६५६ काशीनाथ-काशीयात्रा "काल निकटतो चावा काशीनाथं समाधीयेत् ।" ( काशीखण्ड) नामका टोका, चण्डोमा हात्लाटोका, त्रिकूटारहस्यटीका, २ काशीके राजा। ३ एक वैद्यक ग्रंधकार । किसी दक्षिणाचारदीपिका, पदार्थादा शविचन्द्रोदयटीका, किसी हस्तलिपिमें काशीराम, तथा कायोराज नामान्तर पुरश्चरणदीपिका, वट कार्च नदीपिका, मन्त्रमहोदधिको देख पड़ता है। उन्होंने प्रजोर्णमन्नरी, 'काशीनाथी' 'मन्त महोदधि-पदार्थादर्ग' टोझा और गारदातिनक- रसकल्पन्नता और शाङ्गधर-संहिताशी 'गूढार्थदीपिका टीका। २ मुइत सुहावनी ज्योति न्वरचयिता। ३ मर- नाम्नी टीका प्रणयन को है। ४ तैलङ्गदेशीय यज्ञमूति विलियम जोन्सके एक शास्त्रविद प्रसिद्ध पगिड़त और वंशोहव एक नैयायिक । उन्होंने 'असिग्रंघात्मि शब्द-सन्दर्भ सिन्धु नामक संस्कृत ग्रंयकार का' नाम्नी तत्त्वचिन्तामणिदीधितिको व्याख्या प्रभृति. काशीनाथ मिश्र-वैदेही परिएय नामक संस्कृत काव्य- को रचना किया है। : ५ अमरकोषको 'काशिश रचयिता। नाम्नी टीकाके कर्ता । ६ सारस्वत व्याकरणभाष्यकार' काशीयात्रा ( सं० स्त्री० ) काशं काशीस्थतीर्थसमृहे और किरातार्जुनीय टीकाकार । ७ ज्योतिःसंग्रह नामका यावा ७-तत्। कागोप्य तोयं समूह दर्शनार्थ गमन ग्रंथकार । ८ प्रक्रियामार और शिशुवोधव्याकरणारच- यात्री जिस प्रकार कायौयावा करते उसके नियम यिता 12 शीघ्रबोध, लग्नचन्द्रिका, प्रश्नदीपिका प्रभृति काशीखण्ड में निर्दिष्ट है। प्रथम यावीयों को मवन चक्र- ग्रंथकार । १० यदुवंश-काव्यप्रणेता । ११ रामचरित- पुष्करिणीके जनमें स्नान कर देव, पिट, ब्राह्मल पौर महाकाव्यरचयिता । १३ वेदान्त-परिभाषारचयिता। अर्थि गणको प्त करना चाहिये । पौछे आदित्य, द्रोप- १३ वैराग्यपञ्चाशीति नामक वैदान्तिक अंधकार । १४ दी, दण्डपाणि और महेश्वरको प्रणाम कर टुंदिराज शिवभक्तिसुधाण व प्रणेता । १५ याचकल्पग्रन्थकार । १६ जाते हैं । फिर ज्ञानवापीके जनसे आचमन कर नन्दि. संवत्सर-प्रकरण नामक न्योतिन्य कारा १७ संक्षिप्तका. केश्वरको पूजन करते हैं। उसके पीछे तारकेश्वर और महाकालेश्वरको पूजा कर फिर दण्डपाणिको दम्बरी-रचयिता। १८ सूत्रपादवेदान्त-रचयिता । १८ पन न्तकपुत्र और यज्ञे खरके मातुप्पुत्र, उन्होंने धर्म सिन्धुः। पूजते हैं । उक्त प्रकारका यावाका नाम पञ्चतीय- याबाहै । उसके पीछे वैश्वेश्वरी यात्रा करना चाहिये। सार, प्रायश्चित्तेन्दुशेखर, और वेदस्तुतिटोकाको रचना यात्री प्रतिपत्से चतुर्दशी पयवा प्रति चतुर्द योको किया है। १७८१ ई० को उक्त काशीनाय वर्तमान थे। हिसप्त-प्रायतनी यात्रा करते हैं । मत्स्योदरीमें सान काशीनाथ-नैनीताल जिलेके काशीपुर परगनेके एक कर प्रथम प्रणवेश्वर, तत्पर त्रिविष्टप, फिर महादेव, भूतपूर्व शासक । ई० १६ वौं या १७ वीं शताव्दोमें उसके पीछे यथाक्रम कत्तिवास, रत्नेश्वर, चन्द्रेश्वर, वह विद्यमान थे। काशीनाथके हो नाम पर काशी- केदारेश्वर, धर्मेश्वर, वीरेश्वर, कामेश्वर, विश्वकर्मेश्वर, पुर परगने का नामकरण हुवा है। मणिकर्णिकेश्वर, प्रविमुक्तेश्वर पार शेषको विश्वेश्वर काशीनाथ दीक्षित-१ सदाशिव दीक्षितके पुत्र । उन्होंने दर्शन कर पूजादि करना चाहिये । जो व्यक्ति कागी- प्रयोगरत्न, रुद्रपदति, ननदोमपद्धति, साइप्रयोगपति में रइ.इसप्रकार यावा नहीं करता, उहको नाना एवं कात्यायनीय ज्योतिष्टोमपद्दति को टोकाको प्रण- विघ्न लगता है । विघ्नगान्तिक झिये प्रष्टायतनी नानी यन किया है। २पट पञ्चाशिका नानी ज्योतिर्ग्रन्थ कार । दूसरी यात्रा करना चाहिये । उसमें यथाक्रम दचेश्वर, काशीनाथभट्ट-'नयराम भट्टके पुत्र और अनन्तभट्टके पार्वतीश्वर, पशुपतीश्वर, गनेश्वर, नर्मदेश्वर, गभस्ती. शिष्य । उन्होंने अनेक संस्कृत ग्रन्य रचना. किये हैं। श्वर, सतीश्वर, और तारकेश्वर दर्शन करते हैं। यह उनमें निम्नलिखित ग्रन्थ मिलते हैं-कौनगजमर्दन, यात्रा पष्टमी तिथिको कर्तव्य है। काशीवासियों को एक गुरुपूजाक्रम, चण्डीपूजारसायन, मन्त्र चन्द्रिका, मन्त्र दूसरी भो यात्रा करना चाहिये । प्रथम वरणामें नहा शैले- प्रदीप, गणेशाच नदीपिका, जानाणवतन्त्र को गूढार्थादर्श, ज्वर दर्शन करते हैं। फिर.वरणासङ्गममें नहा सङ्गमेश्वरको .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६५३
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