७३७ किरात-किरातसिंह नातिका निवास वर्तमान भागमान बताते हैं । पश्चिम 'किरात' नामक किसी जनपदका उल्लेख है. ब्रदेश और कम्बोज (काम्बोडिया ) से खुष्टोय शक्तिसङ्गमतन्त्रकै मतमें- "सप्तकुएं समारमा रामक्षेवान्तकं मिले। ५म ६ष्ठ शताव्दको शिलालिपि आविष्क त हुयी है। किरातदेशो देवेशि विध्यश सेऽवतिष्ठते ।" उसमें ब्रह्म और कम्बोज पादिम अधिवासियोंका तप्तकुण्डसे लेकर रामक्षेवान्त पर्यन्त किरात देश किरात नाम लिखा है। है। वह विन्ध्यशैलमें अवस्थित है। (वि०)७ अल्प. Sत सकल प्रमाणहारा समझ पड़ता है किसी समय शरीर, छोटे जिस्मवाला। हिमालय के पूर्वाशमैं वर्तमान भूटान और प्रासामके पूर्वाश मणिपुर, ब्रह्मदेश तथा चीनसमुद्र कूचवर्ती किरात (हिं. स्त्री० ) परिमाणविशेष, एक तौल ।. कम्बोज तक किरात जातिका वास था। फिर उक्त किरात ४ यवके बराबर रहती पोर रत्नादि तौलनेमें लगती है। वह परवीके केरात' शब्द का अपभ्रंश है। समस्त स्थान समय समय पर किरातजनपद कहे जाते थे। भान भी नेपालके पूर्वाशसे प्रासाम पञ्चलके पर्वत २ औंसका २४वां हिस्सा । ३ मुद्राविशेष, एक पर्यन्त किरात रहते हैं। नेपालमें उनको 'किरांति' सिक्का । वह बहुत छोटो और मूल्यमें पाईसे भी न्यून होती थी। कहते हैं। किन्तु यहां किरात अपनेको मोम्बो या किरावा बताते हैं । अद्यापि किरात जातिके नामा- | किरातक (सं० पु० ) किरात एव स्वार्थ कन्। १ चिरा- नुसार नेपालका एक जिला 'किरान्ति' नामले पमि- यता। २ युद्धप्रिय जातिविशेष, एक लड़ाका कोम। किरातकान्त (सं. ली.) कोहणप्रसिद्ध शवरचन्दन, हित है। वर्तमान किरान्ति जाति तीन भागमें विभक्त • किसी किस्म का सन्दल। है-बलो किरान्त, माझ किरान्त और पक्ष किरान्त । किराततिक्क (सं० पु०) किरातो मूनिम्बः सएव तिहाः, बल्लो किरान्तोंमें लिम्बु, यख (यक्ष !) और रयस्. कर्मधा० । भूनिम्ब, चिरायता। किराततितका संमत (रक्षस् १) नामसे थेणीभेद है। लिम्बू किरान्ति पर्याय-भूनिम्ब, अनार्य तित, कैरात, काण्डतितक, पत्नी क्रय करते हैं। जिसके क्रय करनेको अर्थ नहीं किरातक, चिरतिक्त, तितक, सुतिलक, कटुतिल और रहता, वह श्वशूरके घर कुछ दिन नौकरी करता है। रामसेनक है । भावप्रकाशके मतमें यह भेदक, रुक्ष. फिर पारिश्रमिक अर्थक परिवत नमें उसे पत्नो मिलती शीतल, तिकरस, लघु; एवं सन्निपात ज्वर, खास, कफ, है। किरात पहाड़ पर शवदेहको ले जाकर जाते हैं। पित्त, रक्त, दाह, कास, शोष, कृष्णा, कुष्ठ, ज्वर, व्रण पौछे उस शवके भस्म को समाधि दिया जाता है। और कृमिरोगनाशक है। समाधि पर २४ हाथ पत्थरको एक छड़ बना कर किराततितक (सं• पुं०) किराततित स्वार्थ केन् । रखनेकी प्रथा है। भूनिम्ब, चिरायता। • नेपालका पार्वतीय वंशावली नामक इतिः | किराततिमादि, किरासादि देखो। हास पढ़नेसे समझ पड़ता है कि पहिरवंशके | किरातपति (सं• पु०) शिव, किरातोंके राजा महादेव । पछि किरातवंशोय २८ राजावोंने नेपालमें गजव किरातपुर-विजनौर जिलेने नजीबाबाद तहसीलका किया था। उसके पीछे भी बहुत दिन किरातों की एक कसबा । यह पक्षा० २८: ३०० और देशा० क्षमता रही। धवशेषमें नेपालराज पृथ्वीनारायणने ७८.१३ पू. पर विननौरस १० मोल उत्तर प्रवस्थित उन्हें एक बारगी ही नीचे गिरा दिया। है। जनसंख्या १५ हजार करोष है । इसके दो सिकिम और नेपालके किरातों में कुछ लोग चौद्ध विभाग ई-किरातपुर खास और वनी। और कुछ हिन्दूधर्मावलम्बो हैं। किरातहि१ धौलपुर रियासत के सबसे प्रथम राणा । वराहमिहिरको वृहत्संहिता भारतके दक्षिण २ चंदेस्ता वंशके अंतिम राजा। Vol. VI. 185
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