-- - काश्मीर स्थान है तो काश्मीर ही है। नदीका जल, इदका बल जगत् वचता, वह पमृतके सेवनका ही फल ठहरता है। शीतकालमें एकदण्डके लिये भी तुषारपात विधाम इसना स्वच्छ रहता कि दशहाथ भीचे मछलीका खेल नहीं लेता। उस पर मध्य मध्य झाड़ और प्रबल वृष्टि स्पष्ट देख पड़ता है। जल जैसा स्वच्छ वैसा ही सुखादु पड़ती है। फिर भयङ्कर शिलापात भी होता है। भी है । उत्सोका जल तो भैषज्यगुणविशिष्ट है । कभी कभी एकादि क्रमसे एक मासके मध्य सूर्य का किसी किसी उत्समें केवल मान करनेसे ही कुष्ठ पर्यन्त दर्शन नहीं मिलता। नदी इदादि जम जाते हैं। प्रारोग्य हो जाता है। जब इतना शीतल है कि ज्येष्ठ कभी कभी कलसी वा पन्च पानादिका जल जम प्राषाढ़ मास पोते भी दांत हिल उठता है। काश्मीर. अनिसे पानी या जल पौनको नहीं मिलता। काश्मीर के लोग स्वप्नमें भी समझ नहीं सकते ग्रीष्म वा धूनि वासी विस्तक्षण समझ सकते और सतर्क हो कुछ पूर्वस किम कहते हैं । वायु अति निर्मल, गौतन और महादिके मध्य दिवारात्रि पग्नि प्रज्वलित रख किसी स्वास्थ्यकर है। किसी कविने कहा है-यदि कोई दग्ध प्रकार जलरक्षा और क्लेशादि निवारण करते हैं। शीत जीव भी काश्मीर भावे, तो वह जीवित हो जाये;यहां काल पड़नेसे पावाल-वृद्ध-वनिता सवलोग छातीपर तक कि अग्निदग्ध पक्षी भी अपने पर पावे और चंगरखके नीचे एक बरोसी व्यवहार करते हैं। बरोसो आकाशमैं उड़ता देखावे। वास्तविक एक मुख ने कह मसालेकी इंडीसा अग्नि रखनेको मृण्मय पान है। नहीं सकते कामोरके जलवायुमें कितने गुण यह चारो ओर बांसको खपाचसे दुनी रहती है। काश्मीरी के रहने के ग्रहादि काष्ठसे निर्मित होते हैं। उसमें अग्निडाल छातीपर कपड़ेके भीतर लटका देते काश्मीरी भाषामें उन्हें "लड़ी" कहते हैं। वहां प्रायः हैं। सोसे काश्मीरियोंके वक्षा स्थल में जलनेके दाग भूमिकम्प होते हैं। इसीसे सब लोग लकड़ी के घर टेख पड़ते हैं। वर्फ गिरने से कुछ दिन पहले शिशिर बनाते हैं। पड़ता है। उस समय मात:काल बोध होता मानो किसी किसी घरको भित्ति प्रस्तर वा इष्टक रातको किसीने चारो भोर चूना पिछा दिया है। निर्मित होती है। किन्तु पधिकांगमें नौंव लगती है। धर्फ गिरनेसे पहले शीत प्रति असन्ध हो जाता है। बर्फ के लिये सब मकानों को छत दोनों ओर ढालू किन्तु बर्फ पड़ जानेसे उक्त शैत्यके मध्य भी कुछ रम. रहती है। छत पर पहले तख्ते और पीछे भुर्जपत्र गोयता मालूम पड़ती है। नव अधिक बर्फ गिरती, विछा मट्टोसे तोष देते हैं। वसन्तकाल उस मी पर तब तब प्रातःकास उठ कर देखने चारो ओर चांदी ढण जमजानेसे छत पूरी हो जाती है । इस प्रकारका नैसौ झलक उठती है । पर्वत, निष्पक्ष, लता,गुल्म, छत देखने में बहुत सुन्दर होती है । घर हित में पञ्च- गृह, छत, नौका, उच्चनीच भूमि,पथ, प्राङ्गण समी तल पर्यन्त बनता है, वह परेजी भवनकी भांति देख मानी रौप्यमण्डित हो जाता है। घरको छससे चौथे पड़ता है। खिड़कीके किवाडे दो प्रस्थ (दुतरफा) का मन्च जैसे बर्फ मत लटका करते हैं। होते हैं। वहिदशके कपाटमें नाना प्रकार कारकाय शीतकालमें चाय और मांस ही काश्मीरवासियोंका और क्षुद्र क्षुद्र छिद्र रहते हैं। शीतके समय उक्त छिद्र प्रधान खादा है। शीतकालमें ही केवल कई प्रकारके कागजसे बन्द कर दिये जाते हैं। उससे हिम रुकता, अमवर पक्षी मिलते हैं। किसी किसी दिन कुछ परि किन्तु पालोक पहुंचा करता है। प्रत्येक भवनमें एक कार होनेसे काश्मौरी नलाशय पर ला पक्षी मार खाते 'बोखारौं' (धुवांकर) रहती है। बिना उसके शोत. है। उस समय सणाल मित्र कोई शाक नहीं मिलता। कालमें वास करना असाध्य है । कि किसी पर काश्मौरी उसे 'नदह कहते और शीतकानमें रांध कर विशेषतः धनियों को प्रालिकाके सर्व निम्न तलमें हम्माम अर्थात् उष्ण नानागार होता है। इसमें किसी गलवायु-जगतमें यदि केवल स्वास्य कर कोई दिक्से वायु सुमने नहीं पाता । वा उष्णताका तार• Vol. IV. 167 चखते हैं।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६६२
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