पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६५९

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। ६६२ काश्मीर सकामें निम्नलिखित ४इद प्रधान है-श्म डस वा खनिज-काश्मीरमं प्रायः सर्व स्थान पर नौ मिलता नागरिक हुद। वह भी श्रीनगर के उत्तरपूर्व कोण है। किन्तु उत्कृष्ट न होने से उसकी तोपें कम बनती पर्धक्रोथ प्रवस्थित है। उसका देय ५ मील है। हैं। कुटिहर जिले में हरपतनार ग्रामक निकट तान चूंट कोल नामक नाले हारावह वितस्तासे मिन्ता पाया जाता है। प्राचीन कान्न उक्त स्थान पर निका श्रीनगर राजभवनके बिलकुल सामने वह नाला जा कार्य चलता था, किन्तु बहु दिनसे बन्द हो गया। इदमें मिल गया है। पौरपनासमें काला सीसा (जिस धातुसे पेन्सिल बनती

२रा अचार इद है । वह श्रीनगरके उत्तर पव है ) मिलता है । जम्ब पर्व तमें पत्थरका कोयला

स्थित है। नालमर खालसे वह जलके साथ संयुक्त है। तथा सुर्मा और द्रास नदीको एक उपनदीम गिगर नालमर नाना शादीपुरके पास सिन्धुनदसे जा मिला है। वा शिङ्गो नामक स्वर्ण रेणु पाते हैं। वितस्ता नदी. ३रा मानसबल इद है। स्थलपथमें वह श्रीनगरसे तौर टङ्गरट नामक स्थानके अधिवासी त्रण रेणु उधार ५ कोस और जलपथमें ८ कोस करते हैं। चन्द्रभागाके तौर स्वर्ण एवं रौप्यमिश्रित उपन्न वितस्ताके दूर दक्षिण तीर अवस्थित है। काश्मोरमें उसके तुल्य रमः खण्ड मिलते हैं। गंधकका उत्म यथेष्ट है 1 कठिन गेय इद दुसरा नहीं। उसका टैध्य तीन मीन और गंधक भी स्थान स्थानपर पाया जाता है । कामोरको विस्तार डेढ़ मौल है। मानसबल बहुत गभीर है। उपत्यका गंधकप्रधान उन्नपूर्ण है। इसीसे वहां मध्य -करण और वितणने पवित्र मानसदके नामसे मध्य भूमिकम्पका भीषण उत्पात हो जाता है। उसका उल्लेख किया है। १८८५ ई० को भूमिकम्पसे काश्मीर राज्यकै अनेक ४थ उलार इद है। वह श्रीनगरके उत्तर मनुष्य मरे और गृहादि गिरे थे। पश्चिम स्थन्नपथसे ११ कोस और जलपथसे १५कोस पशुपी-काश्मीरमें भलूक को संख्या बहुत है। दूर अवस्थित है। काश्मीर राज्यमें वही सर्वांपेक्षा पिलान और रक्तवर्ण के मनुक ही वहां अधिक हैं। वह वृहत् इद है। उत्तर दक्षिण दनदन्तको छोड़ भिट्भोजी हैं, मांस अल्प परिमाणमें खति और उसका देय डेढ़ मील और दलदत समेत १. हिंसस्वभाव नहीं देखते। काम्ला भन्नुक अन्य. भास्करी मील है। परिधि ३०मोच पड़ता है। गम्भीरता प्राकारमें होते भी अपेक्षाकृत इिंस है। चोते हाथ और स्थान स्थान पर ११हाथ भी है। पूर्वदिक्. सर्वत्र हैं। तिल्लेख प्रदेशमें बतध्यान देख पड़ते हैं। को वितस्ता नदी. उल इदके मध्य प्रवाहित है। बारहसिंगा हिरन पचास पर्वतमालाके. उच्च अंगम 'पार्वत्य दों की भांति उसमें भी हठात् भीषण बाढ़ मिलता है। हिन्दू और मुसलमान दोनों उसका मांस चढ़ जाती है। राजतरङ्गिणीमें उसका नाम "महा खाते हैं। हिमालयका मांवर परिण कृष्णवार प्रदेशस्थ पद्म लिखा है। वहा महापद्मनागका वास था। पञ्चाल गिरिमें रहता है.। चीत्कारकारो. इरिण यावत्य इदके मध्य पौरपन्नालका कसनाग, लिदार पञ्चान्त पर्वत मासाके दक्षिण और पश्चिम ढालू प्रदेश- उपत्यकाका शेषनाग और हरमुखका गङ्गाबलनाग में होता है। कृष्णगङ्गा तथा वितस्ताकी.मध्यवतों नया सर्वलनाग प्रधान है गिरियणीसे वरामुम्ना पथके वाहर पीर पचान पर्यन्त उम-काश्मीरको : पर्वतसातामै उत्सका एक प्रकार हत्काय छागल मिन्नता है। इसे मारखोर नही। प्रायः सकल स्थानमें पर्वतगाव भेदकर उत्स (सर्पभुक् ) कहते हैं कस्तूरी मृग काश्मीरमें सर्वत्र है। निकल पड़ा है। उन सकल उत्स अनक अलौकिक | वुजेको और घर नामक दी जातीय पाव छागन घटनाओं से परिपूर्ण हैं। उनमें वारनाग, पनन्तनाग, पन्नाल पर्वतमें देख पड़ता है । भेड़िया, लोमड़ी, गौदड़ वायन, अच्छाबल, कुक्कुटनाग और वितबिखर प्रति और बन्दर यथेष्ट हैं। हम नामक एक जातीय वानर रमणीय सथा कौतूहलजनक है। कृष्णागडा उपत्यकामें अधिक मिलता है। प्रधा- प्रभाव