। काशिखण्ड-काशिपुर कटक सम्मानिते' अर्थ लगाया है । इस स्थानपर काशिपुर ( काशीपुर)-युक्त प्रदेशका एक नगर । (वालशास्त्रीके मतमें ) चा (चार्वाक !) लोकायत वह अक्षा. २९. १३3. और देशा• ७४५६५" कटक सम्मानित वुद्ध है। धर्मानुरागी स्वधर्म-प्रतिपाद्य पू० पर मुरादाबाद नगरसे १५ कोस दूर अवस्थित ग्रन्थसे प्रमाण उछ त करते हैं, वह कभी चार्वाकमतपर है। शाथिपुरमें तहशीन भी है, जो नैनीताल जिलेमें नहीं चलते। लगती है। उसकी पार्वत्त्वभूमि प्रार्द्र और अधिकांश काशिकाप्रकाशकका मत युक्तिसङ्गत समझ जङ्गलसे भरी है। मध्य मध्य पूर्ण प्रशस्त भूगड़ नहीं पड़ता । काशिकाकारने अनेक स्थलसें ब्राह्मण हैं । स्थान स्थान पर शस्यादि भी उत्पन्न होता है। . शास्त्र प्रमाण सङ्गाह किया है । केवल एक स्थानपर तहसीनका परिमाण १८८ वर्गमौन्न है। किन्तु उसमें 'च' और 'लोकायत' शब्दका उल्लेख देख वृत्तिकार. ८८ मोम्न परिमितभूखण्डपर शस्य उपजता है । नोक- को जैन वा बौड कैसे कह सकते हैं । पाणिनि, पतचलि, संख्या प्रायः ७५ हजार है । तहसील में १ फौजदारी चार्वाक और लोकायत शब्द देखी। जयादित्य एक परम अदालत और २ थाने हैं । काशिपुर नगर प्राचीन धार्मिक हिन्दू रहे।राजतरङ्गिणीमें लिखा है कि उन्होंने कालसे प्रसिद्ध है। उसका भग्नावशेष स्थान स्थान पर विपुलकेशव नामक एक विष्णुमूर्तिको प्रतिष्ठित किया निकला है। लोकसंख्या प्रायः १५ हजार है । नैनी- था * । वामन देखो । काशिकात्तिकी विभिन्न समयमें तालसे काशिपुर २२ कोश पड़ता है। वह एक महा. रचित कई टीका मिलती हैं उनमें निम्नलिखित टीका तीर्थ माना जाता है । १६३८ और १६७८ ई के बीच प्रसिद्ध हैं-उपमन्यविरचित 'तत्वविमर्शिनी', जिनेन्द्र काशीनाथ अधिकारी नामक किसी व्यक्तिने उक्त नगर बुद्धिविरचित 'काशिकात्तिविवरणपछिका', मैवेघ स्थापन किया था। उन्होंने नामसे नगर मी काशिपुर रक्षितत 'तन्त्र प्रदीप', हरदत्तरचित 'पदमन्जरी' कहाता है। पहले वहां ४ ग्राम रहे। उन्हींसे एकमें इत्यादि । उन्नयिनी देवीका मन्दिर है। वर्तमान काथिपुरसे प्राध काशिखण्ड (को०) स्कन्दपुराणका एक भाग । कोस पूर्व उन्नतिनीका पुरातन दुर्ग था। चीन-परि- काशिनगर (सं० लो०) काशिरव नगरम् । काशी, व्राजकके भ्रमण-वृत्तान्त में गोविशन नगरको कथाका बनारस सिटी। उल्लेख है । प्रत्रतत्त्ववित् कनिङ्गम साहवके अनुमान काशिनाथ (सं० पु. ) काश: काशीतीर्थस्य नगरस्य वह काशिपुरमें ही अवस्थित था। प्राज भी वहां वा नाथः, ६-तत् । १ महादेव । २ काशीके राजा स्थान स्थान पर उपवन और सरोवर देख पड़ते हैं। दिवोदास प्रभृति । एक सरोवरका नाम द्रोणसागर है । सम्भव है कि काधिप (सं० पु.) काशिं काशीपुरौं काशिदे वा उसे द्रोणाचार्य के लिये पाण्डवने खोदा होगा । वह पाति रक्षति, काशि-पाक | १ महादेव । २ काशीके समचतुष्कोण है । एक एक ओर ४ सौ हाथ दोघे राजा। निकलेगा। बदरिकाश्रम तीर्थ को जानेवाले उक्त सरो- काशिपति (सं० पु.) काशः पतिः, ६-सत् । १. महा- वरमें मान कर आगे बढते हैं । सरोवरके देव । २ काशीके राजा । दिवोदास, धन्वन्तरि प्रभृति कूल पर अनेक सतीस्तम्भ देख पड़ते हैं। फिर काशीके राजा । धन्वन्तरिने कई वैद्यकग्रन्य बनाये हैं। उसके पश्चिम कूल पर कई छोटे छोटे मन्दिर वह श्रायुर्वेदको शिक्षा भी देते थे । हैं। दुर्ग बहुत बड़ी बड़ी ईटोंका वना है। ईट १५ इन्च लम्बी, १८ इञ्च चौड़ी और २॥ इन्च मोटी हैं
- "ते मज जयापौर प्रख्यात मिना त्रियम् ।
अति प्राचीन कालमें वैमी ईटें बनती थी, अाजकल जयाह दोचा.भूमार' कत्वेन च सतां मनः । कहीं देख नहीं पड़तौं । दुर्गणवस्व-भूमिसे प्रायः राना मालाणपुरकृषक विपुलकेशवम् ।": (रामतरबिपी,२,४८७) २.हाथ जचे प्राचीर द्वारा वेष्टित है। पाजकल