काश्मीर 'मातण्ड मन्दिरमें वर्ष देव कुछ कर न सके । प्रजाका कर देखा न था। फिर उसके अपर कायस किसीदिन हर्षदेव कटराजको परमासुन्दरी भी अत्याचार करने लगे। डामर विद्रोही दुवे । हर्ष- पनी कन्दलाकी छवि देख उनको प्राप्त करने के लिये देवने उन्हें समून्त उच्छेद करनेके लिये मण्डलाधिप अम्यकको भेजा था। धम्मका लोहरसे ले करं समस्त आकुन हो गये और राजसभामै कर्णाटरान्य वं करनेकी प्रतिज्ञा कर बेठे । कम्पनापति मदन उस कार्य डामर-राज्य लोकशूना करने लगे। डासरवासी में राजाको साहाय्य करने पर उद्यत हुवे। कारण ब्राह्मण भी बचे न थे। शेषको जब वह क्रमराज्य उन्होंने वह ससवीर संबह की थी। फलतः वह कर्णाट (कामराज ) पहुंचे, तब वहाँ के डामर हताश हो जान सके । उसके बाद वह पिपथानुसार पिटष्य. पाण छोड़ युद्धमें महत्त हुवे। उस युधमें हार मण्डला. पत्नी और पिय-कन्यागणका सतीत्व हरण करने पर धिप कुछ कुछ रुक गये। प्रवृत्त हुवे। उधर लक्ष्मीधर नाम किसी व्यक्ति के घरके निकट कुछ दिन बाद गजपुरोके राजा संग्रामसने मल्लव सम्मन्त रहते थे। लक्ष्मीधरको भावति विल. कितना हो स्वाधीन भाव अवलखन किया था। इसमें कुन बानरके सदृश रही। उससे उनकी स्त्री उन्हें देख गजा इर्षदेवने स्वयं बहतर सैन्य ले गजपुरोको न संकतो थो। मुस्सलका कार्तिक निन्दितरूप देख आ धेग था। थोड़े दिन बाद दुर्गमें खाद्यका प्रभाव वह रमणी पागल हो गयी। लमोधर इOसे राजाको हुवा । संग्रामपानने सन्धिका प्रस्ताव किया था। पुन: पुन: अनुरोध करने लगे-"पापने अपने जब किन्तु हर्षदेव सम्मस म हुवे । शेषको संग्रामपानने अनाना क्षमताशानी आत्मोयाको मार डाला है. तब दगडनायकको उत्कोच दे अन्य भावमे काम निकाल किमी दिन सिंहासन ले सकनेवाले उञ्चल और सुमन- लिया। दण्डनायकने तुरष्कासन्धके आक्रमणका भय को क्यों बचा रखा है।" घना नामी किसी वैश्याको देखा, काश्मीर लौट गये। उक्त संवाद मिला था। ससने सब वृत्तान्त उच्चल और इसके बाद हर्षदेव दरदोंके हाथसे दुग्धात दुर्ग मुस्मलमे जाकर कहा । दर्शनपान्त नामक उनके किसी उद्धार करने के लिये हारपलिके साथ मिलकर धुने भो उक्त विषय समर्थन किया था। उसीसे रात दरदराजके विरुष पारी बढ़े थे। पथिमध्य उन्होंने को ही लोन अनुचर ले उभय माता काश्मीर छोड़ मंत्री चम्पकको मताधिषकी श्राख्या प्रदान की। गये। (७६ लौकिकाब्द, अग्रहायण) दुग्धधातदुर्गमें प्रथम युद्ध हुवा था । उस समय तन्वङ्गके उच्चननेर संग्रामपालका पात्रय लिया था, उत्कोर्च कनिष्ठ माना गड़के पौत्र उच्चल और सुमनने पति- ले भाइयके वध करने की चेष्टा लगायो । उच्चनको प्रय विक्रम प्रकाश किया जो हो, इस युद्धमें उक्त संवाद मिल गया। उन्होंने राजपुरी छोड़ पन्ना- काश्मीरराज हार और अन्य सामन्त छोड़ कई अनु- यन किया था संग्रामने सुना कि भिकार भागा था । घरोंके साथ ले मारी थे। उच्चन और सुस्मल अनेक वह उसी समय ससैन्य उनके अनुसन्धानको पत्तते दिये। कौशलमै छवमङ्ग सेन्यको विपतमुखमे बचा ले गये। शेषको किसी स्थान पर उसने युद्ध करनेकी ठानी इसीसे उक्त दोनों भाइयों के प्रति काश्मीरकै प्रजावर्ग: थी। उस समय शराजने उन्हें सन्धिको छलना कर की भक्ति भावार्षित हुयी। बुला लिया। उचलने भी वोरदर्पसे संग्रामके सम्मुख उसके पछि हर्षदेवके कौशलसे कन्नसराज ठकुर, जा कहा था-"अब लोग देखें जिस वंशकी एक हृदय और कम्पमापति मदन निहत हुवे । शाखा स्त्रीके अनुग्रहरी काश्मीर आज भी राजत्व रखती, उस समय (७५ लौकिकाद) काश्मीरमें भया उस वचको दूसरी शाखाको बाहुवलसे राज्य मिलता मक दुर्भिक्ष पड़ा था। भन्न भौर स्वर्णमुद्रावाका मूल्य बढ़ है या नहीं।" गया प्रतिदिन सैकड़ों लोग अनाहार मरने लगे। राजाने उचलने संगासावक सम्म ग्बु अपना वंशका इस प्रकार परिचय दियापा Vol. IV. 174 1 -
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६९०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।