७ 1 1 कालो शान्तनु रानाको स्त्री।४ भीमसेनको एक पत्नी। कानी, तारा, षोडगो, भुवनेश्वरी, भैरवा, शिवमता, ५ पग्निशिखा विशेष, पागको एक लौ। रात्रि, धूमावती, वगन्ता, मातही और कमला दश मूर्तिका रात। वित्, निसात । ८ निन्दा, बदनामी। नाम महाविद्या है। उन्हें सिहविद्या भी करते हैं। नूतन मेघसमूह, घटा। १० मसी, स्याही । ११ कृष्ण सतीने दचयन में जाते समय बार बार शिवसे अनुमति वर्ण स्त्री, काली औरत । १२ कृष्णवर्ण, कानारंग। १३ मांगी थी। किन्तु महादेवने उन्हें किसी प्रकार अनुमति चौरकोट, मढेका कौड़ा। १४ नौलो, नील । १५ पाटन्न । न दी। उसीसे सतीने उक्त दशमूर्ति वना और शिवको १६ मनिष्ठा, मंजीठ । १७ वणवत्र, काना वैत । १८ डरा अनुमति ग्रहण की। दशमहाविद्या देखी। कृष्ण कार्यास, काली कपास (१८ कृष्णजीरक, काला- काली मूर्ति का ध्यान इस प्रकार है,- जीरा । २० पृथ्वीका । २१ कृष्ण वित्, काला "करालवदर्मा घोर्ग मुनकगों चतुस जाम् । निसात । २२ वृश्चिकाली, बिछुवा । २३ कण्टकपाली। कानि दचिर्ण दिब्य मुगणमान्याविभूषिताम् । काली ( सं० स्त्री० ) कालस्य शिवस्य पत्नो-डी । सनिशिगवामाधोर्च कराव जाम् । कालिका देवीके लनाटसे आविर्भूता एक देवी । चण्ड पभयं वरद व दक्षिणी धपापिकाम् । मामधप्रभा गार्मा तथा व दिगम्बरीम् । वध समय असुरोसे लड़ते लड़ते क्रोध भरमें भगवती- कपडावसत्र मुग्णालीगलटुधिषिताम् । मुख कृष्णवर्ण हो गया था। फिर उनके जन्नाट देशसे कर्णवतमा नोतमवयुग्नमयानकाम् करालवदना असिपाथ प्रभृति अस्त्रपाणि कालिका घोग्दंष्ट्रां क्रानाम्यां नम्रतपयोधरोम् । देवीका आविर्भाव हुवा। ( मार्कणेयपु०, ८७॥५) श्वान करमघाले समकाओं मम्मुखौन् । कालिकापुराणमें उनका रूपादि इस प्रकार वर्णित सवायगलद्रन धागविफ रिताननाम् । है,-"नीलोत्पलको भांति श्यामवर्ण है। चार हस्त घोरराव महारौद्रों मशानालयवामिनीम् । पालामणलाकारलोचनवितयाविनाम् । हैं। दक्षिण हस्तहयमें खट्वान एवं चन्द्रहास और दतुग दषिपन्याग्मुिशामिचोश्याम । वाम इस्तयमें चर्म तथा पाश है। गले में मुण्डमाला यवरूपमहादबहदीपग्मिम्विताम् । पड़ी है। परिधान में व्याघ्रचर्म विराजित है। अङ्ग शिवामिघोरगवामियनुदित ममन्विताम् । कश है । दन्त दी है । लोलजिह्वा अति भयङ्गर महाकालिन च ममं विपरीतरतातुराम् । देख पड़ती है । चक्षु भारता हैं। काली भोम नाद सुखप्रसन्नवदनां मेराननसरीरुहाम् । एवं सचिन्तयेत् कालों सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।" ( तन्त्रमार) कर रहा हैं । वाहन कवन्ध है । मुख विस्तृत और कर्ण स्थल है। उक्त देवो तारा पौर चामुण्डा नामसे काली करालवदना, भयङ्करी, मुक्तकेयी, चतुमन- भी अभिहित होती है। उनकी पाठ योगिनियों के विशिष्टा और मुण्डमालाभूपिता हैं। उनके अधोवाम 'नाम हैं,-त्रिपुरा, भोषणा, चण्डी, कर्वी, हंत्री, इस्तमें सद्यः कति त मुण्ड एवं कल वाम हस्तमें खा और अवं दक्षिण इस्तमें अमय चि तथा पधो विधाका, कराला, और शूलिनी । उक्त योगिनी भी देवीके साथ पूजित और अनुध्यात होती हैं। यावतीय दक्षिण हस्तमें वरदान भङ्गिमा है। वह महमिकी देवीगणमें उन्हौंको पूजा करनेसे सर्व कामना सिडि भांति श्यामवर्ण उन्तङ्गिनी हैं। उनके कण्ठदेशमें मिलती है।" ( कालिकापु० ६. प.) काग दश महा सुरहमाना है। उससे रक्तधारा विनित हो रही है। कर्णयो कर्णभूषणके स्थान पर दो शव लम्बित है। विद्याओं के मध्य प्रथम महाविद्या है। यथा- वर भीमदगना, करानमुखी, पोनोवतस्तनी, पवगर- "काली तारा महाविद्या पीड़यो सुवनेशरी। हस्तममूएनिर्मित भवनाधारिण और हास्यमुखी मेरवी छिन्नमस्ता च विद्या धमावतो तथा उमय प्रोष्टप्रान्तमे रधारा गलित होती है। बगला सिहविद्या च मातनी कमलामिका। एता दशमहाविद्या सिद्धविधाः प्रकीर्तिताः" (वसार) उसोसे उन्हें स्फुरितमुखी भी कहते हैं। काची भयार
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५९७
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