पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७१८

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कास्तोरस -काहार ०२१ सामान्य समझा जाता है। वह बहुत कम लिखते | पिताके औरस पौर निम्न जातीय माताके गर्भसे पढ़ते और वैष्णव धर्म पर चलते हैं। कहते हैं उनको कहारोंको उत्पत्ति है। उनकी प्रधान उपजीविका खेतो त्पत्तिका कुछ ठिकाना नहीं। दूसरे पूनांके ब्राह्मण करने, पालको ढोने, बहती ले जाने, मछली पकड़ने कास्तोंको शूद्र समझते हैं। पेशवा सरकारको पाजासे और नौकरी करनेसे चलती है । कहारका सामा- इन्हें अाज तक दानपुण्य नहीं मिलता। जिक व्यवहारादि साधारण हिन्दुवों को भांति है। वह कास्तीर (सलो०) ईषत्तीरं अस्यास्ति, कोः कादेशः अपनेको जरासन्धका योद्भव मानते हैं। उनमें एक निपातनात् सुट् च । कानौराजस्तु न्द नगरे । पा ६।१ । १५५ । अद्भुत प्रवाद प्रचलित है। कहार कहते हैं कि गिरि- १ईषत्तीरयुक्त नगरविशेष । २ तीक्ष्ण लौह, तीखा एक पहाड़में मगधराजका एक उपवन रहा । किन्तु लोहा। अतिष्टिसे वह नष्ट हो गया । कुछ काल पौछे मगध- कास्मय (सं० पु०) काश्मयं पृषोदरादित्वात् शस्य सः। राजने फिर उपवन लगाना चाहा था। उन्होंने घोषणा गाम्भारी, गम्भारी। की 'जो व्यक्ति एक रात्रिके मध्य हमारा उपवन गङ्गन काई, कईदखी। जलसे पूर्ण कर सकेगा, उसे हम अपनी कन्या पौर कार (हिं० कि० वि०) क्या, कौन चीज । आधा राज्य दान करेंगे। कहारो में इस समय चन्द्रा- काइका (सं० स्त्री०) काइला पृषोदरादित्वात् लस्य षत् नामक कोई प्रधान व्यक्ति रहा। वह गजकन्या और राज्यके लोभसे उक्त कार्य करने पर स्वीकृत हुवा। कः। काइला वाद्य, एक बाजा। काइल (सं० लो०) कुक्षितं अस्पष्टं हलं वाक्य ध्वनि उसने असुरांध नामक एक बड़ा :बांध बांधा था । वो यत्र, बहु बो०।१ अस्पष्ट वाक्य, समझमें न पान फिर चन्द्रावत्ने बावनगङ्गाका जल ले जाकर अपने बाली बात । ( पु०) २ कुक्कुट, मुरगा । ३ विडाल, अधीनस्थ कहारों के साहाय्यसे उक्त जलहारा पर्वतका बिलाव । ४ भन्दमात्र, कोई पाबाज । ५ वृहत् ढक्का, उपवन पूर्ण कर दिया। उधर मगधराजने देखा कि बडा ढोल । उसका अपर सस्कृत नाम महामाद है। चन्द्रावत् शोघ्र ही उपवनको जलसे भर उनकी कन्या (त्रि०) शुष्क, सूखा । ७ विशाल, पड़ा। ८ बुग। और पर्थ राज्य ले लेनेवाला था। उस समय उन्होंने काहन्ना (स. स्त्री०) कुसित इलति शब्दं करोति, कु. चन्द्रावत्को कन्धा देना अनुचित समझा एक कौशल इल-पच्-टाप, को कादेशः । १ वाद्ययन्त्र विशेष, एक उदावन किया था। उनकी प्राचामे प्रभात होनेके पूर्व बाजा । २ अप्सरोविशेष, कोई परी हो काक बोलने लगा। कहारों ने देखा कि प्रभात काहलापुष्य ( स० पु० ) काहलाकृतिरिव पुष्पमस्य । हुवा था, किन्तु उनका कार्य चलता रहा। फिर मगध-.. श्वेतपुस्त र वृक्ष, सफेद धतूरेका पेड़ । राजके भय से व्यस्त हो भागने लगे। जिसके हाथ में काहिल (सं० पु०) कं मुखं पाहसति ददाति, क-पा. बांस रहा, वह कहार हो गया। फिर रस्सो रखने- हल्दन् । महादेव। वाले मगहिया ब्राह्मण बने थे। किन्तु गल्पमें यह बात "मुल्योऽमुख्यश्च देहय काइलि: सर्वकामदः।" (भारव, पत० १७ प०) नहीं मिलती, कहारोंको धानुक और राजवार शाखा काहली (. स्त्री०) के सुखं आहलति ददाति, क कहांसे निकली है। अवशेषको मगधराजने सन्तुष्ट हो पा-इल-इन्डोप् । । युवती, जवान पौरत । (४०) उन्हें प्रायः साढ़े तीन सेर धान्य प्रभृति शस्य दिया था। २ किमी ऋषिका नाम । ३. एक छोटी जाति । यह कहार जाति विभिन्न शाखामें विमला है-रवानी, उडीसाकी तरफ पाई जाती है। धुड़िया, धोमर, यशवार, गड़हुक, तुड़ा, महिया काहावाह (सं० लो०) प्रांतों में होनेवाला गड़बड़ प्रभृति । कहारोंके कथनानुसार प्रथमे कोई श्रेणी- शब्द। विभाग न रहा। पहले व गया जिलेके रमणपुर काहार (कहार ) जातिविशेष, एक कौम । उच्चवर्ण नासक स्थानमें बसते थे। कहारों को जातिके प्रधान Vol. IV, 181 1