- काल्पि-काल्यो काल्पि-बशालके चौबीस परगनेका एक ग्राम । वह पोछे कालपोमें स्वयं स्वाधीन राजा हो ससैन्य प्रागरे बालकत्तेसे २४ कोस दक्षिण गङ्गाके दाइने कूल पर सम्राट का पाक्रमण करने चले । अन्तको वह हार अबस्थित है । वहा वाणिज्य बहुत होता है। समुद्रसे कर लौट भागे । किन्तु गाँडजातीय राजाने उन्हें पकड़ दालकत्ते जाते समय जहाज वहौं लङ्गड़ डालते हैं। इब्राहीमको सौंपा था। उसके पीछे मुगल सम्राटों- काल्पिक ( स० वि०) कल्पग्रन्थे अतः, कल्प-ठञ् । के शासनकाल कासपीमि पनिक घटनायें हुई। अकबर वेदाङ्ग कल्पग्रन्योत विधानादि । शाहको टकसाल कानपीमें ही थी। वहां ताममुद्रा याल्पो ( कालपी) युतप्रदेशके जालौन जिलेबी (पैसे ) प्रस्तुत होती थी। महाराष्ट्रोने काचपोको कालयो तहसौलका प्रधान नगर। वह अक्षा. २६ अपना अड्डा बनाया। १८०३ ई० को नाना गोविन्द ७४" ९० और देशा० ७८.४७२२° पू० पर रावने कान्तपीको अधिकार किया था। किन्तु उसी वष जालौग नगरसे १३ कोस पूर्व अवस्थित है। पुरानी दिसम्बर मास वह अंगरेजोंके हाथमें चली गयी। फिर कालपीके अग्निकोणमें नयी कालपी बनी है। नगर याम्पनीने राजा हिम्मत बहादुरको जो गन्य दिया, यशुना नदीके तौर पर्वतक मध्य वमा है। ऐतिहासिक कालपी नगर उसीके मध्य पड़ा था । किन्तु अल्प फरिश्ताके मतानुसार खुष्टीय ३३०-४०० शताब्दके दिनों में ही उक्त रानाके मर जानेसे १८०४ ई० को मध्य कन्नौनके वासुदेवने कालपोको स्थापन किया कालपीमें फिर अगरनोंका पधिकार हो गया । उसके था। किन्तु स्थानीय लोग कहते कि कालियदेव राजा पीछे एक बार गोविन्दरावको अङ्रेजोंने कालपी उसके स्थापयिता थे । ११८६ ई० को मुहम्मद घोरीके सौंप दी। किन्तु उन्होंने उसके बदले दूसरे दो स्थान प्रतिनिधि कुतुबउद-दीनने उसे जय किया । १४००ई० ले लिये, जिससे कालपी अङ्गानों के ही हाथ रह गयो को कालपी मुहम्मदखानको दी गयो। जौनपुरके बलवेके समय झांसीको रानी, रायसाहब और बांदेके शरदोषशीय मुसलमान नवाबोंमें इब्राहिम नामक नबाबने वहां प्रायः १२०.० विद्रोही सेनादल समवेस किसी नृपतिने अधिकार करनेका पतिमात्र उत्सुक किया था। अगरेज सेनापति सर शुगेजने ससैन्यः ही पच्चादय शताब्दके प्रारम्भमें दो बार कालपी नगर प्रतिकूल यात्रा कर कालपी में उन्हें हरा दिया। अाक्रमण किया था । किन्तु वह. दानावार व्यथं मना यमुना नदी पर कालयोके पुरातन दुर्गका भग्नाव.. रथ ही लौट गये । १४३५ ई० को मालवरान हाशङ्गने शेष देख पड़ता है । दुर्गका अधिकांश यमुनाके गर्भमैं आमामण कर कालपोको अधिकार किया । १४४२ ई. है। नदीसे दुर्गमें नानेका पथ नहीं । दुर्गमें महाराष्ट्रो- को शर की ब'यीय महमूद रामाने होशणसे कहना के शासन काल की कई इमारतें देखनेको मिसती भैजा कि उन्होंने कालपीमें जिस प्रतिनिधिको रखा, है। पश्चिममें बहुतसी कबरों और मसजिदोंके चिह्न वह मुसलमान धर्म के निषिद्ध पाचरणमें लगा था। विद्यमान है। उनके वायुकोणमें प्रभावतीका मन्दिर महमूदने उस प्रतिनिधिको शास्ति देनेके लिये है। वहां एक बड़ा बाजार लगता है। वर्षाकालको सोशङ्गो भनुमति ली। तदनुसार महमूद शास्ति देनेके | उसं बाजार में बौद्ध और हिन्दुवोंके शासनकालको मुद्रा बहाने स्वयं कालपी अधिकार कर बैठे। शरको | बिकती है। पुरातन अादिके मध्य मदार साहब को -वयीय शेष राजा सुलतान हुसेनके साथ १४७७ १० कन, गफूरको कब्र, चोरबीवीको कव्र, बहादुर शहीद- को दिलोके सम्राट्का एक युद्ध हुवा था । उसमें हुसन की कब्र, और चौरासी गुम्बज देखने लायक है। फिर के हार जाने पर कालपी नगर शरको वैशके दूसरी एक कन.पर. प्रकाण सिंहमूर्ति है। उपरि हाथसे निकल दिल्ली सम्राटके अधिकारमें गया । उक्त स्थानों में चौरासी गुम्बज नामक हय सर्वापेक्षा पिार सम्राट इनाहोमके समय १.५१८ ई. को जलाल प्रधान है । उस गुम्बजमें पत्थर और चूनका बहुत खान जौनपुर के शासनकर्ता बनकर और कुछ दिन अच्छा काम बना है। उसमें अनेक प्रकारके बेलब्टे !
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