पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६८४

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कारमौर

26 इसप्रकार कण्टकवंशको दश व्यक्तियों ने राजा बन खंयाकर नामक - ( सुगन्धिसिंहके पौरस और नय- लक्ष्मी के गर्भसे उत्पब) तुङ्ग के किसी भातुष्य नके साथ ६४ वर्ष और २३ दिन राज्य किया । • संग्रामराज क्षमापतिक नामसे सिंहासन पर बैठे भ्रष्टा हो गयौं । ४ लौकिकाव्दको १ ली आवाको थे । वह गम्भोर और प्रतापशान्ती राजा रहे। उनके सजा समापतिने परलोक गमन किया। "समय भी तुङ्गः महाप्रतापशाली थे। सुतरां राज्यके क्षमापतिके पोछे उनके पुत्र श्रोलेखाके गर्भजात अन्यान्य प्रधान प्रधान मंत्री और कर्मचारी तुङ्गका पता हरिराज राजा हुवे। वह अति सुशील प्रनारनक खर्व करने के लिये विद्रोही हो गये, किन्तु विद्रोहियों में राजा थे । हरिराज २२ दिन माव राजत्व कर शक्ल अनेक व्यन्धि विनष्ट हुवे। तुङ्ग शेषको भट्रेखर नामक अष्टमीको कलिग्रासमें पड़े । कहते हैं कि श्रीलेखा किसी कायस्थका साहाया ले विपदमें पड़े थे । उसो पुत्रके निकट स्वीय भ्रष्टाचारके लिये तिरस्कृत हुयौं समय तुरुष्कराज हमीरने साहीरान्य पाक्रमण किया। यो। उसीसे 'पभिचारदारा उन्होंने उनको मार विलोचनंपाल साहीने काश्मीरराजसे साहाया मांगा डाला। या। तुङ्ग ससैन्य साही राज्य जा पहुंचे। युद्धमें विपक्ष ..उसके पछि योनेखाने स्वयं गनत्व करनेको पमि- -पराजित हो भागा था। किन्तु तुङ्गन विन्तोचनके पकका भायोजन लगाया था। उसी समय हरिराजक कथनानुसार पर्वतपाल में शिविर स्थापन न किया। धात्रीपुत्र सागरने एकानोंसे मिल इरिराज . कनिष्ठ इसीसे नूतन तुरुष्कसैन्यने जा पर्वतपाल से काश्मोगे अनन्तदेवको रोजा बना दिया। कृ विग्रहराज शिशु सैन्यको छिन्न भिन्न कर दिया। तुङ भाग कर राजाको झातुपुर्वका राजा हरण करने के लिये सोहरसे वृहत् लौटे थे। विलोचनने इस्तिक नामक स्थानमें प्रात्रय सैन्य ले काश्मीरमें प्रवेग कर लोठिकामन्दिरमें रहने लिया। साही गन्य चिरदिनके लिये हमीरके अधिकार नगे श्रीलेखाने संघाद पानिपर एक दस सैन्य भेन न मा गया। उनके पुत्र 'कन्दर्पसिंह गर्वित और मन विट्रोहियों का विनाश किया था । उसके पीछे

विलासोरहे। उसी समय विग्रहराज गोपनीय पव

वंय शप्त होनेसे अनन्तदेवके . साहोराजपुत्र प्रिय. द्वारा तुङ्गवधके लिये 'भ्राताको पुनः२. अनुरोध करने पात्र बन गये.. ज्येष्ठ रुद्रपान दस्युदन तथा कायस्थ लगे। राना क्षमापति : किन्तु हठात् वह कार्य कर गंणको प्रतिपालन करते और राजाको पापातसुखकर

न सके । अवशेषमें दवाब पड़नेसे किमी दिन मन्त्रणा

मन्त्रणा देते धेः। उन्होंने जालन्धरराज इन्दुश्चन्ट्रको का परामर्श करनेके छलसे उन्होंने मन्त्राइमें तुङ्गको प्रतिरूपवती ज्येष्ठा कन्या प्राशामतोके साथ अपमा

बुलाया था। गृहमें प्रवेश करते होः शर्करक और और उसकी कनिष्ठा सुर्यमतौके साथ पनन्तदेवको

अन्यान्य अनुचर तुङ्ग पर टूट पड़े। तुझके विनष्ट होने विवाह किया। श्रीलेखाने उसी समय अपने स्वामी

पर उनके पुत्र भी पकड कर मार डाले गये। उक्त घटना और पुत्र (हरिराज) को स्वर्गकामनासे दो मन्दिर

पीछे-तुङ्गकै भ्राता नाग कम्पनराज बने थे। कन्दर्पको स्त्री बनवाये थे । कम्पनराज त्रिभुवन डामरोंसे मिन्न - नागके साथ भ्रष्टाचारमें रत हुयौं । विचित्रसिह और विट्रोही हुवे । फिर उन्होंने काश्मीर आक्रमण किया। • भालसिंह नामक कंदर्प के दो पुत्रोंने व व माताके एकाङ्गों के साहाय्यसै अनन्तदेवने उक्त विद्रोह दवाया साथ राजपुरीको पलायन किया था।: तुङ्गके मरने के और त्रिभुवनको भगाया था। उसके पीछे अनन्तदेवने

पीछे दरद, डामर और दिविर विद्रोही हो गये। चमा.

स्वीय प्रियपात्रं ब्रह्मराजको कोषाध्यक्ष बनाया । किन्न पतिने स्वयं कोई प्रासाद वा मन्दिरादि बनायान:या । उन्होंने रुट्रपालको प्रतिपत्ति देख हिंसासे पदत्यांग- उनकी कन्या लोठिकाने एक अपने और एक माता पूर्वक पांच म्लेच्छराज, दरद और डामर नोगोंसे मिल तिसोत्तमाके नामसे मन्दिर प्रतिष्ठा किया । भट्रेजर टरदराजके सेनापतित्वमें काश्मीर आक्रमण किया था। ने भी एक मठ बनाया था। श्रीलेखा नाम्नी महिषी रुद्रपान और अनन्तदेव एका सैन्य ले चीरपृष्ठ