पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/७०

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करनक-कारखह वैद्यकमतसे यह कटु, तिता, उणवीर्य, विषरोग करनिकादिका नाम लिया है। . प्रत्येक मन्दमै गुप देखो। हर, बातालेमनाशक और कुष्ठ, चर्मरोग तथा क्षत २भृङ्गराज, धमिरा।.३ करनफल। रोगमें उपकारक है। इसका फल व्यवहार करनेसे करतेल (सं० क्ली०). करौंदेका तेल। यह तीक्ष्ण, . शीघ्र न्वर छूट जाता है। उष्ण एवं नेत्र, वात, कुष्ठ, कण्डू तथा लेपसे नानाविध कटकरक्षक वीजको अंगरेज वण्डकनट (Bonduc चमराग दूर करता है। (राजनिघण्ट) •nut.) करते हैं। यह देखने में खेतवर्ण, अतिशय करनय (सं० क्ली०) करजयुग्म, दोनों करौंदे। इसमें कठिन और खनिमें प्रत्यन्त ति होता है। परीक्षा एक चिरवित्व और दूसरा कण्टकोविटपकरष्न करनेपर इससे तैल, शस्य, शर्करा और नियास होता है। निकालते हैं। भारतमें पसारी इसका वील वेचते हैं। करनगर-१ बरार प्रान्तके अमरावती जिलेका एक संविराम ज्वरपर से प्रयोग करनेसे सद्य सद्य उर. प्राचीन नगर। यह प्रक्षा० २०.२८३०और देशा कार होता है। करजके वीजका तेल संक्षोभ और ७७°३२ पू०पर अवस्थित है। लोकसंख्या प्राय: .यक्षाघातके लिये . हितकर है। इसको लगाने एक सहन है। करन नामक किसी ऋषिके नामपर शरीरको कान्ति बढ़ती, त्वक् मृदु पड़ती और फुनसी इसका नाम भी करनगर. पड़ा है। प्रवादानुसार मिटती है। करत ऋषिन कठोर रोगसे पाकान्त हो महामायाको काटकरप्लके पवसे भी तेल निकाला जाता है। आराधना को यो। देवीने उनपर सन्तुष्ट हो,यहां एक वीजके कड़े छित्तकैसे चूड़ी, हार और माला जपनेको सरोवर बना दिया। करन उल. सरोवरमें नहा गुरिया बनाते हैं। कटकरलको माला लाल रेशममें रोगमुख हुये। उसी समयसे. यह स्थान पुण्यतीर्थ पिरोकर पहनने पर गर्भवती स्त्री गर्भपातसे बचती समझा जाता है। लिङ्गपुराणमें करलतीर्थका नाम है। वासक वीजसे गोली खेलते हैं। विद्यमान है। यहां नीललोहित महादेव प्रतिष्ठित हैं। करजक (सं० पु.) करन, करोंदा। यह वृक्ष (लिदपुराण ५५० ). आज भी अनेक प्राचीन मन्दिर देख छ:प्रकारका होता है। पहलेको चिरविल्व, नक्षमाल; पड़ते हैं। उनके निर्माणको प्रणाली प्रशंसनीय है। दूसरेको प्रकीय, पूतिकरन, पूतिक, कलिकारक ; करननगरमें वाणिज्य व्यवसायके लिये पनेक वणिक् तौसरको षड्मन्यि, चौथैको मर्कटी, पांचवेंको अनार रहते हैं। वहरी और छठेको करमर्दी, वनक्षुद्रा, कराम्ब तथा २ मध्यप्रदेशके बरधा निलेका एक नगर!. यह करमदंक कहते है। करक्षक कटु तीक्ष्ण तथा वीर्योष्ण, वरधा.नगरसे १० कोसपर अवस्थित है। चारी ओर पौर अनिल, कुष्ठ, उदावत, गुल्म, अर्थ प्रय, कृमि गिरिमाला खड़ी है। प्रायः ३०० वर्ष पूर्व नवाद एवं कफन्न है। इसका पत्र कफ, वात, अर्थ, कमि मुहम्मद खान्ने इसे बसाया था। यहां इक्षु पौर एवं शोधहर और भेदन, पाककटु, वीर्योष्ण, पित्तन प्रहिफैन उत्पब होता है। तथा लघु होता है। फल कफ, वात, मेह, अर्थ, करप्नफल (स'. पु.) करतफावत् अम्हं फलं यस्य । -कमि चौर कुष्ठ रोग मिटाता है। फिर धृतपूर्ण कपित्य वृक्ष, थेका पेड़। करन भी ऐसे ही गुण रखता है। (भावप्रकाश ) इसका करवफलक (सं० पु.) करनफन्च खार्थे कन्। पुष्प उष्णवीय और पित्त, वात तथा कफघ्न है। घृत वे प्रतिकनो। पा | कपित्यवक्ष, कैथेका पेड़। पूर्ण करनका पडुर अग्निदीपन, रस एवं पाकमें करनयुग्म, . करवश्य देखो। कटु, पाचन और कफ, वात, अर्ग, कुष्ठ, कमि, विष करनखेह (सं० पु०.) बरखतेर देखो। • तथा शोषहर होता है। किसी किसोने-करबककै करना (वै. वि.) करवनायक, करोदिको भेदमें महाकरन, घृतकरन, पूतिकरन, गुच्छकरच, मिटानेवाला।