काश्मीर राजत्व किया था। वह भी अतिशय मूर्ख रहे । शुक्ष काच शत्रु बोंने राज्य, विषम उत्पात प्रारम्भ किया और भीम नामक २ धूतं ब्राह्मण उनको बहुत प्रिय था । महिलानाम्नी उनको पापपरिशून्या महिपौने थे। फिर उनके पुत्र जयदेवने राज्य पा १४ वर्ष ३ खीय वनिर्मित मठके पार्श्वदेशमें एक न नन मठ दिन राजत्व किया। वह विनयी और प्रजाप्रिय धे वनवाया। लक्ष्मणदेव १३ वत्सर ३ मास १२ दिन उनने स्त्रीय राज्यके मध्य सुथवस्थाको स्थापन और राजत्व कर तुरुष्कराज कन्जनके हाथ मारे गये। राज्यका समस्त शल्य उद्दार किया। राहुल नामक उन नक्ष्मणदेवके परलोक गमन करने पर पन्य बंशजात के सर्वगुणाकर मन्त्री रहे। उनके मन्त्रवलसे राजाने मोतिविशारद लेदरीनायक सिंहदेवने काश्मीर राज्यक समस्त शत्रु वर्गको विनाश किया। महाराज जगदेवने राजा हो १४ वत्सर ५ मास २७ दिन राजत्व किय। रनुपुरमे हर्षेश्वरका प्रामाद बनाया था । हारपति उनने गुरुके साथ मिल ध्यानाहार नामक स्थानों में पद्मने नहें गुप्त भावसे विष दे कर मार डाला । नृसिंहदेवका मन्दिर बनाया था। उनके मन्त्रोपटेष्टा जगदेवके मरनेके पीछे उनके पुत्र राजदेवने राजा हो गुरुका नाम यहारस्वामी रहा। राजाने उनको प्रष्टा- २३ वर्ष ३ मास २७ दिन राज्य शासन किया । उन दश मठका ऐश्वर्य दक्षिणावरूप देकर पूना था। ने पिघातक पद्मके भयमे काठवाट नामक स्थान किन्तु शेषको सिंहदेव भास्तिक्यबुद्धि और विनयादि पर सहण दुर्ग में प्राश्रय लिया था। हारपतिने जाकर विसर्जन कर भगिनीके साथ भासत हुवे। उनके उन्हें चारो ओरसे वेष्टित किया । हारपति प्रमत्त हो भगिनोपनिने छलपूर्वक उनको मार डाला । लड़ रहे थे। उसी समय किसी चण्डालने उन्हें मार अनन्तर उनके माता सहदेव राजा हुवे। उनके डाला | राजदेवने शत्रु को विनाश कर स्वीय प्रनापुन. निकट वृत्तिलाभ करनेको दिग दिगन्तरसे अनेक बाहा-- को विशेष निहतसाध किया। णादि प्रजाने नाकर पाश्रय लिया था। वह पञ्चगवर उसके छे उनके पुत्र संग्रामदेव सिंहासन पर देशमें पायकी भांति पूजित हुवे । उनके पुत्र बभ्ववाहन बैठे थे। उन्होंने १६ वर्ष १० दिन राजत्व किया। ने गर्भरपुर स्थापन किया था। उनका राज्य १८ वर्ष संग्रामदेवने विजयखर नामक स्थानमें गोब्राह्मणगणके ३ मास २५ दिन रहा। मिमित्त २१ उत्तम छत्रशाला बनायो। वह सर्वदा सुहदेवके मरने पर म्लेच्छराज डस.चने जाकर प्रजागण के मङ्गस साधनको व्यस्त रहते थे। करण उनका राजा नाश किया था। दानशील भोवंशोद्भव 'वंशीय राजाओंने उन्हें मार डाला। (तिब्बत देशवासी) शिक्षण काश्मीरराजा सिहा- संग्रामदेवके मरनेके पोछे उनके पुत्र रामदेव राजा सन पर बैठ गये। वह इन्द्रसुख्य पराक्रमशाली रहे। हुवे। उन्होंने खीय प्रभूत शौर्यवलसे समस्त पिढपचुवा उनके शासनकाल प्रजाकुलकी सन्तोषधि और उबति की विनाश किया। रामदेवने लेदरीके दक्षिण पार साधित हुयी। उनने ३ वर्ष २ मास १८ दिन राजत्व सहर नामक स्थानमें स्वनामचिहित दुर्ग बनाया और कर लौकिकाब्दको परलोक गमन किया था। फिर उत्पलपुरके विष्णुका जीणं एवं भग्नदशापन प्रासाद उनकी पत्नीने ४ मास तक मन्त्रीके साथ राज्य किया। 'उत्तमरूपसे सुधरवाया था। उन्होंने २१ वर्ष मास १३ उनने काश्मीरमण्डलमें कोटा खनन किया था। इसी दिन राजत्ल किया । चन्दनक्षपर पुष्पकी भांति विधाता समय सिहदेवके प्रति उद्यानदेवने राज्यपद पाकाइन ने उन्हें पुत्र दिया न था। उनने मिषायकपुरस्थित कर राज्य पा १५ वर्ष १ मास दिन शासन किया किसी ब्राह्मणके लक्ष्मण नामक पुत्रको गोद ले काम्नौर था। उनके गतास होनेपर कोटादेवी ६ मास १५ दिन राज्यपर अभिषिक्त किया । उनको समुद्रानाम्नी महिषीने रानी रहों। वितस्तान नदौके तौरदेश पर समुद्रामठ बनाया था । उसके बाद शाहमोर नामक मन्त्रीने अन्यान्य मन्त्रि- रामदेवके पीछे लक्ष्मणदेव राजा दुवै । उनके राजत्व यों और विप्रोके साहाय्यसे सुपुत्रा रानी को मार स्वयं 1
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६९७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।