पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६५४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काशीयात्रा-काशीराम दर्थ न कर खा न तीर्थ में नहा स्वनिश्वर दर्शन हो खर, अगत्येखर, कश्यपेश्वर, हरिकेशवनखर, करते है। तदनन्तर मन्दाकिनी-तीर्थ में नहा मध्य वैद्यनाथ, ध्रुवेश्वर, गोकर्णेश्वर, हाटकेश्वर, अस्थिक्षेप. भेश्वर दर्शन करना चाहिये। फिर हिरण्यगर्भतीर्थ में | तड़ागमें कोकसेश्वर, भारतभूवेश्वर, चित्रगुप्तेश्वर, चित्र- स्नान कर हिरण्यगर्भश्वर दर्शन करते हैं। फिरमणि घण्ट, पशुपतीश्वर, पितामहेश्वर, कलसेखर, चन्द्रेश्वर, कर्णिकाम समान कर ईशानेश्वर दर्शन करना चाहिये। वोरेश्वर, विद्ये खर, पग्नीश्वर, मागेवर, हरिश्चन्द्रखर, अनन्तर यथाक्रम गोक्ष-तीर्थमें नहा गोप्रेक्षेश्वर, चिन्तामणिविनायक, सर्वविघ्नहारी सेनाविनायक, कापिलड़दमें स्नानकर वृषभध्वज, उपशान्त-कूपमें | वशिष्ठ, वामदेव, सीमाविनायक, करुणेश्वर, त्रिसन्धे- महा उपशान्त शिव, पञ्चचूड़ा इदमें स्नान कर ज्येष्ठे श्वर, विशालाक्षी, धर्मखर, विश्ववाहुक, पाशाविनायक, श्वर, चतुःसमुद्र-कूपमें नहा महादेव, वापोजल स्पर्श वृदादित्य, चतुर्वखर, वाघीश्वर, मनप्रकाशश्वर, एवं शुक्रकूपमें स्नान कर शुक्रखर, दण्डखाततीर्थम ईशानेश्वर, चण्डी. चण्डीखा, भवानी शहर, ढुण्डि. स्नानकर व्यानेश्वर और शौनकाण्डमें नहा धौन राज, राजराजखर, लाङ्गलीवर, नकुलीखर, परान्नेश्वर, केश्वर तथा जम्बुकेश्वर लिङ्गको पूजा करते हैं। परद्रव्ये खर, प्रतिग्रहेखर, निष्क नईश्वर,मार्कण्डेयेवर, दूसरी एकादयायतनी नानो यात्रा भी है। उसके अमरेश्वर और गङ्गेश्वरको पूजा कर ज्ञानवापी में लिये प्रथम अग्नीधकुण्डों स्नान कर अग्नौधेश्वर दर्शन नहाना चाहिये। उसके पीछे नन्दिकेश्वर, तारकेश्वर, फिर यथाक्रम उर्वशोश्वर, नकुलीश्वर, आषाढीवर, भार महाकालेश्वर, दण्डपाणि, महेश्वर, मोक्षश्वर, वीरमने- मूतवर, लागलीवर, त्रिपुरान्तक, मनःप्रकाशकेश्वर, श्वर अविमुक्त श्वर, और पञ्चविनायकको प्रणाम कर प्रौतिकेश्वर, मदालसेश्वर, और तिलपर्णेश्वर दर्शन करते विश्वेश्वरको गमन करते हैं। वहाँ निम्नलिखित मच है। यह यात्रा कर मानव रुद्रत्व पाता है। उच्चारण किया जाता है- शुक्लपक्षको सोयाको गौरीयात्रा करना चाहिये । "अन्त इव याये ये यथावया मया कृता । प्रथम गोप्रेक्षतीर्थमें मानकर सुखनिर्मालिका, नाते म्यूनानिस्किया सम्मुः भोयसामनया विमु. (1001९६) हैं। उसके पीछे यथाक्रम ज्येष्ठावापी में स्नान एवं थोड़ो या बहुत जितनी सको, मैंने यह अन्तर ज्येष्ठा-गौरी पूजा, ज्ञानवापीमें स्नान तथा सौभाग्य यात्राको है। एतद्दारा महेश्वर मेरे प्रति प्रोत हो। गौरीकी पूना, शृङ्गारतीर्थमें स्नान एवं शृङ्गारगौरीकी मन्त्रक पाठान्त क्षण काल मुक्तिमण्डपमें विश्राम पूजा, विशालगङ्गामें स्नान तथा विद्यालक्ष्मीको पूजा, कर निष्याप हो-घर जाना चाहिये। स्वसितासीध स्नान एवं ससितादेवीको पूजा, भवानी (काशीक्षण,१००) तीर्थमें स्नान तथा भवानीदेवीको पूजा, पौर विन्दुः | काशीरहस्य (सं० लो०) काश्या रहस्यम्, ६-तत् ।। तीय में स्नान एवं मङ्गला-गौरीकी पूजा करते हैं। काशीवासियों का कसंथ प्राचारविशेष। २ काशी- शेषको महालक्ष्मी जाना चाहिये। इसीका नाम गौरी माहात्म्य। यात्रा है। प्रति चतुर्थों को गणेशयात्रा, मङ्गलवारको काशीराज (सं० पु.) काश्याः काशीप्रदेशस्य राजा, भैरवयात्रा, रविवार अथवा षष्ठो वा सप्तमीयुक्त रवि. कागो-राजन-टच । राजा सखिभ्यष्टच् । पा 48 | १दिवो. वारको सूर्ययात्रा, षष्टमी वा नवमीको चहायात्रा दास। २ काशीका कोई पधिपति । ३ चिकित्साकौमुदी- और प्रतिदिन पन्त यात्रा करना चाहिये। अन्त प्रवेता । (अयवेवर्तपुराण). 8 वीरसिंहके पिता खेटप्लव हयात्रा इस प्रकार होती है-मणिकर्णिकामें स्नान नामक ज्योतिग्रंथकार। कर मणिकर्णीश्वरको पूजते हैं। उसके पीछे यथाक्रम काशीराम-रत्नप्रदीपनिघण्ट नामक वैद्यक कोषकार । काम्बलेश्वर, पखतरेश्वर, वासुकीश्वर, पर्वतेश्वर, गङ्गा २ (वाचस्पति)-राधावलमके पुत्र और रामकृष्ण केशव, सनितादेवी, जरासन्धेश्वर, सोमनाथ, वाराहेखर पौत्र। इन्होंने रघुनन्दनके स्मृतितत्त्वको टोका बनाई Vol. IV. 165