काश्मीर एक बौद्धविहार निर्माण करा उसमें कृत्यादेवीको उसके पीछे अभिमन्युने राज्य पाया । राजसर- मूर्तिको प्रतिष्ठा किया और विहारका "कृत्याश्रम" ङ्गिणो में इस बातका कुछ भी उल्लेख नहीं-वह कौन नाम रख दिया। चौरमोचनतीर्थ में महाराज जलीक थे या कैसे राजा हुये। अभिमन्यु पनातशत्रु नृपति और महिषो ईशानदेवीका मृत्यु हुवा । धे। कण्ठकौत्स (कण्टकौत्स ) नामक ग्राम उन्होंने महारांज जलोकके पश्चात् दामोदर (२य) राजा ब्राह्मणों को दान किया। अभिमन्युने एक शिव- हुये। समझना कठिन है-वह अशोक था गोधरः मन्दिर प्रतिष्ठा कर उसके गात्र पर अपना नाम खुदा वंशसम्भूत थे या नहीं। दामोदर यथेष्ट अर्थशाची पौर दिया था। उन्होंने खनामसे पभिमन्यपुर स्थापन शिवभक्तिपरायण थे। उन्होंने दामोदरसूद नामक पुर किया। उन्होंके समय चन्द्राचार्य प्रमुख वैयाकरणिकने स्थापन कर उसमें यक्षगण द्वारा गुरुमैतु नामक सेतु प्रतिपत्ति पायी थी। उन्होंने अभिमन्य के आदेशानु- निर्माण कराया था। वितस्ताके जलप्लावनसे देशरक्षा. सार उनके समयका इतिहास लिखा । उसी समय के लिये दामोदरने (यचांकी सहायतासे) पत्थरका नागार्जुनके प्रधान दोहोंने प्रबल हो शिवोपासना बांध बंधाया। एक दिन वह श्राद्धके उपलक्ष सान और नालपुराणक्त नागनियमादि बिगाड़ अपना मत करने जाते थे। उसी समय कई क्षुधात ब्राह्मणोंने प्रचार किया था । नाग लोग उससे विद्रोही हो माग में उनसे अन्न मांगा। किन्तु दामोदर (२ य) ने काश्मीर ध्वंस करनेके उद्देश पर्वतसे असंख्य तुषार• उनको प्रत्याख्यान किया था। उससे ब्राह्मणोंने उन्हें शिना डालने लगे और अनेक अस्त्र ले बौडोंको मारने स होनेको शाप दिया । किम्बदन्ती है कि गुरुसेतुके निकटस्थ जलाशयमें पाज भी एक सर्प इतस्ततः घूमता पर नियुक्त हुये । महाराज अभिमन्यु, उसके निवा- रणका कोई उपाय न कर सकने पर "दार्वामिसार फिरता है। फिर काश्मीरके सिंहासन पर तीन तरुष्क (तुर्क) नामक स्थानको चले गये । शेषको कश्यपवंशीय चन्द्र- देव नामक एक वाहने देवसहायतासे नाग और नृपति बैठे थे। नहीं मालूम पड़ता उन्होंने कैसे राज्य यक्ष विट्रोह मिटाया । महाराज 'अभिमन्युने ही नाम किया। उनका नाम हुष्क (हुविष्क), शुष्क और कनिष्क थे । कनिष्क देखो। तीनोंने अपने अपने नाम पत्तनलिका महाभाष्य प्रथम काश्मीरमें प्रचार किया था। पर तीन खतन्त्र नगर स्थापित किये हुष्कपुर, शुष्क उसके पीछे गोनन्द ( ३य) सिंहासन पर बैठे । पुर और कनिष्कपुर । शुष्कने जयस्वामीपुर नामक एलेख नहीं-वह कौन थे या किस प्रकार राज्याधि. दूसरा नगर भी स्थापन किया था । शुष्कलेव नामक कागै हुये। उन्होंने नोन्नपुराणानुसार नियमादि स्थापन स्थानमें उन्होंने अनेक मठ निर्माण कराये। उनके पौर दुष्ट बौद्धोंके अत्याचार निवारण किये । गोनन्द समय बौद्धधर्म अतिशय विस्त त था। राजतरङ्गिणौके (३ य) ने राज्यमें मुखशान्ति और प्रजाके धनधान्य मतमें बुद्ध शाक्यसिंहके समयसे उस काल पर्यन्त १५० की वृद्धि की थो । राजसरङ्गिणीके मतसे उन्होंने ३५' वत्सर प्रतीत हुये थे । बोधिसत्व नागार्जुन उस समय वर्ष राजत्व किया। दिन काश्मीरमें उपस्थित रहे। उसके पीछे तत्पुत्र विभीषण (एम) ५३ वर्ष । •कपुर, नुष्कपुर भोर कनिष कपुरका वर्तमान नाम यथाक्रम 'उस्कर' मास काल राजा रहे। फिर इन्द्रजित् राजा हुये और - 'नकर भोर 'कम्पुर' । उत्कर-पोनपरिबाजको 'इ-से-कि-ली' उनके वाद उनके पुत्र रावणने राजा हो वटेश्वर शिव- है। वह वर्तमाम वरामूलकै पथात् वितस्ताकै दविषतौर 'अवस्थित है। लिङ्ग स्थापन किया था। वह शिवलिङ्ग कक्षण पण्डित- काश्मीरी पगिहनों को विश्वास है कि पूर्व काल हुप कपुर और वराडमूल एकत्र के समय पर्यन्त विद्यमान था। उस लिङ्गक गावमें एकीनगर था। हुव कपुर में काशिकायचिटोकाकार जिनेन्द्रबुद्धि रहते थे जुष कपुर वा नुकर वर्तमान राजघानौसे २ कोस उपर अवस्थित है। विन्दु तथा सूत्रके समान चिक बने थे। महाराज बटे- श्वर देवके उद्देश अपना समस्त राज्य नगा दिया था।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६६९
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