प्राव- हरिद्रावर्षका मृतकोट) खाते हैं। कपोतारिपतन रोसे ब्रह्मदेवाय स्त्री हार, कण्डौ और शुकधुको (aparat atat ) ( Hawk-moth ) 1 suara वनाती हैं। वह लाल हरी धूपछाइका रंग रखता थावक भी चौनावोंको प्रतिप्रिय है। है। फिर मानो उस पर सोनेका पामो चढ़ा रहता कोई कोई असभ्य लम्बी थोथनीक कीटका भावक है। श्रावरणी देखने में सम्पूर्ण उस मणिको मांति खाते हैं। ब्रह्मदेयौय से पति उपादेय खाद्य सम- चमकती है। झते हैं। करन लोग. पानकोट की भांति एक जातीय पृथिवीके मध्य सर्वापचा वृहदाकार कौट यव- कोटथावक आहार करते, जिसे महीके नल में भर कर दीयका पिकपिशा ( Scarabaeus Atlas, गुजुवा) रखते हैं। माडीके बड़े बड़े जालेसे भाजकल बहुतसे सोग मारविरन और मारगैरेटार लोग पिपीलिका मक्षण करते है। इंटेण्ट दीमक खा जाते हैं। वाउटम सूत पौर रेशम बनानेकी चेष्टा करते हैं। सुंगरमें साहपने लिखा है कि महाराष्ट्रयुडके समय सेंधियाके गङ्गातीर सास और काले रंगको मकड़ियों के बड़े बड़े मन्त्री सुरजोराव दुर्बलतावश दीमक रोटोके साथ जाले देखने पाते हैं। मिला कर पाहार करते थे। पिङ्गकपिशाके पक्षमूलको पावरपीके खण कार सालगिडकके कृषक एक प्रकारको कोटको देव- काट कर स्त्रियां टिकलियां तैयार करती है। प्रवाद है साकी भांति मान्य करते और उसे प्रेगा-डेयरी ( Pre. कि व कौट सिलचटेको पकड़ कर गुजुवा बना ga-Deori ) कहते हैं। हिन्दुस्थानी तुलशी वृक्षके डामता है । वस्त तः तिलचटा गुजुवासे डर कोटको भक्ति करते और विश्वास रखते कि उसे स्वर्ण जाता है। रक्षाकरण्ड ( सोनेके ताबीज ) में धारण करनेसे वाला कोड़ा गेईको बालको विगाड़ देता है। श्वास, यक्ष्मा, रतवमन प्रति दुःसाध्य रोग पारोगा गिरोया शस्यका वर्ण नष्ट कर धूलिमें मिखाता है। होते हैं। गाल (Galls) नामक कीटसे औषध, गिरण्डार नामक कोट कलायका विषम शत्र है। वर्णक (रंग) और मसी (स्वाही) बनती है । किरिम- वकालो और भीमा कोट धानको चाट जाता है। दाना (Cochineal) कोड़ेको सुखा लेनेसे अच्छा शेषोता तीन प्रकार कोट पश्चिममें अधिक पाये लाल रंग तैयार हो जाता है। वह जब मागर्भ में रहते, तब जरायुके मध्य एक नाड़ीमें परस्सर चिपट घुधर नानाविध वृक्ष नष्ट करता है और खासकर . - बैठते हैं। एक किरिमदानके १०. शावक होते हैं। दानापुरमें अफोमकी खेतीको नष्ट करता है। हरखी मध्यपमेरिकासे उनको सर्वोत्शष्ट श्रेणी इलेण्ड नोलको बिगाड़ता है। भेजी गयी है। स्त्रीजाति वाचा कोटसे सोललाक, नानाविध फसों में भी नानाविध कोट होते है। बटमखाश, टिकनाक और साफलाई प्रति लाख पाम, अमरूद, वेगन, करेला, ककड़ी प्रति फों में कई तरहके कोड़े देख. पड़ते हैं। कान्यरिस प्रभृति जातीय कीटसे प्रलेप और औष गूलामें प्राय: भुनभुने भरे रहते हैं। करते हैं धादि प्रस्तुत होते हैं। उनको खानेसे आदमीको श्राख नहीं पाती। क्रिसोक्रोधा (Chrysochroa ) नामक कीटके २मागधजाति । १ सौहकिड, लोहको जंगः। पक्षमूलको प्रावरणीसे भारतवर्ष में एक प्रकार बढ़िया ४ विष्ठा, नजिस । (वि.) ५ मिछुर, वैरहम, सख्त । Vol.- IV. 189 खाते हैं। बनती है।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७५०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।