कायौ पुरातत्व विष्णु और ब्रह्माण्ड पुराणके मतसे आयु हरिवंश, पस मसा पौरममाण्डपुराणके मतसे दिवो- वंशीय सुहोनपुत्र काश (१) प्रथम राजा थे। उनके पुत्रका दासके पूर्व हैहयवंशीय राजा भद्रवेण्यने वाराणसीको नाम काशिराज वा काभ्य था । सम्भवतः काशिराज पधिकार किया था। पोछे दिवोदामने उन्हें मार बहु- काश्यक नामानुसार ही उनका राख्य 'काधि' वा कष्टसे पिळरान्य छोड़ा लिया। उस समय निकुम्भक 'काशी नामसे विख्यात हुवा है। कशिवाजके बाद उनके शाप और क्षेमक राक्षसके सत्पातसे महासहित पुध दीर्घतमाने राज्य किया। दीर्घतमाके धन्व नामक शालिनी वाराणसी हतश्री एवं जनशून्य हो गयी थो। एक पुत्रने जन्म लिया था। उन्होंने बहुकान तपस्या उससे दिवोदास गोमतीतौर एक नगर बसा राजत्व कर धन्वन्तरि पुत्र पाया था । (२) क्षत्रियहाज करते रहे । * हैहय वंशीय भद्र श्रेण्य के दुर्दम नामक धन्वन्तरिनं महर्षि भरद्वान के निकट शिक्षाशाम कर एक पुत्र था ! राजा दिवोदासने बालक समझ उसे पायुर्वेदको पाठ भागमें विभक्त किया । आधुदका / छोड़ दिया। कालक्रमसे वही वालक हैव्यवंशका विभक्त करनेसे ही वह वैद्य नामसे विख्यात हुये। उत्तराधिकार पा प्रबन्त पराकान्त हो गया । उसने काशिराज धन्वन्तरिक औरससे के तुमान्ने जन्म लिया (३) दियोदासको जोत वाराणसीको अधिकार किया। महाभारतके अनुशासन पर्वम राजा केतुमान इयंव दिवोदासके औरस और दृषहतीके गर्भसे प्रतन नामसे अभिहित हुये हैं। सम्भवतः इश्व के राजत्व नामक एक महाबल बालकने जन्म लिया था। उसने काल वाराणसी नगरी बसी थी । (४) उसी समय यदु- गजा दुर्दमको युद्ध में जीत काशीराज्य अधिकार किया। बंशीय हैइयक पुत्रोंसे काशिराजके विवाद का सूत्रपात कीयोतको ब्राह्मण उपनिषत्में प्रतदैन एक परम दुवा । अवशेषमें यकं पुत्राने घोरतर युद्धकर श्य- यानिक गजा कहे गये हैं। वह रामचन्द्र के समसाम- बको मार डाला। इखक मरनेपर मुदेव काचौके यिक थे । रामायण उत्तर काय ४ १५ १० प्रसदनके पुत्र वस सिंहासनपर बैठ राज्य पालन करते रहे। हैहय लोग रहे। उन्हें लोग ऋमध्वज और कुवलयान कहते थे । फिर भी शान्त न हुये। उन्होंने पुनार जाकर सुदेवको परमजानधीला तत्वदर्शिनी मदालसा उसको पत्नो मार यथास्थान प्रस्थान किया। सुदेव के पुत्र महात्मा रहौं । मदालसाके गर्भ वमके पलक नामक पुवने दिवोदासमे(५)पिटराज्य पाया। उस समय काथोकी जन्म लिया अञ्चकके राजलकान काशीराज्य अति विस्तत राजधानी वाराणसी गङ्गाके उत्तर और गोमतीके था। उन्हीं महात्माने शापावसानमें चमक नामक दक्षिण कूलपर स्थापित थो। दिवोदासने शव के भयसे राक्षसको मार फिर वाणारसी नगरीको प्रतिष्ठित पौर राजधानीको सुदृढ किया। (महाभारत पञ्चशासन, २०.) परम रमणीय वेशमें सब्जित किया । अलके पीछे (१) मायवतक मताधसार सहीवक व साय पौर काय पुत्र काशि थे। (11) किन्तु हरिवंश भोर ब्राहपुराणके मासे सम- पुत्रपरम्परामें सन्नति, मनोध, म, सुकेत, धर्मकेतु, जीवके पुत्र काय और उनके प्रब कास्य थे। सत्यकेतु. विभु, सुविभु, सुकुमार, धृष्टकेतु (यह कर (२)विध (81011), भागवत (101) धीर गका पुराण (१३३।१.)- मनसे धन्वन्तरि होघेरामाके पुत्र थे । किन्तु क्षेत्रपर कुरुपाण्डव-युहमें उपस्थित थे), वैणहोत्र, हरिवंश (२९.) और प्रमाणपुरापक मससे दो समाके पुत्र धम्म भर्ग और भागभूमि राजा हुये । वह सभो 'काश्य और चन्चकै पुव धन्वन्तरि थे। (R) "तस्य गैई समुपनो देयो धन्वन्तरिता। या 'काशेय' नामसे विख्यात हैं । परपृष्ठ में पुराणोत काथिगन्ये महारानः सर्परीगण्याचा काशिराजोंकी एक तान्ति का दो गयो है- पायुवेद भावाशयकार स भिषकक्रियम् । तमष्टधा पुनर्थस्य शिष्येभ्य: प्रव्यपाशत् ॥ २९॥ (ममाणपुराप)
- काशिराज दिवोदामका नाम ऋग्वेद चौर मुग्वे दानुक्रमपिताम
दो धन्वन्तरिस्तस्मात् कैतमाय तदात्मनः।" (बापुराण १५३११ देख पढ़ता किन्तु सन्देवी-दोनों एक व्यक्ति थे या नहीं। (७) कथामसमें सर्व प्रथम वाराणमौका देख। + महामारतके मतानुसार दिपोदासक श्रौत्स चौर माधबो गर्भसे प्रवे- दनका जन्म घा (उद्योगपर्व ११४.) माशेयपुराधर्म २० से (भारत अनु०३..) (५0 विध, माण, गद धौर मागरक्षक मवम दिवोदाच भीमरथी ३४ अध्याय पर्यन्त कुबलग्राव-चरित है। उसके पान १०पध्याय पवई चरित वर्षित हुना। पुत्र । कित कितानकाशिराजय वीर्यमान्" (मगवदगीता ) Yol, IV, 158