पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७८

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काश्मीर मुखवर्माके पुत्र भवन्तिवर्मा को सिंहासन पर बैठाया था। पुत्र रनवर्धनने सुरेश्वरी मन्दिर में भूतेश्वर नामक कर्कोटक (कायस्थ )-वंशमें उसी प्रकार १७ व्यक्ति शिव तथा शूरमठ के मध्य स्वतन्त्र मठ और उनकी पत्नी राना दुवै । उमने २७० वर्ष १ मास २० दिन राजत्व काव्यदेवीने भी काव्य देवीश्वर नामक शिवको प्रतिष्ठा किया। किया । महाराज प्रवन्तिवर्मा वैष्णव रहे, किन्तु म'वी उत्पलवंशके प्रथम राजा अवन्तिवर्मा बहुंत दाम शूरके लिये शैवधर्म पर भी प्रास्था प्रदर्शन करते थे। शोल और प्रजाप्रिय थे। सकल मन्त्री उनके वाध्य रहे। उन्होंने विश्वौकसार नामक स्थानमें अवन्तिपुर * उनके माता और भ्रातुष्युत्र पंनेक बार युइमें प्रवृत्त नगर वसाया । उस स्थान में प्रवन्तिवर्माने राज्य. हुवे, किन्तु सब हार गये । उनने खीय वैमात्रेय माता प्राप्तिसे पूर्व अवन्तिखामी और राजा होनेसे पीछे सुरवर्माको यौवराज्य में अभिषित किया था। युवराज अवन्तीवर नामक देवताको प्रतिष्ठा किया। उनने सुरवर्माने खाधूया और इस्तिकाणं नामक दो ग्राम अपना रौप्यमय सानपान तोड़ त्रिपुरेश्वर, भूतेश और ब्राह्मणों को दिये । उनने सुरवर्मस्वामी और गोकुल विजयेश तीनों देवताका रौप्यपीठ बनवा दिया। नामक दो देवताको स्थापन किया था। प्रवन्तिवर्मा उनके समय पण्डितवर श्रीकमट और सुय्य विद्यमान ने भगौरव नामक मठ बनाया और पञ्चहस्त नामक रहे। मुय्यने स्वीय वुद्धि के प्रभावसे वितस्ताके रह जन ग्राम ब्राह्मणों को दिलाया। अवन्तिवर्माको दूसरे भ्राता स्रोतका पथ खोल, नाला खोद, बांध जोड़ और सेतु बना समरने रामादि चतुष्टयको मूर्ति और समरस्वामी | देशके जल हौन स्थानमें जल पहुंचाया, जलमग्न स्थान- देवताको प्रतिष्ठा किया । मन्त्रिवर शूरके दो भाता धौर को ड्बनेसे बचाया, निम्नभूमिको उपयुक्त बनाया और और विनपने अपने अपने नामसे देवमन्दिर बनाये नदीके पारापारका पथ सुगमतापूर्वक चलाया था। उनने थे। फिर शूरके महोदय नामक द्वारपालने महोदय जिस निम्नभूमिको जलप्लावनसे बचाया, उसने कुण्डल स्वामी नामक देवताको प्रतिष्ठा किया । उसो मन्दिरमें नाम पाया है। विग्राम नामक स्थानसे सिन्धुनद पधिमा. रह गमन (रामजय ) नामक तदानीन्तम अद्वितीय भिमुख भौर वितस्ता नदी पूर्वाभिमुख प्रवाहित है। वैयाकरणिक छात्रीको व्याकरण पढ़ाते थे । दूसरे मन्त्री | किन्तु सुय्यने विनयस्वामी नामक स्थानमें दोनों को प्रभाकरवाने प्रभाकरस्वामी नामक विष्णुमन्दिर मिला दिया। सिन्धु और वितस्ताका उत्ता सङ्गम आज निर्माण किया । कहा जाता है कि प्रभाकरके पास एक मो वर्तमान है। उसके एक पाखै फनपुर और शुक पछी था। वह शक अन्यान्य शकोंसे मिल मुक्ता अपर पार्श्व परिहासपुर है। फचपुरमें सङ्गमस्थल पर पाहरण करता रहा। प्रभाकरने उता सकल शुकों के विष्णु स्वामीका मन्दिर और परिहासपुरमें सङ्गमस्थस स्मरणार्थ "शकावली"-को रचना किया। मन्त्री शूर पर विनयस्वामौका मन्दिर खड़ा है। फिर सङ्गमस्थल बहुत विद्योत्साही थे। अनन्तवर्माको सभामें शूरको पर. सुय्य-प्रतिष्ठित षोकेशका मन्दिर है। सुय्यने कपासे उस समयके भुवनविख्यात मुक्ताकण, भिव सुय्याकुण्डल नामक स्थान प्राधाणों को दिया और खामी, पानन्दवर्धन और रत्नाकर प्रभृति ग्रन्थकार सुय्यामेतु निर्माण किया। सुय्या नामक किसी घडालो पण्डित प्रविष्ट हुवे थे । मन्त्री शूरने सुरेश्वरीका मन्दिर ने शिशु काल उनको पाला पोसा था। उसीसे मुय्यने और उसमें हरगौरीका मूर्तिको स्थापन किया। उन्होंने -उसके नामपर उक्त दो. कार्य किये । महाराज अवन्तिः सन्यासियों के लिये शूरमठ नानो पालिका और वर्माने शेष दशाको पीड़ित हो त्रिपुरेशपर्वतके ज्येष्ठे- शूरपुर नामक नगर निर्माण कर नामवत्त प्रदेशका श्वर मन्दिर में रह नित्य भगवद्गीता सुनते सुनते सुप्रसिद्ध दुन्दुभि ला शूरपुरमें रखा था। मन्त्री शूरके • वैहत नहीके उपर जोर यानगरसे र कोस दक्षिण प्राचीन अवम्ति। • सूरपुरका वर्तमान नाम सीपुर । वह उतर इद पश्चिम बहस पुरका वसावशेष बीर अवन्ति स्वामोके मन्दिरका मुखइत् प्रस्तरनिमित्त नदीको उत्तर कून पवस्थित है। मन्दिर दृष्ट होता है। पानकल पथम्तिपुरको “बन्ति पुर" कहते है। Vol. IV. 171 1