वती। वत्ता। ०४६ किस्त-कीचक किस्त (अ. स्त्री०) १ ऋण चुकानेको एक रीति, कजे | कोकटक, कौकट देखी। देनका कोई तरीका। किस्तमें एक साथ न दे ऋण | कोकटी (सं० पु० ) वन्यवराह, जंगली सूवर । नियत समय थोड़ा थोड़ा चुकाया जाता है । २ निश्चित | कोकना (हि. क्रि०) चोत्कार करना , शिक्रियाना। समय पर दिया जानेवाला ऋणका एक अंश, मुकरर कोकर (स'• पु०-को०) ग्रामविगेष, एक गांव । वक्त पर अदा होगवाला कर्जका हिस्सा। ३ ऋण कीकर (हिं. पु० ) वरच, बवूत्तका पेड़। प्रतिशोधका, निश्चित समय, कर्ज अदा करने का सुकरर | कोकगै (६ि०स्त्रो०) १ वरभेद, किसी किस्मशा बबूल । कोकगैके पत्रक बहुत सूक्ष्म होते हैं। २ किसी किस्म- किस्तबन्दी (फा. स्त्री०) अंशयः ऋण प्रतिशोध करने- को दस्तकारी । कोकरो कपडा कतरकर लहरदार का नियम, थोड़ा थोड़ा कर्ज अदा करने का कायदा । किस्तवार (फा क्रि० वि०) १ किस्तके नियमानुसार, | कोकश (सं० पु०-क्लो०) कौति कयति शब्दायते, को- या कंगूरेदार बनाते हैं। किस्तके तौर पर।२ प्रत्येक किस्त पर, हरेक फिस्तके कश-अच । १ चण्डाल, हत्यारा । (महानिर्वाणतन्त्र, २६०) किस्म (प्र० स्त्री०) १ प्रकार, तरह । २ रीति, चाल । २ क्वमिजाति, कोड़ा मकोड़ा। ३ अस्थि, हड्डी। किस्मत (अ. स्त्री०) १ भाग्य, नसीब, तकदीर । २ कोकस (स. पु-लो०) को कुत्सितं यथास्यात्तथा कमिशनरी, प्रान्तका बड़ा विभाग। किस्मतमें कई कसति गच्छति, को-कम अच् । १ कोटजाति, कोडा जिले लगते, जो कमिशनरके अधीन रहते हैं। मकोड़ा। को कुत्सितेन रतादिना कसति उत्पद्यते । किस्मतवर ( फा०वि०) भाग्यशाली, तकदीरी। २ अस्थि, हडडी। (वि.)३ कर्कश, कड़ा। किस्सा ( अ० ज० ) १ कथा, कहानी । २ समाचार, कोकसमुख (सं० पु० ) को कस चच्चु रूपं अस्थि लुग्ने ऽस्य, बहुव्री० । पनौ, चिड़िया। हाल । ३ विषम काण्ड, झगड़ा। कोकसास्य, फोकसमुख देखो। किहकन्न (हिं. पु०) क्षिविशेष, एक चिड़िया। कोकसेश्वर (सं० पु०) कोकसाया ईश्वरः, तत् । की (हिं. प्रत्यय) १ 'काका स्त्रीलिङ्ग । यथा-उम- को भाषा। 'को' सम्बन्ध कारकका चिन्ह है। ( क्रि०) कोका (हिं. पु.) कोकट, घोड़ा। २ किया' का स्त्रीलिङ्ग । यथा-रामने रणमें बड़ी कोकि ( सं० पु०) कौति शब्द कायति, को-के वाहुन्न, वीरता को। (प्रव्य) क्या। ४ अथवा, या तो । कात् डि। चाषपक्षी, नीलकण्ठ । कोक (हिं० स्त्री०) १ चौतकार, शोर, हल्ला । २ वानर- रव, बन्दरको पावाज। कोच (हिं० स्त्रो.) कर्दम, कोचड़। कोकट (सं० पु०) को शनैतं वा कटति गच्छति, को- कीचक ( म० पु० ) चोकयति शब्दायते चौक-बुन्। पावन्तविपर्यायथ । एए ५। ३६ । १ वंशभेद, किसी किस्मका कट-अच् । १ घोटक, घोड़ा।र देशविशेष, कोई मुल्क। कोकट मगधका वेदोक्त माम है। बांस, वायुस्पर्शसे कोचवा शब्द करता है। २ रन्धवंग, छेददार बांस । ३ गक्षमविशेष । ४ दैत्यविशेष: "चरणादि समारमा धकूटान्तकं शिव । वायत कौकटदेशः स्यात् तदन्तमंगधो भवेत् ।" (शक्तिसम्ममन्त्र) ५ नल, एक घास वृक्षविशेष, कोई पेड़। विराट- चरणाट्रि (चुमार)से गृध्रकूट (गिहो) पर्वत पर्यत राजाके यालक पौर सेनापति ! कोचकके पिताका नाम कोकटदेश है। मगधदेश ससौके अन्तर्भूत है । केकयराज था। द्रौपदीके प्रति अत्याचार करने की इच्छा ३ कोकटदेशज अश्व, मगधका घोड़ा। ४ सइट-पुत्र- रखनसे भीमसेनने उन्हें मारडाला। महाभारत में उनकी विशेष । ( भागवत, हा) ५ अनार्य जातिविशेष, मृत्य कथा इसप्रकार मिखो है-“पञ्चपागड़वके प्रजात- एक कौम । ६ ऋषभके एक पुत्र। (त्रि०) ७ निर्धन, वासका समय उपस्थित होनेपर वह छमधेशसे विराट- गरीब । कपण, वखोल, कंजूस । राज्य पट्टचे और छद्मवेशसे ही विविध कार्यमें नियुक्त शिव। -
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७४३
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