पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७२०

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७२३ काहोड़-किंशुलुक काहोड़ (सं• पु० ) कहोड़स्य अपत्यम्, कहोड़-प्रण। अव अनेक देशों में चल गया है। उसके हारा बाल- कहोड़वंशीय । कोंको चित्रविचित्र काटखण्डों से शिक्षा दी जाती है। कि (हिं. क्रि० वि०१ कैसे, किस प्रकार, क्या। कानपुर जिलेके मसवानपुरनिवासी पण्डित गौरीशङ्कर (अव्य.) २ संयोजक शब्द । ३ अथवा, या । भने हिन्दोका बहुत अच्छा किंडरगार्डन बनाया है। किं (सं० अव्य०) १ क्या, जिज्ञास्यशोधक शब्द। २ किंयु (वै० वि० ) किं इच्छति, किं वैदिकत्वात् क्यच- पाश्चर्य वा विस्मयबोधक शब्द । निषेधवाचक शब्द । उ । किमिच्छुक, क्या चाहनेवाला । वितका ५ निन्दा। किंराजन् (सं० पु.) कः कुत्सितो राजा किन-गजन् 'किंगरई (हिं. स्त्रो०) वृक्षविशेष, एक पौदा । वह निन्दायत्वात् न टच । १ कुत्सिम राजा. खराब बादशाह। लाजवतोमो मिलती और कंटीनी रहती है। किंगरईके (त्रि) २ निन्दित राजयुक्त, बुरे बादशाहबान्ला । सौके ७1८ इञ्च लंबे होते हैं । पत्तों का देयं किंशारु (सं० पु०) किं किञ्चित् कुत्सितं वा शृणाति, चौथाई इश्च है। भाषाढ़ श्रावण मास उसमें फूल पार्न किम्-शत्रुण । शिश्नरयोः वियः । छए ।। ।। १ शस्यशूक, हैं। पुष्य प्रथम रक्तवर्ण रहते, किन्तु पश्चात् खेतवर्ण पनाजका रेया ।२ वाण, तौर। ३ वाइपक्षी, एक धारण करते हैं। पत्र और वीज प्रौषधमें व्यवहृत होता चिड़िया । ४ रोटक, रोटी। है। लकड़ीके कोयलेसे बारूद बनती है। किंगरई किंशुक (सं० पु.) किं किञ्चित् शुकः शुकावयव- भारतवर्ष सर्वत्र मिलती है। विशेष पूष, उपमि। पलाशवृक्ष, ढाक या टेसूभा किंगरिया-एक नीच नाति । इसका पेशा भीख मांगना पेड़ । किंशुकका पुष्प प्राकृति और वर्णविषयमें है। युतप्रदेशके पूर्वीय भाग; इस जातिके नोग विशेष- शुकपक्षोके चञ्च-जैसा होता है। उसी हेतु किंशुक तया पाये जाते हैं। नाम पड़ा । उसका संस्कृत पर्याय-पन्नाश, पणं, किंगिरी (हि. स्त्री.) वाद्यविशेष, एक बाजा । यह यज्ञिय, रतपुष्प, क्षारश्रेष्ठ, वातहर, नक्ष और छोटे चिकार या सारंगी-जैसी होती है। नट और समिहर है । (मावप्रकाश ) ढाक देखो । २ नन्दीहक्ष । योगी किंगरी बना कर भीख मांगा करते हैं। ३ पुराणोक्त वनभेद। 'किंगोरा (हिं. पु.) क्षुपविशेष, एक झाड़ी। वह "सूर्यस्य किंगकवने तथा रुद्रगणस्य च।" (लिङ्गापुराप, ४६६) ४५ हाथ मंचा और कंटोला होता है। किंगोरा किशुकक्षार (सं० पु.) क्षार, ढाकाका नमक। भूमि पर दूर तक नहीं फैलता, सीधा ऊपर उठता किंशुकतैल (सं० लो०) पलाशवीजतन, ढाकका तेल । है। पत्र ४५ अंगुलि दीर्घ रहते हैं। उनके प्रान्त वह पित्तश्लेष्मन होता है। भागमें दूर दूर दांत होते हैं । शिगोरे में क्षुद्र क्षुद्र पुष्प किशुका (सं० स्त्री० ) १ पन्नाशहक्ष, ढाकका पेड़ । और लाल या काती काली फलियां पाती हैं। फन्नि २ ज्योतिष्मती, रतनजोत । ३ नन्दीरक्ष । यों को लोग खाया करते हैं। विगोराम दारु-किंशकादिगण (सं० पु०) किंशुक प्रभृति द्रव्यसमूह, हल्दीको भांति गुण होता है। उसे किलमोरा और ढाक वगैरह चौजोंका जखीरा। उसमें निम्नलिखित चिवा भी कहते हैं। ट्रव्य सम्मिलित है-किशुक, काश्मरी, विश्व, अग्नि- किंडरगार्डन (अं० पु०) शिक्षा प्रणालीविशेष,.तालीम मन्य, विकण्टक, श्योग्णाका, मालपर्णी, सिंहपुच्छिहय, को एक तबकोच । इसे किसी नमन विहान्ने स्थिरा, पाटला, कण्टकारी, वृहती और विल्व । निकाला था। उसने बामकों के लिये उद्यान, एक (रसेन्द्रसार-संग्रह) पाठशाना खोनो । उसमें अनेक प्रकारको ऐसो सामग्री किंशुलुक ( सं० पु०) कि शुक निपातनात् साधः । -एकात्र थी, जिससे वह पझे अक्षरों प्रादिक अभ्यासके १ हस्ति कर्णपलाश, बड़ा ढाक । २ साथ साथ अपने मनको भी वदना सकें। किंडरगार्डन पक्षी। . नीलकण्ठ