पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६९५

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काश्मीर गर्गद्वारा प्राकान्त पौर विनष्ट हुवे । उसके वाद गर्गके सेनापति सूर्य साथ लडाईमें हार सुस्मन्न सोहरको भागे थे । गगके लोहरसे लौटते बड़ी विष्ट पड़ी। वह जाते ही राजाके प्रियपात्रों को मारने लगे। उसोसे सब लोग डर गये । तिलकसिंहादिने अपेक्षा न कर गर्ग के भवनको आक्रमण किया था। गर्ग भी संवाद पाकर भीत हये । राजा सहणने विट्रोह "न रोक लोठनको संन्यसह गर्गका पथ रोकने को भेजा था। केशव नामक कोई धनुर्धर (लोठिकामठ- के अध्यक्ष) रहै। उन्हीं के कौशलसे गगका घर वचा और लोठनका बहुत सा सैन्य मारा गया । उम- के वाद सुस्सल और गर्ग में सन्धि हुयी। गर्ग को न्ये छ कन्या. राजलक्ष्मौके साथ सुस्सल और कनिष्ठ कनया गुणलेखाके साथ सुम्सलके पुत्र का विवाह किया गया। भोगसेनकी पवित्रचारिणी पत्नी -मल्ला पर पत्याचार करने लगे। उनने उनके माता दिसमहारकको विषप्रयोगसे मार डाला । मल्ला चितारोहण करनसे उनके हाथ न लगों । सुस्सलने उपयुक्त समय देख काश्मीर आक्रमणार्थ सनपालको भेजा था। पथिमध्य हारपति लक्की • बन्दी बना सध्नपाल अग्रसर हुवे। मुस्सल भी जा पहुंचे थे। काष्ठवाटका राजप्रासाद अवरुद्ध हुवा। सुस्सलने "ससैन्य नगर प्रवेश किया । राजसैन्यने हार रोक दिया था। किन्तु अपर पथमे सनपान्तके. घुसते ही भीषण ‘युद्ध होने लगा । युद्ध में सङ्कणके मन्त्री प्रजा निहन हुवे । सुस्मल जीते थे। सनण पौर लोठमने जाकर “मुस्सलका शरण लिया। उनने भी उनको अभयदान दे आलिङ्गन किया था। ८८ लौकिकाब्दको वैशाखी शुक्लटतीयाके दिन ३.मास २७ दिन राजत्व करने पोछे सहण राज्य च्यु त हुवे। सुस्सल सिंहासन पर बैठे थे। उनके शासनगुणम राज्यमें सुखशान्ति उबल पड़ी। वह दयालु, विनयी, साहसी, प्रजारनक, दुष्टमासक और शिष्यानक थे। उसी समय गर्ग ने इन्चक शिशुपुत्र के लिये अस्त्र धारण किया। मुस्सलने भातुष्यु वको लाने के लिये बार बार प्रादमी मेजा था, किन्तु गगने उनको न दिया । शेषको वितस्ता-मिन्धु-सङ्गमके निकट महायुद्ध हुवा था। उस यहमें सुस्मलको और मृङ्गार, कपिन, कर्ण, शूटूक प्रभृनि तन्त्री वोर मारे गये। विजयदेवकै युद्दमें भो तित, कम्पनापतिके वहुसैन्य और तन्वीशेर तिब्वाका हत हवे, किन्तु गर्ग पोछे न हटे। अब- शेषको वह रत्नवर्ष दुर्गमें जोवन सइट देख उच्चसके पुत्रको ले मुस्मनके शरणागत दृवे । मन्नवाल, यशोराज प्रभृतिने सुस्मनके राज्यागेहए- में विशेष महायना दी थी। उमीसे वर बहत गर्वित और दुन्ति हो गये। स्मन्न उसे मह न सके थे। उनने उनका राज्य निर्वासित किया। उनने भी महस- मङ्गलका पक्ष लिया था । सहसमलके पुत्र प्राय सैन्य.ले कान्द पथसे काश्मीर पाक्रमण करने गये । किन्तु पधमें राजस न्यद्वारा यशोराज आहत हुवे । उसीसे वह भौत हो लौटे थे । उबर चम्पायति जासट, बल्लापुरराज ववधर, वर्तनराज सहजपान और वन्ला- पुरके पानन्दराज कुरुक्षेत्र जाकर भिक्षाचारमे मिन गये। जासटने स्वीय-कन्याका विवाह भिक्षाचारसे कर दिया । ठक्कर गयापानने यथेष्ट सन्यसह भिचाचार- का पक्ष लिया था । पद्म नामक स्थानमें वह गजने न्य- से लड़े। युद्दमें दपक मारे गये । यथेष्ट मन्य चय भी हुवा। भिक्षाचार सर्वधा हो दुर्दशामें पड़ गये । शेषको ..ने खसुर जासटके राज्य में प्राश्य चिया । किन्तु जासट उनपर अत्याचार करने लगे। चन्द्रमागके ठक्कर डेंगपासने उन को ले जाकर प्रादरमे खालय में रखा और अपनी कन्याके साथ उनका विवाह किया। उमो बीच सहस्रमङ्गलके पुत्र फिर सैन्य ने सिन्धुपथसे भागे बढ़े थे । राजसैन्यने पथमें भाक्रमण कर ठनको बांध लिया। मुस्सलने वितस्तातोर तीन बड़े मन्दिर बनायें थे। उनमें उनने एकका अपने, एकका खोय पत्रो और एक- का सासके नाम नामकरण किया। भग्नप्राय दिवाके विहारका भो सस्कार हवा । किसी दिन गर्ग को संवाद मिला कि मुस्मनने उनको पकड़नेका परामर्श किया था। वह काल विनम्ब न सगा पुत्र कल्याव. चन्द्र के साथ अपने घर चोट गये।