काश्मीर बन्धुभावसे ग्रहण कर मिष्ट कथामें स्वराज्यको लौटा उसी समय राजपुरोके राजा संग्रामसिंह मर गये। राजा दिया।सतणभी दरदराजके साथ चले गये । भोज राज्य उनके पुत्र सोमपाल ज्येष्ठको बन्दी बना कोड स्वदेशको भगे थे । किन्तु पथिमध्य वह पकड़े गये हुवे। इसलिये उच्चन कुछ हो लड़ने चले थे। किन्तु उन्हें दस्य की भांति शास्ति मिन्नी थी। देवेश्वरके पुत्र सोमपातका राज्यशासन और प्रजाप्रियता देख उनने पिट्टकने डामरोंके साहाय्यमे राज्यलाभकी चेष्टा उनके साथ स्वीय कन्याका विवाह कर दिया। फिर लगायो, किन्तु उनसे कुछ बन न पड़ा। रामल नामक उञ्चलने भोगसेन पर विरक्त हो उनको पदच्य त किया किसी खाद्यविक्र ताने अपनेको मलका पुत्र बता राज्य था। उसके बाद भोगसेन एवं रड और व्यंडड तथा पानेकी चेष्टा की थी। अनेक निर्बोध राजावोंने भी सड कई लोगों ने मिलकर उच्चलको मार डालनेक उसको साहाय्य करना चाहा । किन्तु राजमृत्योंने निये चण्डालों को लगा दिया। राजा किसी रातको कौशलसे पकड़ उसकी नाक बाट डानी। प्रियतमा विजलाके घर जाते थे। उसी समय सकल उस समय भिक्षाचार ( भोजदेवके पुव) किशोर | दुत्तों ने मिलकर उनपर आक्रमण किया और उप- 'प्रवस्थापन्न थे । सच्चनने सुना कि वह राज्ञो जयमती परि पस्त्र चना भूमिपर उनको गिरा दिया। शेषको पर पासत थे। उसीमे उनको विनाश करनेकी आज्ञा सांडके अस्त्राघातसे काश्मीरोय ८७ लौकिकाब्द पौष निकली। घातकोंने उनको वितस्ताके खरसोतमें फेंक मामको शुक्लषष्ठोके दिन ४१ वर्ष के वयसमें महाराज दिया। भाग्यबलसे वह किसी ब्राह्मण द्वारा रचित उच्चलहलोकसे चल बसे। हुवे । साहौराजकन्या दिहा उक्त संवाद पा भिक्षा.. रड्ड रताला कलेवर उसी रातको सिंहासन पर चारको अपने घर ले गयौं । फिर उनने निरापदरखनेके बैठे थे। उसीसे उनके बन्धु उनसे लड़ पड़े। वह क्षण लिये उनको मालवराज्य भेज दिया। मासवराजने युद्ध होने पर रड्ड मारे गये। रड्डने शराज उपाधि परिचय पा भिक्षाचारको लड़ना भिड़ना और पढ़ना धारणकर रातको एक पहर और एक दिन राजत्व किया लिखना सिखाया था। था। उसके बाद गर्गचन्द्रने विद्रोहियों में किसीको उसी समय चमने पिता और भगिनौके नाम पर मार, किसोको पकड़ और किसीको देशसे निकाल एक एक मठ स्थापन किया । राजी जयमतीने भी एक उपद्रव मिटाया । राजी विब्बला चिता पर चढ़ गयीं। मठ और एक विटार बनवाया था। उसके बाद उच्चल सबने गर्गको रांजा बनाना चाहा था।किन्तु गगने कमराज्यके वढचक नामक तीर्थको दर्शन करने गये। अपनी भोरसे उच्चलके शिश पुबको राज्य देनेका पथिमध्य चण्डाल दस्युयों ने उनको पाक्रमण किया प्रस्ताव किया । मझराजके औरस और राम्रो खेताके था । साथमै पधिक अनुचर न रहनेसे वह भागने पर गर्भ से सण, लोठन एवं रखप नामक तीन पुत्रों ने बाध्य हुवे । शेषको धनमध्य दिक् मम होनेसे उनने जन्म लिया था। उनमें सत्रण पहले ही मर गये। शE घने जंगल में प्रवेश किया । उधर नगर में संवाद पहुंचा. राम (रड) के भयसे लोठन और सपने नवमठ में वि उच्चसको चबालों ने मार डाला था । कामदेव पाश्रय लिया था। विद्रोह मिटने पर सम्बियों ने उन्हें घंशीय रखडके माता नगराध्यक्ष छुड नगर में शान्ति गर्गके निकट ले जाकर उपस्थित किया । गगने सण- स्थापन कर राज्यलाभार्थ परामर्श करने लगे। कायस्थो के को राजा बनाया था। उसके बाद गर्गने मुस्सल के निकट परामर्शसे छुड्डने हो राजा बननेको चेष्टा लगायी थी। मेजा । वह काश्मीरके पभिमुख चले थे । किन्तुः किन्तु उच्चलके जीवित रहनेका संवाद सुन वह उनको पधिमध्य माणके राजा होने का संवाद मिला । सुमार मार डालनेको चिन्तामें पड़ गये। उधर उचलने किसी कारण जयमती पर विरक्त हो वर्तुलाकी राजकन्या उस समय राजाजीभ काष्ठवाट पहुंचे थे। गर्ग भी उस पोर ससैन्ध इष्कपुर गये। भोगसेन और सनपास विन्जलासे विवाह कर लिया था। ने सुस्मलके साथ योग दिया था। किन्तु भोगसेन पथमें Vol. IV, । 175
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