. - -काश्मौर -६८५ स्वयं युद्ध करनेको चल दिए। मन्त्रियों ने परामर्श दिया उनको छोड़ इधर उधर चल दिए। जब हर्षव कि जानेसे पहले भोजदेव (हर्षदेवके ज्येष्ठपुव ) को जोहिलदेवके मन्दिरके निकट पहुंचे, तब उनका दुर्गमें उपयुक्त रक्षियों के हाथ सोपना उचित था। कनिष्ठ धाता ससुराल जानेको कह भाग गये। दह. वही किया भी गया। यद्यपि पुत्र राजाकी विपक्षता नायकने भी गजाका साथ छोड़ा था। उनके साथ रखते थे, तथापि उच्चलके पिता मल्ल राजा हर्षदेवक अकेले मृत्य प्रयाग रहे। हर्षदेव फिर क्या करते। वशीभूत रहे । किन्तु हर्ष देवने वृथा कुत्मामें पड सर्वाग ज़ोवनरक्षाके लिये निकटवर्ती श्मयान उनका भवम आक्रमण किया था। मलने स्वीय पर के मध्य सोमेश्वर मन्दिरके निकट शिव नामक किसी- सन्तान भेज राजाको अभ्यर्थना की। किन्तु राजाने नपखौके कुटीरमें उन्होंने आश्रय लिया था। शांत म हो उनको युद्धार्थ बुलाया था । मलदेव उस समय उधर भोजदेव राज्यसे भागे घे । इस्तिकणं नामक देवसेवामें रहे। वह उसी वेशमें पसि लेकर निकल पड़े। स्थानमें वह २।३ पश्वारोही अनुचरोंके साथ पहुंचे। उस युइमें मन उदयराज, रथावट्ट तथा विजय नामक वहां वह विद्रोही दलकर्ट क आक्रान्त हुवे और युद्ध- ब्राह्मणहय, पौरगव, कोष्टक पार सनक निहत में अपने मातुनपुत्र पद्मकके साथ मारे गये। अन्तःपुरमें राजी कुसुमलेखा, राजवधू पासमती तथा यथाक्रम उचलके साथ सुसन मिले थे । उच्चलने सरला, (सहए और रक्षणको पत्नी, राजी नन्दा सुना कि हर्ष देवने पिवनमें वास किया था । उनने ( अञ्चल और सुस्मनको माता) और चण्डा नानी हर्षदेवको कैद करने के लिये डामरों को लगाया था । धावीने चितापर चढ़ जीवन विसर्जन किया । उन्होंने वटु अनुसन्धानसे राजाको पकड़ लिया। रिका पिता मरनेके दूसरे दिन सुस्मतने वहिपुरमे विजय- मात्र महायतासे हर्षने अनेकोंको मारा था। शेष क्षेत्र पर्यन्त अधिकार किया था युद्दमें कम्पनापति चन्द्र को कई लोगोंने मिल कर उन पर पस्त्राघात किया । राज, प्रोटमल्स और चाचरम मारे गये । उसके बाद वह सामान्य शृगाम्न कुक्कुरको भांति काल पासमें पतित सुस्मत क्रमशः सुवर्णसानुर पौर शूरपर जीत राजधानी हुवे । यथासमय हर्षदेवका मुण्ड उनके निकट जा पहुंचे। हर्षदेव उस समय राजधानी छोड़ उञ्चलमें नाया गया था। उचल घूम कर उस ओर देख न सके सड़ने गये थे। उससे सुस्मन्नने अनायास राजधानी उन्होंने अंत्येष्टिक्रिया करनेका पादेश भी दिया न इस्सगत किया। भोजदेव धानी पाकान्त होने था। किसी काठरियाने उनके देहका सत्कार किया। का समाचार सुन स्वयं सैन्य ले बड़ाई में प्रवृत्त हुवे । हर्षदेवके अधीन वेतनभोगी १०० तुरष्क योहा उस लड़ाई में भोजने जय पा सुस्मन्तको राजधानीसे रहे। उनके समय तुरुष्क महा प्रतापशान्ती और निकान दिया था। अल्पदिन बाद हो भोजदेवने । विस्तृत राज्य के प्रधोखर हो गये थे। यहां तक कि हर्ष सुना कि उचल ससैन्य उपस्थित हुए थे। के अत्याचारसे काश्मीरको बहुतसी प्रजा म्लेच्छ देशमें इधर राजा हर्षदेवने जयाश्या नदीके तौर लाकर जाकर रहने लगी। देखा कि उन्होका निर्मित नौसेतु लेकर विपक्षो साव उदयराजके वंश ६ रामावों ने ८० वर्ष ११ मास धान रक्षा करते थे। उधर उचलने राजधानीको पधि. २४ दिन राजत्व किया था। कार किया था । हर्षदेव लोहरके प्रभिमुख चले। महाराज इर्ष देवके पीछे उश्चन राजा हुवे । सुस्मन्न- "पधर्म अनुचर उनको छोड़ कर असग हो गये। शेषको ने वीरदासे राज्यके मध्य अत्याचार प्रारम्भ किया था। कोई एक मंत्री, पानीय वजन और दो एक अनुचर डामरराज्यमें उनका अत्याचार अधिक न चला। उसी- साथ ले इष देव नोहर पहुंचे थे। कपिलने पात्रय से उन्होंने उच्चचको डामर राज्य जलानका परामर्श देना चाहा; किन्तु रानाने खोकार न किया। उसी दिया था । उमने उसको कार्यमें परिणत न किया सही, समय राजाके अपर पुत्र भी विद्रोही हो गये और किन्तु भ्राताके पत्वाचारसे राजा पीड़ित देख उनको
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६९२
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