७४० कौचकजित्-कौट हो रहने लगे। उसी समय कोचक सैरिन्धो-रूपिणी कौट (सं०. पु० ) कीट-अच। १ शुद्नौवभेद, कोड़ा, . मकोड़ा। कोट बहुविध और नाना प्रकार होता है। द्रौपदीको देख अत्यन्त कामात हुवे और अन्य किसी प्रकार प्रभो निशान न सकनेपर बलात्कार करने पर सुनरा इसे निर्देश कर नहीं सकते । सुचलने कई कीटोंके दंगनसे अत्यन्न रोगोको चिकिताव लिये सर्य- तुल गये। फिर उन्होंने भगिनीसे अनुरोध किया कि १ ट्रौपदोको उनके घर भेज दे। भगिनीने सुरा संगा. समूहके शुक्र, मन, मूत्र एवं शव, पूति तया घड. ने बहाने द्रौपदीको कोचको र पहुंचाया था। जात को कौटों को प्रवति, दंशनजन्य रोग और उन. उनके उपस्थित होते ही कीचक उनकी पाक्रमा की चिकित्साका निर्देष किया है। उक्त सकन नोटोंके कर के लिये अद्यत हुवे। किन्तु वह चौकारपूर्वक मध्य कुछ वायुपतति, कुछ पित्तपति, कुछ नेष्य- वासे दौड़ कर राजसभाको भाग गयों और उनके अति और कुछ विदोषप्रशति होते हैं। सर्वापेक्षा हाथ न सुगौं। पोछे भौमसेनसे परामर्थकर ट्रोपदीने विदोषप्राति कौट ही भयङ्कर होता है। कोचकको सङ्केतस्थान नाव्ययानामें बुन्नाया था । कुम्भौनस, तुण्डि केरौ, मृङ्गो, शतकुल्लौरश, उचि. उसीके अनुसार वह वहां जाकर उपस्थित हुवे । परन्तु टिङ्ग, अग्निनामा, विञ्चिटिङ्ग, मरिका, पावतक्ष, भीमसेन उहा स्थानपर पहलेसे ही भारोवेशमें बैठे थे। उरम्भ, सारिका, मुखवैदल, शरावकुर्द, अलीराजी, कोषकको देखते ही मार डाला। (मारत, विराट, १५ १०) परुष, चित्रशीर्षक ,शतवाह और रक्षराजि-१८ पकार- जैन इरिवंशपुराणमें इसकी कथा इस भांति लिखी है- के कोट वायुप्रकति होते हैं। उनके दंथन करनेसे जिस समय कोषक द्रौपदी पर भासत हो संकेत- वायुजन्य रोग उत्पन्न होता है। स्थान पर पहुंचा तो उसे प्रवेशी भीमसेनने बहुत कौण्डिल्यका, कणमक, घरटी, पत्रमाच्चिक, विना- मारा पौर मा याचना करते पर छोड़ दिया। इसके सिका, ब्रह्मालिका, विन्टुन, चमर, वाह्यको, पिपिट, वाद विषयोंसे विरक्त हो उसने एक दिगम्बर जैन कुम्भी, वाकोट, पाकमत्स्य, कृष्णतुण्ड, अरिमदक, मुनिसे दीक्षा ले तप किया एवं घोर तपश्चरण द्वारा पद्मकोट, दुन्दुभिक, मकर, शतपदिक, पञ्चानश, गर्द- कर्म नष्टकर मुल्लि पाई। भो, लोत, कृमिसरारि और उरलेश-२४ प्रकार कोचकनित् (पु.) कीचक जितवान्, कोचक-नि कौट पित्तप्रकति होते हैं। उनके दंशनसे पित्तजन्य प्रतीते क्विम् । भीमसेन । रोग छठता है। कोचकनिसूदन, कोचकशित देखो। विश्वम्भर, चश्वशक्ल, पञ्चवष्ण, कोकिल, सौरेयक, कोषकमित, फीचकजिन देखो। प्रचन्तक, वलभ, किरिम, सूचोमुखा, कृष्णगोधा, जपाय. कीचकवध (सं० पु०) कीचकस्य वधः मारणम्, ६-तत् । वासिक, कौटगटभक और वोटक-१३ प्रकारकै कोट १ कोचकका वध । कोरकस्य वधा विनाश कथा नेमप्रकृति हैं। उनके दंशनसे श्लेषजन्य रोग लग वपि तो यत्र, बहुवी । २ कीचकवध विवरणका लाता है। पुस्तक। तुङ्गोनास, विचिन्तक, तातका, वाहक, कोठा कोचकाहय (सं० पु.) १ रन्ध वंश, छेददार बांस । गारी, कमिशर, मण्डनपुच्छक, तुङ्गनाम, सर्षपिक, २नल, एक धास। अवला और अग्निकोट-१२ प्रकार के कीचड़(हिं. पु.) कर्दम, कोच । २ चक्षुमन, आंखका कोट सन्निपान प्रकृति हैं। उनके दंशन करनसे सपै- देशनकी भांति तीन यातना उठती और साविधात्तिक कोज (३० पु.) कथं जातः पृषोदरादित्वात् साधुः । रोग समूहको सत्यत्ति होती है। उक्त कोटी काटने 'अद्भुत, अनोखा । "या को मधो भयो यो वा चोलो हिरवमयः । दष्टस्थान क्षार वा अग्निदग्धको सांति विद्युत वन (शा छ । ५५१३) कोज इस्य समाह (माय) जाता और रक्षा, पोत, खेत वा परुणवर्ण देखाता है।. गली. शम्बुक
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७४४
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