किम्पुरुषाधिप-कियारो बनाकर रहती और फन, मूल तथा पत्र खाकर किम्बदन्ती (म. स्त्री० ) किम वाणि-डोष । जन- जीविका निर्वाह करती है। (रामायय, उत्तर, ८८ अर्ग) श्रुति, अफवाइ । सत्य हो या प्रसत्य बहुतसे लोग जो ३ जम्बु होपाधिपति अग्नीध्र के एक पुत्र विवपुराप. बात विश्वासपूर्वक बताते रहने, उमौको किम्बदन्ती कहते हैं। १११११) ४ अम्बु दीपके नधानुगड. मध्य हिमालय "पति किरपा किमाइन्ती पम्माक' कुले काष्ठरावि कविद्या नाम और इमकूटके बीचका एक क्षेत्र वा देश । गवसौ यमुपसते ।" (अयोधचन्द्रोदय) "म नपरत' वीर समत्तिकम्प पीयवान् । किम्वा (२० अध्यः ) किं च वाच, इन्दः । अथवा, देश किम्य रुषावास टुमपुर्वच रविवम्" (मारत, समा, २०११) या सो. विकल्प । किम्वाका संस्कृत पर्याय-उताही, ५ कुत्सितपुरुष, खराव पादमी। यदि वा, यहा और नेति है। किम्म रुषाधिप (म• पु० ) हिम्मु रुषान् अधिपाति । किम्वद् (स'वि. ) कि' वेत्ति. किम्-विद-किम् । रक्षति, किम्य रुष-मधि-पा-क । कुवेर, किम्य रुषों या किस विषय में अभिन्न, क्या जाननेवाला। किन्नरोंके राजा। किम्वोर्य ( स० वि०) कि कीदृशं वोर्थमस्थ, बडवो । "वनदय धनाध्ययो यचा किम्पुरुषाधिप: " (हरिवंश) किस प्रकारका बलथानी के सा ताकतवर । क्षिम्य रुपन्क्षर (० पु०) किमु रुषस्य किम्युरुषाणां किम्वापार ( स० वि०) कि कोहयो व्यापारोऽस्य, था ईश्वरः, ६-तत् । १ किम्यरुपवर्ष के गना। २ कुवेर । बक्षुद्री० । १ किस प्रकारका व्यापारविशिष्ट, कैसे विम्मु ष ( म. लो०) किम्य रुषनामक वर्षविशेष, काममें लगा हुवा। (पु०) कोदृशो व्यापारः, कर्मधा० । एक मुल्का २ किस प्रकारका कार्य, कैसा काम । किम्मकार (म० अव्य० ) कि कोटशः प्रकारोऽस्मिन् कियत् ( स० वि०) कि परिमाणमस्य, किम् चतुए कर्मणि १ किस प्रकार, कैसे १२ किस जायसे, किस वस्य धा किमः कि प्रादेशश्च । किमियां वौ पः । पा ५। २।४। क्या परिमाणविशिष्ट, किस मिकदारवाला, किम्प्रभाव (सं० वि०) कि कीदृशः प्रभावोऽस्य, बनी। कितना। किस.प्रकार प्रभावविशिष्ट, कैसे पसरवाला। "गन्तव्यमस्ति कियदित्य सदन वाणा' ( साहित्यदर्पए) किम्बस ( स० वि० ) कि कीदृशः वः अस्य, बहुव्रौ० कियतो ( स० स्त्री०) कियत्-डोपन कितनौ । किस प्रकार सैन्य विशिष्ट, के सो फौज या ताकत "निवियते यदि एकशिवापदे सवि सा कियनोमिव न व्यथाम् ।" रखनेवाला। (मषध, सर्ग) किम्भरा ( स० स्त्री० ) किचित् विभति, किम्भ-अच्- | कियत्कान्त (स'• पु०) कियान् किम्परिमितः कालः, राप । नसी नामक गन्धद्रव्य, एक खूशबूदार चीज । कर्मधा। १ क्या परिमित कास, किसना बत। किम्भूत (सं० वि०) कि कीदृशं भूतम, कर्मधा० । किञ्चित् कार, थोड़ा समय। किस प्रकारका, कसा। कियदेतिका (स. स्त्री.) द्योग, कोशिश। किमय ( स० वि० ) कि स्वरूपम्, किम्-मयट् किमा- कियह र ( स० वि० ) कि परिमितं दूर व्यवधान, स्मक, किस तरहका। किम्वान् ( स० वि०) किमपि प्रस्थास्ति, किम्-मतुप | कियन्मान ( स० वि०) कि परिमिता मात्रा अस्य, मस्य ३ः । १ किश्चित् विशिष्ट, कुछ रखनेवाला । बहुप्रो० । क्या मात्राविशिष्ट, किस मिझदारवाना। २फिविशिष्ट, क्या रखनेवाला) कियम व्य ( सं वि०). कि परिमितं मूल्यमस्य, किम्बदन्ति ( म० श्री०) किम् वद-णिच् । जनश्रुति, बहुव्री० । क्या मूल्यविशिष्ट, किस कोमतवाला । प्रवाद, अफवाहा कियारी (हिं. स्त्री.), क्षेत्र वा सद्यानमें अल्प पल्प Vol. IV, 184 तदवोरसे। । कर्मधा० । कितनी दूर।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७३०
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