पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६७०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आविर्भाव हुवा। । काठमौर. देशसे ब्राह्मण बुला उनको गोपाट्रिस्थ गोश्याम दान इन्द्रजित् पौर रावण उभयने ३५ वर्ष ६ मास राजत्व किया। रावणके यौछ तत्पुत्र (२य) विभौषणने ३५ किया। उन्होंने ये ठेश्वर लिङ्गको प्रतिष्ठा भी को धौ। उनके सुशासनमें काश्मीरमें मानो सत्ययुगका वर्ष मास राज्य चल्लाया था। विभीषण (श्य ) के पीछे उनके पुत्र नर वा किन्नर गोयादित्यके पीछे उनके पुत्र गोकर्ण ने राज्य पाया। राजा हुये। वह बड़े अविवेचक राजा थे। विभीषण उन्होंने गोकर्णेश्वर मन्दिर प्रतिष्ठा किया था। गोकर्ण. प्रजाके लिये जो करते, उसीसे उनके काम बिगड़ते के पीछे उनके पुत्र नरेन्द्रादित्य (अपर नाम खिचिल)- थे। कोई बौह उनकी महिषीको भगा ले गया। महा- को पिरान्य प्राप्त हुवा । उन्होंने कई मन्दिरों, भूते- राज किन्नरने उसो क्रोध सहन सहन वोह मठ ध्वंस किये और वह सफल स्थान ब्राह्मणों को दे दिये। खर नामक शिवलिङ्ग और पक्षयिणी देवामूर्तिको उन्होंने वितस्तातौर किवरपुर नामक एक नगर स्थापन किया। उनके गुरु उग्रने उग्रेश नामक शिव- मन्दिर और माचक्रको प्रतिष्ठा की थी। नरेन्द्रादित्य- स्थापन किया था। महा शोभा और धनधान्यसे परि- के पीछे उनके पुत्र युधिष्ठिर राजा हुये । उस समय पूर्ण होने के कारण अनेक लोग उस नूतन नगर में जा मंत्रियोंने विद्रोही हो युधिष्ठिरको अगन्तिका दुर्गमें कैद कर रहने लगे। कर रखा था। युधिष्ठिरके कैद होने पर मन्धियोंने किन्नरराजके पुत्र महायशा सिद्ध थे। उन्होंने ६० प्रतापादित्य नामक शकारि-विक्रमादित्यो जातिको वर्ष राजत्व किया। फिर उनके पुत्र उत्पन्नाक्ष राजा अभिषित किया। उनके मरने पर जलौक और जलौक- हुये। उत्पलाक्षके पीछे उनके पुत्र हिरण्याक्ष सिंहा. १. पीछे तुचीनने पिवसिंहासन पाया। तुझीन और सन पर बैठे। उन्होंने अपने नाम पर “हिरण्यपुर" उनकी प्रियतमा महिषी द्वारा अनेक सत्कार्य हुये नगर स्थापित किया था। फिर यथाक्रम हिरण्यकुल उभयने तुङ्गेखर नामक शिवमन्दिर और कतिक और उनके पुत्र वमुकुलने काश्मीरका प्राधिपत्य पाया। नगर स्थापन किया था। रानी वाकपुष्टाने कतीमुष वसुकुलके पुत्र मिहिरकुल रहे वह अतिशय निर्दय और रामुष नामक दो अग्रहार दानमें दिये और एक और प्रजापीड़क थे। उन्होंने अपने नाम पर होला बड़ा भारी अन्नसन खुलवाया। उस समय काश्मीरमें मामक स्थान पर "महिरपुर' नगर पत्तन किया। सिवा भयानक दुर्भिक्ष पड़ गया। दुर्मि पीड़ित मनुष्य अन्न- इसके मिहिरकुलने प्राणों को सहन ग्राम ब्रह्मोत्तर दे श्रीनगरीम मिहिरेवर नामक मन्दिर बनाया और सबमें पाश्रय और आहार पाते थे। अन्नसबमें ही चन्द्रकुल्या नदीको गति को भी धुमाया था । वह असभ्य गनी वाक्पुष्टा पतिके साथ मर गयौं । उसी सती मन्दि रमें करण समय तक साधारणको अवदान मिलता दारद और भाह (सिब्बतीय ) लोगों पर बड़ा ही रहा। तुझौनक राजत्वकाल चन्द्रक नामक नाटककार अनुग्रह रखते थे। मिहिरकुलके प्रोछे उनके पुत्र बकने सिंहासन लाम किया। उनके द्वारा लवणोस मगर विद्यमान थे। स्थापित हुवा । उन्होंने वकेश मन्दिर भी प्रतिष्ठा किया उसके पीछे विनय नामक अन्यवंशीय एक राना था। बकके शैछे क्रमान्वयसे क्षितिनन्द, वसुनन्द, नर हुये । उन्होंने विजयेश्वर नामक शिवमन्दिरको चारो और अक्ष राजा हुये । अक्षने विश्राम और अचान ओर नगर स्थापन किया था। मामक विहार (1) बनवाया था। प्रक्षके पीछे उनके विजयके पीछे उनके पुत्र जयेन्द्र नरपति बने। उनः-- पुत्र गोपादित्यको सिंहासन मिक्षा । उन्होंने सखोल, के सन्धिमति नामक एक महाशैव मन्त्री थे। ऐश्वर्य खानि, काहाडिग्राम, स्कन्दपुर, शमाङ्ग घऔर आड़ि- • गोपाद्रका वर्तमान नाम 'सस्त' । तस्तक पास गोपकार और न्य ठिर माम स्थान है। यह दोनों स्थान कायोत 'गोप' और ग्राम ब्राह्मणों को दिया था। फिर गोपादियन आर्य 'येटवर समझते है। Vol. IV. 169