पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६८३

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कामोर 'यशोधर उनमें जा मिले। एकमात्र मंत्री नरवाहन दिवास्वामी देवताको स्थापन किया था। उसके बाद महिषी दिवाकै पक्षमें रहे। महिषीने शेषको ललिता. दिहान स्वामीको स्वर्गकामनासे कहष्णपुर नगर पौर दित्यपुरके ब्राह्मणों के साहायसे सन्धिकर और येशो “दिवास्वामी' नामक खेतप्रस्तरको विष्णु मूर्तिको धरको कम्पन प्रदेश टे प्राशुविपदसे मुक्ति गयो प्रतिष्ठा की। उन्होंने लोहरवासियों और काश्मोंगे- अवशेषको महिमा अभिचारक्रियासे मारे गये। यों के सुविधार्थ एक पान्यनिवास और प्रिनाम से एक उसके पीछे कम्पनराज यशोधरसे साहीराज थक्कनका ब्राह्मणावास एवं सिंहस्वामी नामक देवताको युध हुवा। रक्कादिक परामर्शसे दिहानि दोष विवेचना स्थापन किया। वितस्ता और सिन्धुके सङ्गमस्थान पर पूर्वक यशोधरको कम्पनसे निकालना चाहा था। इरा. दिहाने दूसरे भी कई देवता स्थापन किये थे। उन्होंने मत्त, शभधर प्रभृतिने पूर्व सन्धिको कथा सारण कर सब मिलाकर ६४ देवमूर्ति स्थापन को थौं । उनको ससैन्य शूरमठके निकट राजसैन्यपर पाक्रमण किया। बला नाम्नी वैवधिकजातीय किसी दासोने वलामठ सिंहद्वारपर एकान सैन्यदन्न दुर्भद्य प्राचीरको भांति नामक मठ स्थापन किया। एक वर्ष पोछे राजी दिहा- खड़ा हो सड़ने वगा, किन्तु पराजित होते होते राज का शोक दूर हुवा । वह फिर कुकर्मम तग गयों। इस कुलभट्टके समैन्य युद्दमें पहुंच योग देनेसे राजसैन्य बार उनने अंग्रहायण माष्ठ (४२. लौकिकाव्द ) जोत गया। युहमें हिम्मक मरे और शुभधर, मुकुल, अभिचारक्रियाकै साहाय्यसे अपने शिशुपौत्र नन्दि. उदयगुप्त तथा यशोधर वन्दी हुवे। रामत्तने गया गुप्तको मार उसके सहोदर त्रिभुवनगुप्तको राजा यात्री काश्मीरीयोंसे गयाली जो कर लेते थे उसे बनाया था। किन्तु २ वर्ष पीछे अग्रहायण माम हो निवारण किया। रानीने उनको गलेसे पत्थर बांध दिक्षाने उनको भी मार डाला। विभुवनगुप्तके पोंछे वितस्ता डुवा दिया। अवशेषको वह मंत्री नरवाहन उनके दूसरे सहोदर भीमगुप्त राजा' हुवे। किन्तु वह के परामशमे निरापद राजप्रशासन करने लगे। भी राक्षसौ पितामहोंके हाथ (५६ चौकि काष्टको) मारे वाहन राजानक पद पर अधिष्ठित हुवे। गनी नर. गये। उसी बीच मंत्रिवर फाल्गुन भी विनष्ट हुवे । वाहनको सम्पूर्ण हिताकाही समझ सर्वापेक्षा प्रादर भोमगुप्त के बाद दिवा प्रज्ञाश्य रूपसे सिंहासन पर करती थौं । किसी चूत कोषाध्यक्षने उसे सह न सकने बैठ गयीं। उनकी कुप्रवृत्तिके साधनमें मम्मत न होने से पर कौशलसे उमयके मध्य मनोमालिन्य बढ़ा दिया। अनेक व्यक्ति विनष्ट हुवे। शेषको उनके प्रिय उपपति क्रमशः दिन दिन महिषी नरवाइनको प्रकाश्य रूपसे तङ्ग मंत्री बने थे। तुङ्ग स्वीय चाळपंचकसे मिन्न राज्य अपमान और घृणा करने लगों। नरवाइनने शेषको हरणको चेष्टामै घूमने लगे। राजी दिहाके भ्रातुष्पत्र घबड़ा कर आत्महत्या कर डाली। उसी समयसे रानी विग्रहराज तुङ्गको मार : डानना चाहते थे। दिवाने को निष्ठुरता बढ़ी थी। वह डामर सरदारको सपरि- वह बात समझ अथवलसे विग्रहरनिको देशसे वार मार डालने पर प्रवृत्त हुयौं । मत्रो फाल नको निकाला, कदमराजको मारा और तुझंके इच्छानुसार फिर कार्यभार मिना था। इधर कार्तिक मासकी शक्ल रकके पुत्र सुलक्षणांदि मंत्रियों को भी राजसभासे वतीयाको (४८ लौकिकाष्दे ) महाराज अभिमन्य ने दरीभूत किया। मंत्री फाल्गुनके मरनेपर राजपुरो. यमारोगसे परलोक गमन किया । राजविद्रोही हो गयो । तुङ्गने उनको भी जीत 'राज. उसके पीछे . दिहाके अधीन उनके शिशु" पौत्र | पुरीराज' और डामरराज्य तथा कम्पन जयकर कम्पन- (अभिमन्यु के पुत्र ) नन्दिगुप्त राजा हुवे । उसबार पुत्र राज' उपाधि ग्रहण किया था। उसके बाद दिने शोकसे रानी चेती थौं। वह फिर प्रजाके हितकर खीय भ्राता उदयराजके पुत्र संग्रामराजको युवराज कार्यमें रत हुयों। उन्होंने अभिमन्य पुर नगर, अभि बनाया। शेषको (८८ अब्द) भाद्रकी शक्लअष्टमीके मन्युखामी देवता, अपने नामसे दिहापुर नगर और | दिन दिशा मर गयौं। नर .. ।