पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६५७

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काश्मौर । वर्तमान सीमा-उत्तर सीमा हिमालय पर्वतके अन्त. शिखरका उपरिभाग तुषारमण्डित देख पड़ता गंत काराकोरम थेणी और काश्मोरके ही अधीनस्थ वत्सरके मध्य प्रायः ८ मास काल बरफ चढ़ा रहता कई प्रधं स्वाधीन क्षुद्र राज्य हैं। दक्षिणकी ओर पंजाब है। उत्तर पश्चिम प्रान्तमें वियाको नामक तुपाराहत के अन्तर्गत झेलम, गुजरात और स्यालकोट प्रभृति क्षेत्र प्रायः ३५ मील विस्त त है। पञ्जाल पर्वतमाना। है। पश्चिम सीमा पर इजारा प्रदेश और रावलपिण्डी के मध्य सर्वोच्च शिखरका नाम मूनी है। वह १४८५२ है। पूर्व में तिब्बतका राज्य लगा है। फोट उच्च है। माहेस्टाटोपा शिखरको उच्चता प्रदेश विभाग-काश्मीर राज्य में आजकल जम्बू, १३०४२ फीट है । उत्तर दिक् इरमुग्नु पर्वत काश्मीर उपत्यका, लदाख, वलतीस्तान, भद्रवार, १६.१५ फीट ऊंचा है। काश्मीर उपत्य शाके प्रान्त. कष्णवार, दर्दीप्तान, ले, तिलेल, सुरू, जास्कार, रूपसू. में नङ्ग पर्वत वा दयरमूर ससुद्रपृष्ठसे २६६२८ फीट पुच्च और दूमरे भी कई क्षुद्र क्षुद्र विभाग हैं। उच्च उठा है। उक्त पर्वत काश्मीर उपत्यका और भूमिभाग-साधारणतः देखनेपर काश्मीर राज्य पर्वत- सिन्धु नदीके मध्य प्रवस्थित है । उसीके निकट शेर वेष्टित वितस्ताकी अववाहिका समझ पड़ता है। मध्य और मेर नामक दूसरे दो शिखर हैं। उनमें प्रथम स्थन में वितस्ता नदी शाखा प्रथाखा फैला वराहमून २३४१० पौर द्वितीय २३२५० फीट उच्च है। दिक के गिरिवरम से पंजाब प्रदेशमें प्रवेश करती है। विसस्ता अनुसार उनके भिन्न भिन्न नाम है। पूर्व में तुपारात सौरवर्ती निम्न उपजाऊ भूमिको छोड़ एक उत्तम पन्जाल पर्वत, दक्षिणमें फतेपनाल एवं वनिहान प्रदे- भूमि पर्वतमृलसे समतल भूमिको ओर विस्तृत है। शका पन्नाल पश्चिममें पौरपनाल और उत्तर-पयिममें उसे कपरास या उदारस कहते हैं । उक्त सकल भूमि हरमुख तथा सोनोमार्ग पर्वत कहते हैं। का मैदान प्राय: उद्भिदप्राणी-गरीर जात और वालुका दक्षिणदिकमें पर्वतमाला निम्न होनेसे थोमा तथा कर्दम मिश्रित है । उक्त सकल उपजाऊ भूमि इस पोर प्रति सुन्दर है। उत्तरदिक, अपेचात वन्य खण्डके मध्य प्रायः १. से ३०० फीट गभीर नदीपथ होते भी सौन्दर्यपूर्ण है । इधर प्रत्य च पर्वतमाला, है। साधारणतः उपजाऊ भूमिका एक ओर पर्वत- विस्त त तुषारक्षेत्र, पर्वतावरोही क्षुद्र तथा हहत् नदी माता रहते भी किसी किसी स्थनपर चारो घोर निन स्रोत और मध्य मध्य जलप्रपात दृष्टिगोचर होते हैं। भूमि ही है। उक्त सकल भूखण्डमें कृषि होती है। इस अञ्चलमें कोई शिखर २००० फाटसे कम 'चा किन्तु जलकी सुविधा अधिक नहीं । वृष्टि न होनेसे नहीं। काराकोरम पर्वतमालामें एक शिखर प्रायः नाली बना नदीसे जन्न लाना पड़ता है। पर्वतमूलको | २८२५० फीट ऊंच है। टालू भूमिमें धारणस्थान और देवदारुवन इत्यादि युरोपके भ्रमणकारा काश्मीर के उन सकन पर्वतों- वर्तमान हैं। काश्मीरके दक्षिणांशम ही लोग अधिक में भ्रमण कर शोभाका वर्णन कर गये हैं। उन्होंने रहते हैं। कृष्णगङ्गा उपत्यकाके निम्नांश और सिन्धु, लिखा है कि वैसी शोभाधार प्राकृतिक छवि जगतके पववाहिकासे वितस्ता तथा चन्द्रभागाको अववाहिका- दूसरे किसी स्थानमें सम्भवतः देख नहीं पड़ती। उक्त को स्वतन्त्र करनेवाली तुषाराहत पर्वतमानाको चतुः शेतशिखरके तन्नसे जितने ही अवं गमन करते, पार्श्वस्य भूमिमें भी लोगोंका पधिकतर वास है। उक्त उतने ही ऋतुभेद तथा तदुपयोगी उद्भिज, शस्य और प्रदेशको पर्वतमाला देवदारके वनसे पाच्छादित है। फलमूल आदि देख पड़ते हैं। फिर कहीं उक्त सकन्न- मध्य मध्य कृषिके लिये उपयुक्त भूमि भी है। नदो. का एकत्र समावेश है। उन पर्वतोंमें निरीह पार्वत्य तौर श्यामल शस्यक्षेत्रसे परिपूर्ण है । प्रत्येक ग्राममें लोग रहते हैं। सुन्दर सुन्दर पध विद्यमान हैं। मार्ग वा व-पौरपञ्चासको अपेक्षा निम्नतर पर्वतके पर्वतमाला-काश्मीरको चतुर्दिकस्य पर्वतमाला कई शिखरदेश अधिक विस्त त हैं। उन सकन स्थानोंमें 1