पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६५८

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काश्मीर सुन्दर एवं मनोहर नानावण के पुष्य और सुदृश्य फिर पूर्व तोर मुरहामके निकट नरामवियाड़ा एवं तप उत्पन्न होते हैं। उन्हीं सकल स्थानों को मार्ग वा रामन्यात ( रामच्युत ) और श्रीनगर के निकट दूध- व कहते हैं। गुलमार्ग और सोमामार्ग प्रमति कई गङ्गा वितस्ता मिल गयी है। तिले उपत्यकामें देशई क्षेत्र पति सुन्दर है। ता सकन्न स्थानों में ग्रीष्मकालको नामक स्थानपर कृष्णगङ्गा नाम्बो एक मध्यविध नदी निकली है । कृष्णगङ्गा अधिकतर उत्तर सुख पचिम- झुप के झुण्ड र घोड़े चरा करते हैं। सोनामार्ग मामक स्थानमें श्रावण तथा भाद्र मास देशके बड़े दिक को नाकर हठात् दक्षिणको घूम सुजफफरावाटके भादमियों और युरोपीयोको जाकर रहना बहुत . विलकुल नीचे वितस्तामें मिल गयी है। वन उपत्यकासे पच्छा लगता है। मारु पर्दान नदी प्रवाहित ही दक्षिणमुखवष्यवार (कष्ट- मदो-काश्मीर राज्यको प्रधान नदी वितस्ता है। वयाड़) नामक स्थानपर चन्द्रभागा ना गिरी है। मारू- काश्मीर उपत्यकाको पूर्व-दक्षिण सीमामे वह उत्पन्न पर्दान, कणवार और मट्रवार नामक स्थानहयके मध्य- हुयी है । वितस्ता देखो। मे मा जम्बूके पश्चात् मिमी है। उस सकल नदीयों के अनेकोंके मसमें वितस्ताका उत्पत्तिस्थान पानसक मध्य एकमात्र वितस्तामें ही नौकादिका यातायात स्थिर नहीं हुवा । अंगरेज कहते हैं कि पर्पत, विड होता है। उसमें भी मौतसे अधिक दूर तक नौशा । और सन्दरम् नाम्नी तीन भिन्न भिन्न क्षुद्र नदीके सम्मि चल नहीं सकती। मनसे वितस्ता उत्पन्न हुयी है। उसकी अनेक शाखा सेतु-उपत्यकाके मध्य वितस्ता पर १३ मेतु हैं । सेतु. और उपनदी है। मुसलमान भौगोलिक कहते हैं कि को झोग 'कदल कहते हैं । समस्त सेतु देवदारु काठ काश्मीर उपत्यकाको पूर्व दिन सुप्रसिद्ध वीरनाग उत्स- से बने है। से प्रायः पध क्रोध दूर सोन उस विद्यमान हैं। इस अनेक स्थलमें फिर डोरीके सेतु भी हैं। जिस स्थान तौनों उस परस्पर हादश अङ्गति दूरवर्ती हैं। मुसल- में बहुदूर विस्त त सेतुका प्रयोजन वहीं डोगेश नाम मत परिमिति अर्थात् अङ्गुष्ठ के अग्रभागसे सर्जनौके सेतु बना है। वह दो प्रकारका होता-चिका और अग्रभाग पर्यन्त स्थानको वालिप्त या वित्ता कहते भूला । सोचने या देखने में भूला बहुत भयानक समझ है। इसीसे उसका नाम भी बालित या बित्ता है। पड़ता है। किन्तु वास्तविक मयका कोई कारण नहीं फिर उससे निर्गत जलस्रोत वितस्ता कहलाता है। बड़ी सरसतासे निरापद उसके ऊपर यातायात होता सती उत्सों की जलधारा क्रमशः निसनीको नीचे है।मास असबाब भी उस.पारसे इस पार, इस पारसे उसरी, वीरनाग, अनन्तनाग, अच्छावत, कुकुरनाग, .उस पार पहुंचाया जाता है। साथमाग प्रभृति उस सकसका जलप्रवाह निकस माला-श्रीनगर और तबिकटवर्ती प्रदेशमें कई कर मिलने से उसकी अवयवदि हुयी है। नाले हैं। उसी स्खल.पर उह्मोस वा एनारद है। उसो. वितस्ताने क्रमशः उत्तर-पूर्व मुख कियह र चत के मध्य वितस्ता प्रशहित है । उस इदको पार उत्तर इदमें प्रवेश किया है। उसके पीछे उसमें दक्षिण करना कोई सोधी वात नहीं। इसीसे सोपुर और वाहिनी हो पश्चिम प्रान्तमे वरामूला नामक जनपदके बौनगरके मध्य एक नाला निकाल गमनागमनको मध्य भीषण वैशसे उपत्यकाको छोड़ा है। उपत्यका सुविधा की गयी है। खेतीके सभीवेके लिये भी यथेष्ट मध्य विसस्ताका अधिक प्रशान्त भाव है। किन्तु उपत्य भाले निकाले गये हैं। उनमें चौरपुर जिलेका शाह- काके बाहर उसका जैसा भीषण वेग वैसी ही भयकारी कुल और इसलामावादका नैन्दी तथा निबर नाला मूर्ति है । उत्तर पूर्व से इसलामावादके निकट सिदार, प्रधान है। पूर्वसे शादीपुरके सम्मुख सिन्धुनदी और सोपुर नगर इह-काश्मीरमें इद यथेष्ट हैं । उपत्यका और के निकट पोहरूमदी वितस्तासे पविम तौर मिली है। पास्य प्रदेशके नाना स्थानमें इद देख पड़ते हैं। उप- Vol. IV. 166