काशक- -काशमर्द ६२१ भक्ष्य समुदाय, पिचकारी, नस्य, रक्तमोक्षण, व्यायाम, | काशपरेय (सं० वि० ) काशपयाँ भवा, कामपरी-ठक । दसघर्षण, रौद्रादि सन्ताप, दुष्टवायु, वनपथ गमन, काशपरी नदीसे उत्पन। मत्त एवं.मूव वसनादिका वेगधारम, मसा, पारू काशपुर-आसामके अन्तर्गत कछार जिलेका एक प्रसूति कन्द, सर्व प. लौकी, पुदीना, दुष्ट जस्तपान तथा ग्राम । बराइम्स नामक गिरिश्रेणीको दक्षिण दिक विरुड, गुरुपाक और शीतल धनपानादि कासरोगमें जो शाखा गयो, उसीके मध्य शाशपुर भवस्थित है। अहितकर है। (पथ्यापथ्यसया) किसी किसी प्राचीन ग्रन्यमै उक्त स्थानका नाम 'खुश- एलापाथोके मतमें-काडलियर (मछलीके कलेज पुर, 'कुशपुर' या 'खासपुर' लिखा है। वहां कझार का) तैल ५से ६० वूद तक ईषदुपण दुग्धके साथ पौन- कै राजावोंका राजभवन था। उसका भग्नावशेष पड़ा से कास निवारण होता और रोगी बलवान् रहता है। है। कछारके राजाओंके समय वहां हिन्दूधर्म प्रवन्न था! होमियोपाथीके मतमें-टिचर बायोनिया काशपुष्पक (सं० क्ली० ) स्यावर विषान्तर्गत कन्दविप, शासका महौषध है। उसे से १० वू'द तक पाघ एक जहरीला डला। छटांक जल में डाल सेवन करनेसे भयानक कास भी | काशपौण्ड (सं० पु. ) काशप्रधानः पौण्डा, मध्यप० । भच्छा ही जाता है। एक जनपद। अकरकरहा और बच सर्वदा सुख में रखनेसे "कोशशा कामपोष्टाय कालिका मागधामथा।" (मारत, कर्ण, ६ . सामान्य कास छटता है। सर्वदा गोंद चूसते रहनेसे काशफरी, काशपरी देखो। भी कासमें बहुत उपहार देख पड़ता है। काथफरेय, कामपरैय देखो। यक्ष्मा, क्षयकास और क्षीणकास रोगीके प्रमङ्गलका का शब्द (सं० पु.) 'का'कोनाहा' 'का' का कारण है । यमा देखो। थोर । ४ छिका, छौंक | ५ इन्दुरविशेष, एक चूहा । ऋषिविशेष । काशिराजके पिता महोत्र। काशमय (सं० वि०) काशेन प्रचुरस्ताहिकारो वा, काशक (सं० पु.) काशते दीप्यते, काश कर्तरि काश-मयट । १ अधिक काथविशिष्ट, कांससे भरा पधुल। १ विशेष, कास नामको घास । २ महोत्रके दुधा। काशणनिर्मित, कासका बना हुवा । पुन । उनका अपर नाम काधि था । "कबकाशमयं वईिरामी भगवान् मनः ।" (मागवय, ३२० "काशकय महासत्वतया सममविरकर (हरिवंग, ३९ ५.) काशमदं (स• पु०) काशं मृदनाति उपसमयति, काम (वि.) ३ पकाशयुश, रौशन। मृट-अण् । शुद्र वृक्ष विशेष, कौंदीका पेड़। उसका कायकत्व (सं० पु०) एक ऋषि । वह भी एक श्रादि संस्कृत पर्याय-अरिमर्द, कासमद, कासारि, काम- शाब्दिक ऋषियोंके अन्तर्भूत थे । मर्टक, कान्त, कनक, जरण और दोपन है। Cassia "इन्द्रचन्द्रकाशवत्वापिगलिगामटाबमाः । Sophora काशमद को हिन्दुस्थानमें बनार, कसौंदा, पाचिन्धमर जैनेन्द्रा कयन्तारादिग्गदिकाः" (कवितस्पद्रुम) कसौंदौ, या वासओ कसांदी, बंगलामें कालकासुन्दा, कायकत्नक (स• नि० ) काशकल्येन निहत्तम दक्षिण, जंगनी तकल, गुजरातमें कुवादिस, मार- काशकत्व बुञ् । कायकत्सकक निष्पादित । कामवनि (सं० पु.) काशलत्न के गोत्रापत्य । वाडमें रनतांकल, तामिम्नमें , पोत्रा-विराई, तेनामें कायज (संत्रि०) काये जायते, काथ-जन-डी कापसे पैदी तंगड़, मलयमें पोवामतकर और सिंहसमें उत्पत्र। करतोर कहते हैं। काशनाथन (सं० पु०) कर्कटगृङ्गो, कडा सौंगौ । वह भारतमें निम्न हिमालयसे मिहल और काशपरी (सं. स्त्री०) काशः. परो यस्याः, हो । पनांग पर्यन्त सर्वत्र पाया जाता है। वृक्ष क्षुद्र और काशाहत एक नदी। पुष्य हरिदावर्ण होता है । उससे दुर्गन्ध निकला Vol. Iy. 156
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/६१८
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